प्रज्ञाश्रमणी-आर्यिका चन्दनामती
तर्ज-पंखिड़ा……….
वंदना……………वंदना………….
वंदना करूँ मैं गणिनी ज्ञानमती की।
बीसवीं सदी की पहली बालसती की।।वंदना……..
इनके मात-पिता का, गुणानुवाद मैं करूँ।
इनकी जन्मभूमि का भी, साधुवाद मैं करूँ।।
मिलके आओ, मिलके गाओ, मिलके करो जी।
वन्दना चरण में करके, पुण्य भरो जी।।वंदना…।।१।।
इनके ज्ञान की प्रशंसा, सारी दुनिया करती है।
इनके नाम की प्रशंसा, पुस्तकों में मिलती है।।
मिलके आओ, मिलके गाओ, मिलके करो जी।
वंदना चरण में करके, पुण्य भरो जी।।वंदना….।।२।।
वीर के युग की ये, लेखिका पहली हैं।
चार सौ ग्रंथों की, लेखिका साध्वी हैं।।
मिलके आओ, मिलके गाओ, मिलके करो जी।
वंदना चरण में करके, पुण्य भरो जी।।वंदना….।।३।।
इनके वात्सल्य में, माँ की ममता भरी।
इनके सानिध्य में, मुझको समता मिली।।
मिलके आओ, मिलके गाओ, मिलके करो जी।
वंदना चरण में करके, पुण्य भरो जी।।वंदना….।।४।।
इनके तप त्याग में, लाभ लेते सभी।
‘‘चन्दना’’ भाग्य से, भक्ति करते सभी।।
मिलके आओ, मिलके गाओ, मिलके करो जी।
वंदना चरण में करके, पुण्य भरो जी।।वंदना….।।५।।