श्री नमिनाथतीर्थेश:, त्वं भगवान् जगद्हित:।
नमिनाथं नमन्तीह, भूर्भुव: स्व: सुरेश्वरा:।।१।।
नमिनाथेन धर्मोऽत्र, सर्वमान्य: प्रदर्शित:।
नमिनाथाय मे नित्यं, नमोऽस्तु भवहानये।।२।।
नमिनाथाद् जगत्पूज्यं, तीर्थं जातं मुनीहितं।
नमिनाथस्य भक्त्यात्र, गुणान् गृण्हन्ति साधव:।।३।।
नमिनाथे यतीन्द्राश्च, स्थापयन्ति मनो मुदा।
हे नमिनाथ! मच्चित्तं, पुनातु मोहपंकत:।।४।।