तीर्थकृद्धर्मनाथस्त्वं, धर्मसृष्टेर्विधायक:।
तीर्थकृद्धर्मनाथं त्वां, नमामि धर्मवृद्धये।।१।।
तीर्थकृद्धर्मनाथेन, दयाधर्मो निरूपित:।
तीर्थकृद्धर्मनाथाय, नम: कुर्वन्ति साधव:।।२।।
तीर्थकृद्धर्मनाथाद् हि, जातं तीर्थ-मनुत्तरं।
तीर्थकृद्धर्मनाथस्य, भाक्तिका: त्रिदशाधिपा:।।३।।
तीर्थकृद्धर्मनाथे हि, धर्मा: सर्वे सदा स्थिता:।
तीर्थेश! धर्मनाथ! त्वं, संसारात् मां समुद्धर।।४।।