(श्री गौतमस्वामीकृत वंदना)
चउवीसाए अरहंतेसु।
अट्ठावयपव्वदे सम्मेदे उज्जंते चंपाए पावाए……….जावो अण्णाओ कावो वि णिसीहियाओ…..णमंसामि।
यावन्ति संति लोकेऽस्मिन्नकृतानि कृतानि च।
तानि सर्वाणि चैत्यानि, वंदे भूयांसि भूतये१।।
तीर्थंकर अर्हंत भगवान चौबीस हैं।
अष्टापद पर्वत-कैलाश पर्वत, सम्मेदशिखर, उज्जंते-ऊर्जयंतगिरि-गिरनारपर्वत, चंपापुरी, पावापुरी ये निर्वाणभूमि-सिद्धक्षेत्र हैं। इनसे अतिरिक्त और जो भी निषीधिका स्थान-मांगीतुंगी पर्वत आदि तथा तीर्थंकर भगवन्तों की गर्भ, जन्म, तप, केवलज्ञानभूमि आदि भी तीर्थ हैं, इन सभी की हम वंदना करते हैं।
इस लोक-संसार में-मध्यलोक में जितनी भी अकृत्रिम और कृत्रिम जिनप्रतिमाएँ हैं, उन सभी जिनचैत्य-जिनप्रतिमाओं को हम स्वात्मसंपत्ति की प्राप्ति के लिए वंदना करते हैं, नमस्कार करते हैं।