(सप्तविभक्ति समन्वित)
रचयित्री-गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी
श्री षट्खण्डागमोग्रन्थ: ज्ञानवार्धि: सुरैर्नुत:।
श्री षट्खण्डागमं ग्रन्थं, स्तुवन्ति मुनिपुंगवा:।।१।।
श्री षट्खण्डागमेनात्र, ज्ञानदीधितय: स्फुटा:।
श्री षट्खण्डागमायास्मै, नमो मे कोटिशो मुदा।।२।।
श्री षट्खण्डागमात् सार:, पंचसंग्रह-नामत:।
श्री षट्खण्डागमस्याद्य टीकाद्वयं जगन्नुतं।।३।।
श्री षट्खण्डागमे बुद्धिरभीक्ष्णं मे भवेद् ध्रुवं।
श्री षट्खंडागम! त्वं मे देहि ज्ञानं सुकेवलम्।।४।।
श्री वीरस्याब्जसंभूता, गणाधीशावतारिता।
श्रीधरसेनसूरेश्च, शिष्यद्वयेन धारिता।।५।।
पुष्पदंत-भूतबली-मुनिभ्यां गुंफिताऽधुना।
धवलाटीकया सूरि:, वीरसेनो ददौ भुवि।।६।।
सिद्धांतचिंतामणि: सा, टीका मे स्थीयतामिह।
यावत्तावत् ज्ञानमती, केवलं नहि भूयताम्।।७।।