पचास लाख छप्पन सहस, दो सौ तथा पचास। समवसरण की साध्वियां, और अन्य भी खास।। अट्ठाइसों मूलगुण, उत्तर गुण बहुतेक। धारें सबहीं आर्यिका, नमूँ नमूँ शिर टेक।।१।।