(स्वरचित जम्बूस्वामी स्तुति से)
स्वयमपि निजसम्यग्ज्ञानचर्या-बलेन।
हृदयसरसिजे स्वं स्वेन त्वं चिंतयित्वा।।
मुनिगणनुत! स्वस्मिन् स्वस्य हेतोश्च तिष्ठन्।
निजकृतिवशतोऽभूस्त्वं स्वयंभू: स्तुवे त्वाम्।।१।।
स्वयं आप निज सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित रत्नत्रय से।
हृदय कमल में निज के द्वारा निज में निज को तुम ध्याके।।
जम्बूस्वामी निज हेतू निज में स्थित हो तुम निजकृति से।
हुए स्वयंभू स्वयं क्रिया से तव संस्तवन करूँ मुद से।।१।।