तर्ज-चूड़ी मजा न देगी……
उत्सव बहुत मनाया, जिनवर को भी रिझाया।
जन-जन को जिनधरम से परिचित नहीं कराया।।टेक.।।
जाती व सम्प्रदायों में धर्म को न बाँटो।
इन्सान बँट गया अब भगवान को न बाँटो-भगवान को न बांटो।
उत्तम सुखों का दायक, यह धर्म ही बताया।।उत्सव.।।१।।
नहिं धर्म कोई कहता, आपस में वैर करना।
मतभेद हों भले ही, मनभेद ना समझना-मनभेद ना समझना।
मानव की भद्रता का, परिचय यही बताया।।उत्सव.।।२।।
है प्राकृतिक अनादी, सृष्टी सुरम्य जैसे।
जिनधर्म की व्यवस्था, सर्वोदयी है वैसे-सर्वोदयी है वैसे।
ईश्वर को वीतरागी, इस धर्म ने बताया।।उत्सव.।।३।।
इक प्रेरणा मिली है, गणिनी माँ ज्ञानमती की।
प्रभु ऋषभ देशना ही, दुनिया को स्वस्थ करती-दुनिया को स्वस्थ करती।
इस हेतु ‘‘चंदनामति’’, सबने बिगुल बजाया।।उत्सव.।।४।।