पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी से ब्र. कु. सारिका जैन की एक वार्ता
भगवान महावीर के जीवन से संबंधित अनेक आगमविरुद्ध बातों को पत्र-पत्रिकाओं में पढ़कर मेरे मन में जिज्ञासा हुई कि पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी से दिगम्बर जैन आगम के परिप्रेक्ष्य में कतिपय विवादित विषयों का ज्ञान प्राप्त करके उन्हें समाज के समक्ष प्रस्तुत करूँ अतः मैंने दिनांक 5.12.02 को पूज्य माताजी से कुछ प्रश्नों का समाधान प्राप्त किया उसे मैं यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ-
कु. सारिका-वंदामि, माताजी!
पूज्य माताजी-बोधिलाभोस्तु!
कु. सारिका-माताजी! आज मैं आपसे कुछ शंकाओं का समाधान करना चाहती हूँ। आप आज्ञा प्रदान करें।
पूज्य माताजी-बहुत अच्छी बात है, बताओ, क्या शंका हं?
कु. सारिका-पूज्य माताजी! मैंने कई पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ा है कि राजा चेटक गणतंत्र शासन के प्रमुख शासक थे, इस विषय में मैं आपसे समझना चाहती हूँ।
पूज्य माताजी-वर्तमान में कुछ विद्वान् इस बात को स्वीकार कर रहे हैं और लिख भी रहे हैं कि राजा चेटक गणतंत्र शासन के प्रमुख शासक थे लेकिन दिगम्बर जैन ग्रन्थों के अनुसार यदि देखा जाये तो उस समय गणतंत्र शासन ही नहीं था। आज से 2000 वर्ष पूर्व श्रीयतिवृषभाचार्य द्वारा लिखित तिलोयपण्णत्ति ग्रन्थ में मैंने स्वयं पढ़ा है कि-
जिस समय भगवान महावीर ने मोक्ष को प्राप्त किया उस समय ‘‘पालक’’ नाम के अवन्तिसुत का राज्याभिषेक हुआ। 60 वर्ष तक उस पालक राजा ने राज्य किया, उसके बाद विजयवंशियों ने 155 वर्ष तक राज्य किया, अनन्तर मुरुंडवंशियों का राज्य 40 वर्ष तक चला, 30 वर्ष तक पुुष्यमित्र का राज्य रहा, इसके पश्चात् 60 वर्ष तक वसुमित्र-अग्निमित्र ने राज्य किया, 100 वर्ष गंधर्व ने राज्य किया और नरवाहन 40 वर्ष तक राज्य करते रहे पश्चात् भृत्य आन्ध्र राजा उत्पन्न हुए हैं, इन भृत्य आन्ध्रों का काल 242 वर्ष है, इसके बाद गुप्तवंशी हुए, इनका प्रमाणकाल 221 वर्ष माना जाता है कहने का तात्पर्य यह है कि यह राज्य परंपरा 1000 वर्ष तक चली है तो उससे 1000 वर्ष पूर्व राजा चेटक को गणतंत्र का शासक कहना दिगम्बर जैन आगम से तो कथमपि मेल नहीं खाता है। हरिषेणाचार्यकृत वृहत्कथाकोष में लिखा है कि-विशाल नगरी के राजा केक और उनकी रानी यशोमति थीं। उनका पुत्र चेटक था। ‘‘अभूत् साधुकृतानंदश्चेटकाख्यः सुतोनयोः।’’ बौद्धग्रन्थ और श्वेताम्बर ग्रंथों से है। तो अगर हम उनकी एक बात मानते हैं तो हमें उनकी हर एक बात माननी चाहिए। हम उनकी एक बात मान लें गणतंत्र शासन के बारे में, और उनकी दूसरी बातें न मानें ऐसा तो हमें समझ में नहीं आता। दिगम्बर जैन परम्परा के ग्रंथों में तो जो राज्यपरम्परा मानी है कि इतने वर्ष तक उनने राज्य किया फिर उनका राज्याभिषेक हुआ…….तो राज्याभिषेक तो विधिवत् राजाओं का ही होता है इस संबंध में किसी भी दिगम्बर जैन आगम में यह नहीं लिखा है कि पहले वे गणतंत्र शासन में चुने गए फिर उनको राष्ट्रपति बनाया गया।
अतः मेरा तो बार-बार यही कहना है कि दिगम्बर जैन आगम में कहीं भी गणतंत्र शासन का उल्लेख नहीं आया है।
कु. सारिका-माताजी! फिर आपकी दृष्टि से लिच्छविवंश की क्या व्यवस्था है?
पूज्य माताजी-दिगम्बर जैन परम्परा में भगवान महावीर का वंश नाथवंश माना है तो ये राजा सिद्धार्थ और उनके पिता सर्वार्थ सभी नाथवंशी थे और राजा चेटक का वंश सोमवंश माना गया है जिसका कि मैंने पहले भी प्रमाण दिया है। उत्तरपुराणग्रन्थ में यह बहुत स्पष्टरूप से लिखा है कि सुरलोकादभूःसोम-वंशेत्वं चेटको नृपः अर्थात् सोमवंश में राजा चेटक हुए हैं तो लिच्छविवंश का नाम मुझे तो आज तक दिगम्बर जैन परम्परा के किसी भी ग्रंथ में देखने को नहीं मिला है अतः मैं समझती हूँ कि ये लिच्छविवंश की परम्परा भी श्वेताम्बर ग्रंथों से ही आई है दिगम्बर जैन परम्परा के किसी भी ग्रंथ में यह बात नहीं आई है।
कु. सारिका-माताजी! ऐसा कुछ विद्वानों का कहना है कि वैशाली तो बहुत ही समृद्धिशाली नगरी थी उसमें सोने-चाँदी के हजारों गुम्बज थे, इस विषय में आप क्या कहना चाहती हं?
पूज्य माताजी-बात यह है कि वैशाली समृद्ध हो इसमें हमारा कोई विरोध नहीं है क्योंकि राजा चेटक भी एक अच्छे महान राजा थे। उनके दस पुत्र थे और सात पुत्रियां थीं लेकिन सबसे बड़ी विचारणीय बात यह है कि जिस वंश में, जिस कुल में, जिस घराने में तीर्थंकर भगवान जन्म लेने वाले हैं वह राजा और वह नगरी उससे हीन हो, उससे छोटी हो, उसका एक मोहल्ला हो यह बात दिगम्बर जैन परम्परा के अनुसार कथमपि स्वीकार करने योग्य नहीं है क्योंकि आचार्यों का कहना है कि जिस समय तीर्थंकर अवतार लेने को होते हैं उस समय सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से कुबेर बारह योजन की नगरी बनाता है और अगर वह समृद्धिशाली नगरी रहती ही है राजधानी के रूप में, तो उसे बाग-बगीचों, महल-अटारी से सुसज्जित करके बहुत ही सुन्दर बना देता है उस समय वह नगरी स्वर्ग से भी अधिक सुन्दर बन जाती है तो वह वैशाली का एक मोहल्ला हो या वैशाली के अंतर्गत हो यह समझ में नहीं आता है इसलिए मैं तो क्या अनेक विद्वान् भी इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि वैशाली कुण्डलपुर से अधिक समृद्धिशाली नगरी थी दूसरी बात एक और भी है कि जहाँ तीर्थंकर भगवान के गर्भ में आने के छह महीने पहले से ही प्रतिदिन साढ़े सात करोड़ रत्नों की वर्षा होती है वहाँ सोने-चांदी के गुम्बज क्या मायने रखते हैं? उसकी समृद्धि और धनपरायणता के आगे वैशाली बहुत ही छोटी नगरी है। उत्तरपुराण में तो वर्णन आता है कि रानी त्रिशला जिस पलंग पर सोई थी वह पलंग रत्नों का था तो वहाँ कुण्डलपुर के हरेक मकानों पर, महलों पर भी सोने के गुम्बज हों तो बड़ी बात नहीं है, जहाँ इतने रत्नों की वर्षा होती हो और कुुबेर जिसको सुसज्जित करने वाला हो उसकी महिमा से अधिक वैशाली की महिमा को कहना ये हास्यास्पद बात है दिगम्बर जैन मान्यता के अनुसार कथमपि उत्तम नहीं है।
कु. सारिका-माताजी! आपने 25 वर्ष पूर्व चैबीस तीर्थंकर पुस्तक में विदेह देश के कुण्डलपुर को भगवान महावीर की जन्मभूमि लिखा है और अब आप नालंदा के कुण्डलपुर को भगवान महावीर की जन्मभूमि लिख रही हैं इसका मतलब है, कि पहले आप कुछ मानती थीं और अब आप कुछ मानने लगी हैं?
पूज्य माताजी-ऐसी बात नहीं है यह एक भ्रम फैलाया जा रहा है। बात यह है कि उत्तरपुराण में विदेह देश के कुण्डलपुर में भगवान महावीर का जन्म माना है और निर्वाणभक्ति में भी यही पाठ आया है भारतवास्ये विदेहकुण्डपुरे और विदेहदेश के इसी कुण्डपुर को ही तिलोयपण्णत्ति, धवला, जयधवला में कुण्डलपुर नाम आया है धवला में कहीं कुण्डपुर नाम भी आया है तो कुण्डपुर और कुण्डलपुर दोनों ही नाम चलते हैं और विदेह देश में चल रहे हैं तो अभी जो यह चर्चा का विषय बन गया है कि वैशाली में एक क्षत्रियकुण्ड है, वासोकुण्ड है या ब्राह्मणकुण्ड है वह भगवान महावीर की जन्मभूमि है कोई कुण्डग्राम को जन्मभूमि मान रहे हैं इसलिए कुण्डलपुर नाम को ज्यादा अधिक महत्व देना पड़ा। वैशाली में कुण्डग्राम, क्षत्रियकुण्ड, वासोकुण्ड आदि ये भगवान की जन्मभूमि क्यों नहीं हो सकती है इस बात को समझो! सिन्धुदेश में वैशाली नगरी है ऐसा उत्तरपुराण में लिखा है तो देश अलग उसकी राजधानी अलग। वैशाली सिन्धुदेश की राजधानी है और विदेहदेश में कुण्डपुर या कुण्डलपुर नाम आया है तो वो भी एक महत्वपूर्ण एवं समृद्धिशाली राजधानी थी तो दोनों देश स्वतंत्र हैं दोनों राजधानियाँ स्वतंत्र हैं तो एक छोटे से स्थान को या छोटे से मोहल्ले को कुण्डपुर या कुण्डग्राम कह देना यह समझ में नहीं आया। रही बात जिला नालंदा की, तो जिला तो बदलते रहते हैं। नालंदा के समीप है अतः हम तो यहाँ तक समझते हैं कि नालंदा ही कभी नंद्यावर्त महल था हमें अनेक विद्वानों ने भी इस बात को बताया है।
देखो! अभी सम्मेदशिखर बिहार में था अब झारखंड में हो गया। आज वर्तमान में नालंदा जिले से कुण्डलपुर को जाना जा रहा है इसलिए मैंने नालंदा कह दिया। हमारा अभिप्राय तब भी इसी कुण्डलपुर से था और आज भी वही अभिप्राय है विदेह देश केे कुण्डलपुर का। कुण्डलपुर शब्द अभी मैंने इसलिए जोर-शोर से उठाया है कि कुण्डलपुर को कुण्डग्राम कहकर छोटे से क्षत्रियकुण्ड या वासोकुण्ड को जन्मभूमि मान रहे हैं इसलिए ये चर्चा का विषय बन गया है लेकिन मेरी मान्यता जो तब थी वही आज है न तब वैशाली में कुण्डपुर को मानने की थी और न आज है।
धवला पु. 9 में पृष्ठ 21 पर लिखा हुआ है कि-आसाढजोण्हपक्खछट्ठीएकुण्डल- पुरणगराहिवणाहवंस सिद्धत्थणरिंदस्सतिसिलादेवीए गब्भमागंतूण अर्थात् आषाढ़ शुक्ला षष्ठी के दिन कुण्डलपुर के राजा नाथवंशशिरोमणि सिद्धार्थनरेन्द्र, उनकी महारानी त्रिशलादेवी के गर्भ में आए तो इसलिए कुण्डलपुर शब्द धवला, जयधवला, तिलोयपण्णत्ति आदि ग्रंथों में आया है इससे मेरी समझ में आता है कि कुण्डपुर और कुण्डलपुर दोनों एक ही हैं और ये वैशाली का कुण्डग्राम और इधर के कुण्डलपुर दोनों को अलग-अलग करना और इसको जन्मभूमि न मानकर वैशाली के कुण्डग्राम को जन्मभूमि मानना ये तो दिगम्बर जैन परम्परा से सर्वथा विरुद्ध है। कुछ वर्ष पूर्व भगवती सूत्र श्वेताम्बर परम्परा से यह बात चर्चा में आई थी ऐसा पं. सुमेरुचंद दिवाकर जी ने अपनी महाश्रमण महावीर पुस्तक में भी लिखा है और उसी से वह मान्यता प्राप्त करके कुछ शोधकारों के द्वारा ही वह कुण्डग्राम जन्मभूमि माना जाने लगा है जो कि वैशाली के अंतर्गत होने से हम लोगों को मान्य नहीं है।
कु. सारिका-माताजी! कुछ विद्वानों का कहना है कि राजा सिद्धार्थ राजा ही नहीं थे वे गणतंत्र शासन के एक सदस्य थे इस विषय में आपका क्या कहना है?
पूज्य माताजी-बात यह है कि तीर्थंकर के पिता को इस तरह से राजा नहीं मानना उनका बहुत बड़ा अवर्णवाद है। ऐसा तो वे ही कह सकते हैं जिन्हें पाप का कोई भय ही नहीं है।
देखो! धवला की पंक्ति में भी आया है कि-कुण्डलपुरणगराहिव अर्थात् कुण्डलपुर नगर के अधिप यानि राजा णाहवंससिद्धत्थणरिंदस्स नाथवंश के राजा सिद्धार्थ नरेन्द्र-तो इस प्रकार विचार करके देखा जाये तो उनको गणतंत्र का सदस्य और राजा चेटक को गणतंत्र का शासक मानना ये तो एक बहुत ही दुःखप्रद बात है ऐसा नहीं करना चाहिए। वास्तव में विचार करके देखा जाये तो पहली बात, उस समय गणतंत्र शासन ही नहीं था दूसरी बात, जितने अधिक समृद्धिशाली राजा चेटक थे उनसे कहीं अधिक समृद्धिशाली राजा सर्वार्थ और उनके पुत्र सिद्धार्थ थेे। राजा सिद्धार्थ इन्द्रों के द्वारा पूज्य महान राजा थे। जिनकी इन्द्र आकर पूजा करे, जिनके माता-पिता को इन्द्र आकर नमस्कार करे और जिनकी इतनी महिमा का बखान करे वह राजा चेटक से छोटे हों यह बात मैं नहीं स्वीकार कर सकती मैं तो कहूँगी कि उस समय उस मध्यलोकस्थ जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के आर्यखंड में उनके समकक्ष कोई राजा नहीं थे। जिनके यहाँ इस प्रकार 15-15 महीनों तक रत्नों की वर्षा हुई हो, इन्द्रों ने जिनके पंचकल्याणक महोत्सवों को मनाया हो वो किसी से छोटे थे यह बात मैं कथमपि स्वीकार नहीं कर सकती जो इस बात को स्वीकार करते हैं वे दिगम्बर जैन ग्रंथों का बहुत बड़ा अपलाप करते हैं।
कु. सारिका-माताजी! आज आपसे इतनी जानकारी प्राप्त करके बहुत प्रसन्नता हुई। इसका मतलब यह रहा कि वे आधुनिक विद्वान् दिगम्बर जैन आगम की अनदेखी करके अपने लेखों को लिखते हैं इसी कारण ये सब अनर्थ हो रहे हैं। आपके इन समाधानों से यह सारांश निकला है कि दिगम्बर जैन धर्मावलम्बियों को उत्तरपुराण, महावीरपुराण आदि ग्रंथों का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए और उसी के आधार से भगवान महावीर के जीवन चरित्र को प्रस्तुत करना चाहिए।
वंदामि माताजी!
पूज्य माताजी-बोधिलाभोस्तु।