तर्ज-तुम तो ठहरे परदेशी…….
समवसरण दर्शन करो, तो भव्य कहलाओगे।
यदि तुम अभव्य हुए, तो दर्श नहीं पाओगे।।टेक.।।
प्रभु जी की धर्मसभा, में जो भी आता है।
तुम भी दिव्यध्वनि को सुनो, तो भव से तिर जाओगे।।
समवसरण……….।।१।।
गूंगे भी वहाँ जाकर, बोलने लग जाते हैं।
तुम भी आज श्रद्धा करो, तो आत्मसुख पाओगे।।
समवसरण……….।।२।।
इन्द्रभूति गौतम का भी, मान गलित हुआ था वहाँ।
देखो वही मानस्तंभ, मुक्तिपथ को पाओगे।।
समवसरण……….।।३।।
दर्शनों के भावों से, मेंढक ने देवगति ली।
दर्शन करो तुम भी तो, देवगती पाओगे।।
समवसरण……….।।४।।
भव्य या अभव्यपने की, ‘‘चन्दना’’ परीक्षा करो।
दर्शन से भव्यत्व की, श्रेणी में आओगे।।
समवसरण……….।।५।।