—स्रग्विणी छंद—
माघ कृष्णा चतुर्दश्य पूर्वाण्ह में।
नखत अभिजित समय देव ‘वृषभेश’ ने।।
दस सहस साधु सह अद्रि१ वैâलाश से।
मोक्ष पहुँचे नमॅूँ आज मैं भाव से।।१।।
पंचमी चैत्र शुक्ला सुपूर्वाण्ह में।
एक हज्जार मुनिसह सुरोहीणि२ में।।
नाथ ‘अजितेश’ सम्मेदशिखराद्रि से।
मुक्ति पाई नमूं शीश को नाय के।।२।।
चैत्र शुक्ला छठी काल अपराण्ह में।
इक सहस साधु सह नखत मृगशिर भणें।।
‘नाथ संभव’ सुसम्मेद शिखराद्रि से।
सिद्ध आलय पधारे नमूँ भक्ति से।।३।।
छट्ट तिथि शुक्ल वैशाख पूर्वाण्ह में।
एक हज्जार साधू प्रभू साथ में।।
नखत है पुनर्वसु ‘नाथ अभिनंदना’।
मुक्त सम्मेदगिरि से करूँ वंदना।।४।।
चैत्र शुक्ला सु ग्यारस के पूर्वाण्ह में।
एक हज्जार मुनि सह मघा नखत में।।
शैल सम्मेद से ‘नाथ सुमति’ प्रभो।
मुक्ति पाई नमूं सो तिथी मैं विभो।।५।।
‘पद्मप्रभदेव’ फाल्गुन वदी चौथ के।
नखत चित्रा सु अपराण्ह सम्मेद से।।
तीन सौ और चौबीस मुनि साथ ले।
मुक्ति पहुँचे नमूँ मुक्ति लक्ष्मी मिले।।६।।
सप्तमी कृष्ण फाल्गुन विशाखा कहा।
शैल सम्मेद से काल पूर्वाण्ह था।।
पाँच सौ साधु सह ‘नाथ सुपार्श्व जी’।
सिद्धिकांता वरी मैं नमूँ सो तिथी।।७।।
‘चंद्रप्रभ’ फाल्गुनी शुक्ल सप्तम दिने।
काल पूर्वाण्ह ज्येष्ठा सु नक्षत्र में।।
एक साहस्र मुनि साथ सम्मेद से।
मुक्ति पायी नमूँ सिद्ध को प्रेम से।।८।।
भादवा शुक्ल आठें सुअपराण्ह में।
इक सहस साधु सह मूल नक्षत्र में।।
शैल सम्मेद से ‘पुष्पदंतेश’ जी।
सिद्धि पायी नमूं भक्ति से वो तिथी।।९।।
अश्विनी अष्टमी शुक्ल पूर्वाण्ह में।
पूर्वषाढ़ा नखत इक सहस साधु ले।।
शैल सम्मेद से मुक्ति कन्या वरी।
‘नाथ शीतल प्रभू’ को नमूँ शुभ घड़ी।।१०।।
श्रावणी पूर्णिमा उडु धनिष्ठा रहे।
प्रात ‘श्रेयांस’ इक सहस मुनि साथ ले।।
शैल सम्मेद से मुक्तिराजा हुए।
मैं नमूं भव्य के भव जिहाजा हुए।।११।।
भादवा शुक्ला चौदश अपर भाग से।
उडु विशाखा सु चम्पापुरी स्थान से।।
‘वासुपूज्येश’ छै सौ सु इक साधु ले।
मुक्ति पायी नमूँ स्वात्मसिद्धी फले।।१२।।
अष्टमी कृष्ण आषाढ़ प्रादोष१ में।
उत्तराषाढ़ में साधु छै सौ भणें।।
‘नाथ विमलेश’ जी शैल सम्मेद से।
मुक्ति पायी नमूं मुक्ति के लोभ से।।१३।।
चैत्र आमावसी काल प्रादोष में।
शैल सम्मेद से प्रभु अयोगी बने।।
सात हज्जार मुनि साथ मुक्ती गये।
मैं नमूँ ‘श्री अनंतेश’ भक्ती लिये।।१४।।
ज्येष्ठ शुक्ला चतुर्थी सु प्रत्यूष१ में।
शैल सम्मेद से पुष्य नक्षत्र में।।
आठ सौ एक मुनि साथ मुक्ति गये।
‘धर्म तीर्थेश’ को वंदते सुख भये।।१५।।
ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दश्य प्रादोष में।
‘शांति तीर्थेश’ नक्षत्र भरणी तबे।।
साधु नौ सौ संगे शैल सम्मेद से।
मुक्ति पायी नमूँ मुक्ति के प्रेम से।।१६।।
शुक्ल वैशाख एकम नखत कृत्तिका।
एक हज्जार मुनि साथ यम को हता।।
‘कुंथुजिन’ काल प्रादोष में शिव गये।
मैं नमूँ स्वात्म सम्पत्ति के ही लिये।।१७।।
चैत्र आमावसी रेवती नखत में।
एक साहस्र मुनि साथ प्रत्यूष में।।
तीर्थकर ‘अरप्रभू’ शैल सम्मेद से।
मुक्ति पायी नमूँ सौख्य देवो मुझे।।१८।।
पंचमी फाल्गुनी शुक्ल प्रादोष में।
नखत भरणी रहे ‘मल्लि तीर्थेश’ ने।।
पाँच सौ साधु सह शैल सम्मेद से।
मुक्ति पायी नमूँ स्वात्महित प्रेम से।।१९।।
फाल्गुनी कृष्ण बारस सु प्रादोष में।
एक साहस्र मुनिसह अघाती हने।।
शैल सम्मेद से ‘मुनीसुव्रत प्रभो’।
मुक्ति पायी नमूँ मुक्ति के दिवस को।।२०।।
कृष्ण वैशाख चौदश सु प्रत्यूष मेंं
इक सहस साधु सह अश्विनी नखत में।।
शैल सम्मेद से तीर्थकर ‘नमिविभो’।
मुक्ति पायी नमूँ भक्ति से नाथ को।।२१।।
सप्तमी शुक्ल आषाढ़ प्रादोष में।
नखत चित्रा रहे ‘नेमितीर्थेश’ ने।।
पाँच सौ और छत्तीस मुनि साथ ले।
ऊर्जयंताद्रि से मुक्ति पायी भले।।२२।।
सप्तमी शुक्ल श्रावण सुप्रादोष में।
साधु छत्तीस सह उडु१ विशाखा तने।।
‘पार्श्वजिन’ शैल सम्मेद से शिव गये।
वंदते सर्व संकट उपद्रव गये।।२३।।
कार्तिकी कृष्णा मावस२ सुप्रत्यूष में।
‘वीर जिननाथ’ ने स्वाति नक्षत्र में।।
ध्यान पावापुरी में प्रभु ने धरा।
मुक्तिकांता वरी मैं नमूं वो धरा।।२४।।
-चौबोल छंद-
श्री ऋषभदेव चौदह दिन योग, निरोधा नहीं विहार किया।
दो दिन तक वीर प्रभू बाइस, जिन योग रोध इक माह किया।।
श्रीऋषभ वासुपुज नेमिनाथ, पर्यंकासन से मुक्त हुए।
शेष सभी तीर्थंकर, कायोत्सर्गासन से सिद्ध हुए।।२५।।
—दोहा—
चौबिस जिनकी मुक्तितिथि, मुक्तिस्थान पवित्र।
नमूँ ‘ज्ञानमति’ पूर्ण हित, होवे स्वात्म पवित्र।।२६।।