अरनाथो भगवांस्त्वं, मोहारीन् घातक: स्वयं।
त्वामरनाथतीर्थेशं, श्रित्वा भव्या जयन्त्यरीन्।।१।।
अरनाथेन संप्रोक्तो, धर्म: सर्वहितंकर:।
अरनाथाय मे भक्त्या, नमोऽस्तु जन्महानये।।२।।
अरनाथाद् हि संभूता, वाणी सर्वत्र क्षेमदा।
अरनाथस्य षट्खंडं, साम्राज्यं धर्म संस्कृतं।।३।।
अरनाथे स्थिरा भक्ति:, यावत् तावत् न मे शिवं।
भो अरनाथ! मे यच्छ, ध्यानं स्वात्मैकचिन्तनं।।४।।