तर्ज—मेरी तो पतंग……
जब से तेरा दर्श हुआ, मुझको बड़ा हर्ष हुआ,
ज्ञानज्योति मन में जल गई रे।
ज्ञानमती माता मिल गईं रे।।टेक.।।
तुम्हीं ब्राह्मी औ चंदना हो-२।
तुम्हीं तीर्थ की वंदना हो-२।।
तुम्हीं पूनो की चन्द्रमा हो-२।
तुम्हीं रोशनी औ शमां हो-२।।
तुमने ऐसा त्याग किया, जग को नया मार्ग दिया,
ज्ञानज्योति मन में जल गई रे,
ज्ञानमती माता मिल गईं रे।।१।।
अष्टसहस्री आदि कितने-२।
सैकड़ों लिखे हैं ग्रंथ तुमने-२।।
चलती फिरती विश्वविद्यालय हो-२।
अन्य गुणों में भी हिमालय हो-२।।
तेरा समयसार पढ़ा, तेरा नियमसार पढ़ा,
ज्ञानज्योति मन में जल गई रे,
ज्ञानमती माता मिल गईं रे।।२।।
गणिनीप्रमुख मात अब तुम्हारी-२।
कीर्ति गाके हरषें नर-नारी।।
हर मन में खुशियाँ हैं छाईं-२।
‘‘चंदनामती’’ शरण में आई-२।।
धन्य हुआ भाग्य मेरा, मिला आशिर्वाद तेरा,
ज्ञानज्योति मन में जल गई रे,
ज्ञानमती माता मिल गईं रे।।३।।