-दोहा-
शांतिनाथ तीर्थेश को, नमूँ अनन्तों बार।
कुंथुनाथ अरनाथ को, नमूँ भक्ति उर धार।।१।।
कुंदकुंद आम्नाय में, गच्छ सरस्वती मान्य।
बलात्कारगण सिद्ध है, उनमें सूरि प्रधान।।२।।
सदी बीसवीं के प्रथम, शांतिसागराचार्य।
उनके पट्टाचार्य थे, वीरसागराचार्य।।३।।
देकर दीक्षा आर्यिका, दिया ज्ञानमती नाम।
गुरुवर कृपा प्रसाद से, सार्थ हुआ कुछ नाम।।४।।
वीर अब्द पच्चीस सौ, अड़तालिस जगसिद्ध।
पौष कृष्ण एकादशी, अतिशय तिथी प्रसिद्ध।।५।।
‘‘चक्रवर्ति भगवान भरत, ज्ञानस्थली सुतीर्थ’’।
भारत की राजधानि में, विश्वमान्य हुआ तीर्थ।।६।।
‘पूजासंग्रह’ तीर्थ का, किया संकलन पूर्ण।
विश्ववंद्य इस तीर्थ की, भक्ति फले परिपूर्ण।।७।।
ऋषभदेव सुत भरत से, ‘‘भारत देश’’ प्रसिद्ध।
सभी ग्रंथ में मान्य है, पुनरपि हुआ प्रसिद्ध।।८।।
‘‘परम अहिंसा धर्म’’ यह, जब तक जग में मान्य।
तब तक ही सुख शांति भी, जग में है प्राधान्य।।९।।
चक्रवर्ति श्री भरत का, तीर्थ सर्वजग वंद्य।
तब तक सारे जगत को, देवे सुख अभिनंद्य।।१०।।
ज्ञानमती वैâवल्य हो, यही याचना एक।
श्री भरतेश्वर चरण में, नमूँ नमूँ शिर टेक।।११।।