-शंभु छंद-
अर्हन् के छ्यालिस गुण सि(ों, के आठ सूरि के छत्तिस हैं।
श्री उपाध्याय के पंचवीस, गुण साध्ु के अट्ठाइस हैं।।
पांचों परमेष्ठी के गुणगण, एक सौ तेतालिस बतलाये।
जो इनका नाम स्मरण करे, वह झट भवदध् िसे तर जाये।।1।।
चाल-हे दीनबन्ध्द्ध
जैवंत अरिहंत देव, सि( अनंता।
जैवंत सूरि उपाध्याय साध्ु महंता।।
जैवंत तीन लोक में ये पंचगुरु हैं।
जैवंत तीन काल के भी पंचगुरु हैं।।2।।
अर्हंत देव के हैं छियालीस गुण कहे।
जिन नाम मात्रा से ही पाप शेष ना रहे।।
दशजन्म के अतिशय हैं चमत्कार से भरे।
कैवल्यज्ञान होत ही अतिशय जु दश ध्रें।।3।।
चैदह कहे अतिशय हैं देव रचित बताये।
तीर्थंकरों के ये सभी चैंतीस हैं गाये।।
हैं आठ प्रातिहार्य जो वैभव विशेष हैं।
आनंत चतुष्टय सुचार सर्व श्रेष्ठ हैं।।4।।
जो जन्म मरण आदि दोष आठदश कहे।
अर्हंत में न हों अतः निर्दोष वे रहें।।
सर्वज्ञ वीतराग हित के शास्ता हैं जो।
है बार बार वंदना अरिहंत देव को।।5।।
सि(ों के आठ गुण प्रधन रूप से गाये।
जो आठ कर्म के विनाश से हैं बताये।।
यों तो अनंत गुण समुद्र सर्व सि( हैं।
उनको है वंदना जो सि(ि में निमित्त हैं।।6।।
आचार्य देव के प्रमुख छत्तीस गुण कहे।
दीक्षादि दे चउसंघ के नायक गुरु रहें।।
पच्चीस गुणों से युक्त उपाध्याय गुरु हैं।
जो मात्रा पठन पाठनादि में ही निरत हैं।।7।।
जो आत्मा की साध्ना में लीन रहे हैं।
वे मूलगुण अट्ठाइसों से साध्ु कहे हैं।।
आराध्ना सुचार की आराध्ना करें।
हम इन त्रिभेद साध्ु की उपासना करें।।8।।
अरिहंत सि( दो सदा आराध्य गुरु कहे।
त्रायविध् िमुनी आराध्कों की कोटि में रहें।।
अर्हंत सि( देव हैं शु(ातमा कहे।
शु(ात्म आराध्क हैं सूरि स्वात्मा लहें।।9।।
गुरुदेव उपाध्याय प्रतिपादकों में हैं।
शु(ातमा के साध्कों को साध्ु कहे हैं।।
पंाचों ये परम पद में सदा तिष्ठ रहे हैं।
इस हेतु से परमेष्ठी ये नाम लहे हैं।।10।।
इन पाँच के हैं इक सौ तितालीस गुण कहे।
इन मूलगुणों से भी संख्यातीत गुण रहें।।
उत्तर गुणों से युक्त पाँच सुगुरु हमारे।
जिनका सुनाम मंत्रा भवोदध् िसे उबारे।।11।।
हे नाथ! इसी हेतु से तुम पास में आया।
सम्यक्त्व निध्ी पाय के तुम कीर्ति को गाया।।
बस एक विनती पे मेरी ध्यान दीजिये।
कैवल्य ‘ज्ञानमती’ का ही दान दीजिए।।12।।
-दोहा-
त्रिभुवन के चूड़ामणि, अर्हंत सि( महान।
सूरी पाठक साध्ु को, नमूँ नमूँ गुणखान।।13।।