-दोहा-
परमेष्ठी आचार्य को, नमन है बारम्बार।
उनकी प्रतिमा का करूँ, न्हवन परम सुखकार।।
श्री आचार्यपरमेष्ठिप्रतिमाया: अभिषेकार्थं गुरु प्रतिमाग्रे पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
– जलाभिषेक (बसंततिलका छंद)-
छत्तीस मूलगुण युत आचार्य गुरुवर।
जिनका है प्राकृतिक रूप परम दिगम्बर।।
अभिषेक करके जल से पावन हुआ मन।
आचार्य के चरण में शत बार वन्दन।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं षट्त्रिंशत् मूलगुणपालकश्रीआचार्यपरमेष्ठिबिम्बं परमपवित्रजलेन अभिषेचयामि स्वाहा।
-(नारियल रसाभिषेक)-
गुरुवर्य के हृदय सम है नीर प्यारा।
उस नालिकेर जल से अभिषव तुम्हारा।।
अभिषेक करके पावन है मन हमारा।
आचार्य के चरण में वन्दन हमारा।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं षट्त्रिंशत् मूलगुणपालकश्रीआचार्यपरमेष्ठिबिम्बं नालिकेरजलेन अभिषेचयामि स्वाहा।
-(इक्षुरसाभिषेक)-
आचार्य के वचन मिष्ट सुपुष्टिकारी।
मैं इक्षुरस से कर लूँ अभिषेक भारी।।
अभिषेक करके पावन है मन हमारा।
आचार्य के चरण में वन्दन हमारा।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं षट्त्रिंशत् मूलगुणपालकश्रीआचार्यपरमेष्ठिबिम्बं इक्षुरसेन अभिषेचयामि स्वाहा।
-(शर्करा अभिषेक)-
गुरु के वचन मधुर शर्कर सम सुहाने।
इस हेतु हम शर्करा गुरु शीश डालें।।
अभिषेक करके पावन है मन हमारा।
आचार्य के चरण में वन्दन हमारा।।४।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं षट्िंत्रशत् मूलगुणपालकश्रीआचार्यबिम्बं शर्करया अभिषेचयामि स्वाहा।
षट्रस में घृत है बड़ा तन पुष्टिकारी।
उससे करे न्हवन आतम सौख्यकारी।।
अभिषेक करके पावन है मन हमारा।
आचार्य के चरण में वन्दन हमारा।।५।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं षट्िंत्रशत् मूलगुणपालकश्रीआचार्यबिम्बं घृतेन अभिषेचयामि स्वाहा।
-(दुग्धाभिषेक)-
चन्दा किरण सम धवल ले दुग्ध कलशा।
आचार्यश्री का अभिषेक करूँ मैं हरषा।
अभिषेक करके पावन है मन हमारा।
आचार्य के चरण में वन्दन हमारा।।६।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं षट्िंत्रशत् मूलगुणपालकश्रीआचार्यबिम्बं दुग्धेन अभिषेचयामि स्वाहा।
-(दही अभिषेक)-
मुक्ता कणों सम दही अभिषेक लगता।
मोती समान भावों को शुद्ध करता।।
अभिषेक करके पावन है मन हमारा।
आचार्य के चरण में वन्दन हमारा।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं षट्िंत्रशत् मूलगुणपालकश्रीआचार्यबिम्बं दध्ना अभिषेचयामि स्वाहा।
-(सर्वोषधि अभिषेक)-
सर्वोषधी स्नपन कर गुरुवर्यश्री का।
सब रोग नष्ट हो मुनिवर तव कृपा से।
अभिषेक करके पावन है मन हमारा।
आचार्य के चरण में वन्दन हमारा।।८।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं षट्िंत्रशत् मूलगुणपालकश्रीआचार्यबिम्बं सर्वौषधिना अभिषेचयामि स्वाहा।
-(चतुष्कोण अभिषेक)-
अभिषेक कर चतुष्कोण कलश के द्वारा।
कर लूँ विनाश चहुँगति की भ्रमण यात्रा।
अभिषेक करके पावन है मन हमारा।
आचार्य के चरण में वन्दन हमारा।।९।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं षट्िंत्रशत् मूलगुणपालकश्रीआचार्यबिम्बं चतुष्कोणकलशेन अभिषेचयामि स्वाहा।
(चन्दन विलेपन)
तर्ज-मैं चन्दन बनकर……………
मलयागिरि चन्दन घिसकर, गुरु पद में चर्चन कर लूँ।
अभिषेक में चन्दन लेपन, कर मन को शीतल कर लूँ।।मलयागिरि।।
चन्दन जितना घिस जाता, उतनी ही सुगन्धी देता।
मन सुरभित करने हेतू, चन्दन से विलेपन कर लूँ।।
मलयागिरि चन्दन घिसकर, गुरुपद में चर्चन कर लूँ।।१०।।
ॐ ह्रीं आचार्यपरमेष्ठिप्रतिमां चन्दनानुलेपनं करोमि स्वाहा।
-(पुष्पवृष्टि)-
पुष्पवृष्टि गुरु पर करूँ, सुरभित पुष्प मंगाय।
गुरूकृपा की वृष्टि हो, गुण सुरभि मिल जाय।।११।।
ॐ ह्रीं पुष्पवृष्टिं करोमि स्वाहा।
-(मंगल आरती)-
मैं तो आरती उतारूँ रे, आचार्य गुरुवर की।
जय जय आचार्य गुरुवर, जय जय जय.।।मैं तो.।।
छत्तिस मूलगुणों के धारक, आचार्य परमेष्ठी…..आचार्य परमेष्ठी।
चतुर्विध संघ के नायक, आचार्य परमेष्ठी….आचार्य परमेष्ठी।
वात्सल्यमूर्ति की, जिनधर्म कीर्ति की, छवि को निहारूँ मैं।
हो प्यारी प्यारी छवि को निहारूँ मैं।। मैं तो आरती…।।१२।।
ॐ ह्रीं मंगल आरती अवतरणं करोमि स्वाहा।
-(पूर्ण कुम्भ से सुगंधित जलाभिषेक)
(बसंततिलका छंद)-
कर्पूरयुक्त चन्दन जल में मिलाया।
आचार्य का न्हवन उस जल से कराया।।
मैं पूर्ण कुंभ से गुरु अभिषेक करके।
चाहूँ सुगंधित बने जीवन गुणों से।।१३।।
ॐ ह्रीं परमपवित्रसुगंधितजलेन आचार्यबिम्बं अभिषेचयामि स्वाहा।
-शांतिधारा-
तर्ज-सुरपति ले अपने शीश………..
श्रीपरमेष्ठी आचार्य, महामुनिराज, सभी के सहारा,
कर लूँ मैं शान्तिधारा।।टेक.।।
ॐ ह्रीं श्रीगुरुदेवाय नम:।
ॐ ह्रीं शिवपथपथिकाय नम:।।
शिवपथदर्शक आचार्य, महामुनिराज, शान्ति के द्वारा,
कर लूँ मैं शान्तिधारा।।१।।
गुरुपद की ऊर्जा मिल जावे।
हर मन की कलियाँ खिल जावें।।
इसलिए भक्त आते हैं गुरु के द्वारा,
कर लूँ मैं शान्तिधारा।।२।।
सच्चा सुख त्याग में है गुरुवर।
संसार का वैभव है नश्वर।।
अविनश्वर सुख-पाने का यही सहारा,
कर लूँ मैं शान्तिधारा।।३।।
सन्तों से देश का गौरव है।
इनके तप त्याग की सौरभ है।।
पैâले सुभिक्षता इनके तप के द्वारा,
कर लूँ मैं शान्तिधारा।।४।।
इस राष्ट्र में शान्ति सदैव रहे।
दुनियाँ में अमन और चैन रहे।।
‘‘चन्दनामती’’ यह पावन लक्ष्य हमारा,
कर लूँ मैं शान्तिधारा।।५।।