तर्ज-काली तेरी चोटी है………….
दुनिया में भगवन्तों की मूर्तियाँ अनेक हैं।
लेकिन ऋषभदेव की प्रतिमा केवल एक है।।
एक सौ आठ फुट के जिनवर को नमन,
ऋषभगिरि को नमन, मांगीतुुंगी को नमन-२।।टेक.।।
एक बार ज्ञानमती माताजी के ध्यान में।
सन् उन्निस सौ छ्यानवे चातुर्मास काल में।।
शरदपूर्णिमा के दिन आया चिन्तन,
ऋषभगिरि को नमन, मांगीतुुंगी को नमन।।१।।
वही प्रतिमा आज बनके पूर्ण हो गई है।
इन्तजार की घड़ी पूर्ण हो गई हैं।।
प्राण प्रतिष्ठा की घड़ी पास आ गई है।
संतों के संग आर्यिका मात आ गई हैं।।
सभी करें भक्ति से जिनवर को नमन।
ऋषभगिरि को नमन, मांगीतुुंगी को नमन।।२।।
युग युग तक के लिए बन गई कहानी।
जैन संस्कृति की है यह अमिट निशानी।।
वीतराग छवि को देखो जाके पास में।
अहिंसा की गूंज उठी सारे आकाश में।।
‘‘चन्दनामती’’ यह भारत देश हुआ अब चमन।
ऋषभगिरि को नमन, मांगीतुुंगी को नमन।।३।।