-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी
तर्ज-नागिन धुन……….
आचार्यगुरुवर श्रीशांतिसागर श्रीवीरसागर की मंगल दीप प्रजाल के।
मैं आज उतारूँ आरतिया।।
सदी बीसवीं के श्री प्रथमाचार्य शांतिसागर हैं।
दक्षिण भारत भोजग्राम के, अनुपम रतनाकर हैं।। गुरु जी……
उत्कृष्ट त्याग तपमूर्ति गुरू की मंंगल दीप प्रजाल के,
मैं आज उतारूँ आरतिया।।१।।
भीमगौंडा पितु सत्यवती माँ ने जो बालक जनमा।
वह ही जैन श्रमण संस्कृति का उन्नायक बन चमका।। गुरु जी………
देवेन्द्रकीर्ति मुनिवर जी के शिष्योत्तम श्री गुरुराज की,
मैं आज उतारूँ आरतिया।।२।।
शांतिसिंधु के प्रथम शिष्य श्री वीरसिन्धु मुनिवर जी।
पट्टाचार्य प्रथम बनकर कहलाए वीरसागर जी।। गुरु जी………..
ये ज्ञानमती गणिनी माता के दीक्षागुरु आचार्य थे,
मैं आज उतारूँ आरतिया।।३।।
शांतिसागराचार्य वीरसागराचार्य को वन्दन।
इनकी भक्ति से ही चन्दनामति करें मन पावन।।
गुरु जी करें सदा मन पावन।
इनकी पावन शुभ परम्परा में सप्तम तक आचार्य की।
मैं आज उतारूँ आरतिया।।४।।