मैं तो आरती उतारूँ रे, अनेकांत सूरी की,
जय जय आचार्यप्रवर, जय जय जय-२।।टेक.।।
गोटेगांव के दीपक कुमार, बने बाल ब्रह्मचारी…बने बाल ब्रह्मचारी
मन में जागी उमंग अपार, देखूँ ज्ञान फुलवारी।।…..देखूँ ज्ञान फुलवारी
भाई-बहन छोड़कर, बंधन को तोड़कर,
दीपक चले गृहत्याग…….हो हो हो…..दीपक चले गृहत्याग।।
मैं तो आरती….।।१।।
चारित्रचक्री श्री शांतिसागर, मुनि प्रथमाचार्य हुए।…..मुनि प्रथमाचार्य हुए
अभिनंदनसागर जी सूरि, छठे पट्टाचार्य हुए।…..छठे पट्टाचार्य हुए
उनसे दीक्षा प्राप्त किया, उनसे शिक्षा प्राप्त किया,
मिला नाम अनेकांतसागर……..हो हो..मिला नाम अनेकांतसागर।।
मैं तो आरती….।।२।।
मुनिचर्या के पालन में, सदा दृढ़भाव रहा।………..सदा दृढ़भाव रहा।
कल्पतरु शान्तिनाथ पद में, बड़ा भक्ति भाव रहा।…..बड़ा भक्तिभाव रहा।
प्रभु पद की साधना, गुरुभक्ति भावना मन से किया दिन रात।
………..हो हो हो मन से किया दिन रात।। मैं तो आरती….।।३।।
सप्तम पट्टाचार्य का पद, गुरु ने दिया तुमको। गुरु ने..
भक्ति-वात्सल्य का परिचय, सभी ने दिया तुमको।।….सभी ने दिया तुमको
गणिनी ज्ञानमती मात, आपकी हैं धर्ममात, उनकी निराली है बात,
…….हो हो हो उनकी निराली है बात।। मैं तो आरती…।।४।।
जिनशासन चले चिरकाल, जिनधर्म बढ़ता रहे। ……जिनधर्म बढ़ता रहे
‘‘चन्दनामति’’ रहे चिरकाल, वात्सल्य बढ़ता रहे।।……वात्सल्य
युग युग जीवन्त रहें, सप्तम आचार्यदेव, अनेकांतसागर जी
……हो हो हो अनेकांतसागर जी।। मैं तो आरती….।।५।।