तर्ज-जरा सामने तो…….
तीरथयात्रा का पुण्य विशाल है, इसकी दूजी न कोई मिशाल है।
इससे आत्मा बनेगी परमात्मा, भवसागर से होकर पार है।।टेक.।।
कोई गंगा को तीरथ कह, उसमें डुबकी लगाते हैं।
कोई संगम तट पर जाकर, निज को शुद्ध बनाते हैं।।
सच्चे तीरथ की कीरत विशाल है, इसकी दूजी न कोई मिशाल है।
इससे आत्मा बनेगी परमात्मा, भवसागर से होकर पार है।।१।।
सत्य अहिंसा करुणा की, नदियाँ जहां कल कल बहती हैं।
उनमें पापों के क्षालन को, जनता आतुर रहती है।।
वही तीरथ अलौकिक विशाल है, इसकी दूजी न कोई मिशाल है।
इससे आत्मा बनेगी परमात्मा, भवसागर से होकर पार है।।२।।
कहीं किसी पर्वत पर जाकर, महामुनी तप करते हैं।
वृक्षों के नीचे भी तपकर, केवलज्ञानी बनते हैं।।
वे ही तीरथ कहाते विशाल हैं, इसकी दूजी न कोई मिशाल है।
इससे आत्मा बनेगी परमात्मा भवसागर से होकर पार है।।३।।
ये सब द्रव्य तीर्थ हैं चेतन भाव तीर्थ कहलाता है।
चलते फिरते तीर्थ साधुगण जिनका मोक्ष से नाता है।।
‘‘चंदनामति’’ ये तीरथ विशाल है, इसकी दूजी न कोई मिशाल है।
इससे आत्मा बनेगी परमात्मा, भवसागर से होकर पार है।।४।।