रचयित्री-आर्यिका चंदनामती
राजधानी दिल्ली से गूंज उठा नाद, भरत जी का भारत है करो सब याद।
यही कहने आई हैं-माँ ज्ञानमती,
सारे जग में छाई हैं-माँ ज्ञानमती।।
जैन एवं वैदिक शास्त्रों में है ऐसा बताया।
प्रभु ऋषभदेव के सुत भरत जी में है भारत समाया।।
भरत जी घर में वैरागी थे, निज आत्मा के अनुरागी थे,
यही कहने आई हैं, माँ ज्ञानमती,
बतलाने आई हैं-माँ ज्ञानमती।।१।।
दिल्ली है भारत का दिल इस देश की राजधानी।
जहाँ भरत जी की प्रतिमा वह तीरथ धरा धन्य मानी।।
चक्रवर्ति भरत ज्ञानस्थली, राजधानी की यह है तीर्थस्थली।
यही कहने आई हैं माँ ज्ञानमती,
बतलाने आई हैं माँ ज्ञानमती।।२।।
तीर्थ पर चन्दनामति, अद्भुत ध्यान का मंदिर है।
रत्नमय पंचवर्णी प्रतिमा युत जहाँ ह्रीं मंत्र हैं।।
विश्वशांति का केन्द्र है यह, आत्मशांति का केन्द्र है यह,
यही कहने आई हैं-माँ ज्ञानमती,
बतलाने आई हैं माँ ज्ञानमती।।३।।