पंचविहो आयारो णाणायारो दंसणायारो तवायारो वीरियायारो चरित्तायारो चेदि।
(१) तत्थ णाणायारो, काले, विणए, उवहाणे, बहुमाणे, तहेव अणिण्हवणे, विंजण-अत्थ-तदुभये चेदि णाणायारो अट्ठविहो।
(२) दंसणायारो अट्ठविहो, णिस्संकिय णिक्कंखिय णिव्विदिगिंछा अमूढदिट्ठी य, उवगूहण ठिदिकरणं वच्छल्ल पहावणा चेदि।
(३) तवायारो वारसविहो, अब्भंतरो छव्विहो बाहिरो छव्विहो चेदि तत्थ बाहिरो अणसणं आमोदरियं वित्तिपरिसंखा रसपरिच्चाओ सरीरपरिच्चाओ विवित्तसयणासणं चेदि। तत्थ अब्भंतरो पायच्छित्तं विणओ वेज्जावच्चं सज्झाओ झाणं विउस्सग्गो चेदि।
(४) वीरियायारो पंचविहो परिहाविदो वरवीरियपरिक्कमेण जहुत्तमाणेण बलेण वीरिएण परिक्कमेण ……।
(५) चरित्तायारो तेरसविहो परिहाविदो, पंचमहव्वयाणि, पंच समिदीओ, तिगुत्तीओ चेदि।
इसमें पाँच महाव्रत के बाद ‘छठा अणुव्रत’ रात्रिभोजन लिया है। यथा-
छट्ठे अणुव्वदे राइभोयणादो वेरमणं……। (पाक्षिक प्रतिक्रमण से उद्धृत)
(१) ज्ञानाचार के ८ भेद हैं-कालशुद्धिपूर्वक स्वाध्याय करना, विनयशुद्धिपूर्वक स्वाध्याय करना, उपधान-कुछ न कुछ नियम लेकर स्वाध्याय करना, बहुमान-आगम कथित विधि से कृतिकर्मविधिपूर्वक भक्तिपाठ आदि करके स्वाध्याय करना, अनिन्हव-ग्रंथ व गुरु के नाम को नहीं छिपाना, व्यंजनशुद्धि-शब्दों का उच्चारण शुद्ध करना, अर्थशुद्धि-वाक्यों का, श्लोक आदि का गुरु परम्परा से शुद्ध अर्थ करना, तदुभयशुद्धि-शब्द और अर्थ दोनों की शुद्धिपूर्वक पढ़ना-पढ़ाना।
(२) दर्शनाचार के ८ भेद हैं-नि:शंकित अंग-जिनेन्द्रदेव द्वारा कथित, गणधरदेव द्वारा ग्रथित एवं पूर्वाचार्यों की परम्परा से प्राप्त देव, शास्त्र, गुरु के विषय में शंका नहीं करना। नि:कांक्षित-भोगों की आकांक्षा नहीं करना, निर्विचिकित्सा-मुनियों के मलिन शरीर को देखकर ग्लानि नहीं करना। अमूढ़दृष्टि-तीन मूढ़ता से रहित होना। उपगूहन-सम्यक्त्व या चारित्र से शिथिल या भ्रष्ट के दोषों को ढकना। स्थितीकरण-सम्यक्त्व या चारित्र से शिथिल होते हुए को स्थिर करना, वात्सल्य-धर्मीजनों में प्रेम करना और प्रभावना-जिनधर्म की प्रभावना करना।
(३) तप आचार के १२ भेद हैं-अनशन, अवमौदर्य, वृत्तपरिसंख्यान, रसपरित्याग, शरीर परित्याग (कायक्लेश) और विविक्तशयनासन ये बाह्य छह तप हैं। ऐसे ही प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग ये छह अंतरंग तप है।
(४) वीर्याचार के ५ भेद हैं-वरवीर्य पराक्रम, यथोक्तमान, बल अनिगूहन, वीर्य अनिगूहन और परक्रम। वीर्य के पराक्रम (उत्साह) का नाम वीर्य पराक्रम है, उत्कृष्ट वीर्य को पराक्रम कहते हैं। इस वरवीर्य पराक्रम से अनशनादि तप करना चाहिए। आगम में मान (परिमाण) से तप करना कहा गया है। उसी मान से तप करना यथोक्तमान वीर्य कहलाता है। आगम में सिक्थप्रास की विधि या चन्द्रायण व्रतों की विधि जिस मान से कही गई है अथवा कायोत्सर्ग करने की विधि कहीं नौ बार, कहीं छत्तीस बार पंच नमस्कार मंत्र का जाप देने रूप कही गई है। वहाँ उसी मान से उसी रूप तप करना चाहिए। आहारादि अन्य शारीरिक बल और स्वाभाविक वीर्य-आत्म सामर्थ्य न छिपाकर अर्थात् आत्म शक्ति के अनुसार तप करना चाहिए। आगम में व्रत पालन का जो उत्कृष्ट क्रम कहा गया है, जैसे मूलगुणों का अनुष्ठान करने वाले को उत्तरगुण का अनुष्ठान करना चाहिए न कि विपरीत, इसका नाम परक्रम वीर्य है।
(५) चारित्राचार के १३ भेद हैं-ये मुख्यरूप से पाँच महाव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्तिरूप हैं। इन्हीं में रात्रिभोजन त्याग अणुव्रत मिला देने से १४ भेद हो जाते हैं। अहिंसा महाव्रत, सत्य महाव्रत, अचौर्य महाव्रत, ब्रह्मचर्य महाव्रत और अपरिग्रह महाव्रत एवं रात्रि भोजन त्याग अणुव्रत। समिति के ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदाननिक्षेपण समिति और प्रतिष्ठापनासमिति। गुप्ति के मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति ये तीन भेद हैं।
विशेष-इन्हीं १३ प्रकार के चारित्र के उत्तर भेदों से १२३४ भेद होकर चारित्रशुद्धि व्रत के या चारित्रलब्धि व्रत के १२३४ व्रत हो जाते हैं।
यहाँ पंचाचार व्रत में ८±८±१२±५±१४·४७ भेदों के ४७ व्रत हैं।
व्रत विधि-इस विधि में आठ ज्ञानाचार के अष्टमी के ८ व्रत, आठ दर्शनाचार के अष्टमी के ८ व्रत, बारह तप आचार के द्वादशी के १२ व्रत, पांच वीर्याचार के पंचमी के ५ व्रत और तेरह चारित्राचार त्रयोदशी के १३ व्रत पुन: रात्रिभोजन त्याग अणुव्रत का भी त्रयोदशी का १ व्रत ऐसे १४ त्रयोदशी के १४ व्रत होते हैं। अथवा बिना तिथि के किसी भी तिथि में व्रत कर सकते हैं।
इस व्रत में उत्तम विधिव्रत के दिन उपवास है, मध्यम विधि में अल्पाहार एवं जघन्य विधि में एकाशन-एक बार शुद्ध भोजन करना है। व्रत के दिन भगवान का पंचामृत अभिषेक, नवदेवता की प्रतिमा हों, तो उनका पंचामृत अभिषेक करके आचार्य परमेष्ठी की पूजा करें।
इन पंचाचार व्रतों को करने से महामुनियों की व पांच आचारों की भक्ति से महान पुण्य का संचय होता है तथा एक न एक दिन पाँच आचारों को पालन करने की योग्यता-मुनिपद की प्राप्ति होगी और परम्परा से निर्ग्रंथ वेष को प्राप्तकर मोक्ष की प्राप्ति नियम से होगी।
श्री गौतमस्वामी प्रणीत इन पंचाचारों के व्रत से तीर्थंकर भगवन्तों की दिव्यध्वनि सुनने का अवसर प्राप्त होगा। इस लोक में नाना प्रकार के मनोरथों व्ाâी सिद्धि व परम्परा से आत्मा की शुद्धि व सिद्धि निश्चित ही होगी।
समुच्चय मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीतपंचाचारेभ्यो नम:।
-ज्ञानाचार के ८ व्रत के ८ मंत्र-
१. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-कालशुद्धिसमन्वितज्ञानाचाराय नम:।
२. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-विनयशुद्धिसमन्वितज्ञानाचाराय नम:।
३. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-उपधानशुद्धिसमन्वितज्ञानाचाराय नम:।
४. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-बहुमानशुद्धिसमन्वितज्ञानाचाराय नम:।
५. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अनिन्हवशुद्धिसमन्वितज्ञानाचाराय नम:।
६. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-व्यंजनशुद्धिसमन्वितज्ञानाचाराय नम:।
७. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अर्थशुद्धिसमन्वितज्ञानाचाराय नम:।
८. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-तदुभयशुद्धिसमन्वितज्ञानाचाराय नम:।
-दर्शनाचार के ८ व्रत के ८ मंत्र-
९. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-नि:शंकितांगसमन्वितदर्शनाचाराय नम:।
१०. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-नि:कांक्षितांगसमन्वितदर्शनाचाराय नम:।
११. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-निर्विचिकित्सांगसमन्वितदर्शनाचाराय नम:।
१२. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अमूढ़दृष्टि-अंगसमन्वितदर्शनाचाराय नम:।
१३. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-उपगूहनांगसमन्वितदर्शनाचाराय नम:।
१४. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-स्थितिकरणांगसमन्वितदर्शनाचाराय नम:।
१५. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-वात्सल्यांगसमन्वितदर्शनाचाराय नम:।
१६. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-प्रभावनांगसमन्वितदर्शनाचाराय नम:।
-तप आचार के १२ व्रत के १२ मंत्र-
१७. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अनशनबाह्यतप:समन्विततप-आचाराय नम:।
१८. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अवमौदर्यबाह्यतप:समन्विततप-आचाराय नम:।
१९. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-वृत्तपरिसंख्यानबाह्यतप:समन्विततप-आचाराय नम:।
२०. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-रसपरित्यागबाह्यतप:समन्विततप-आचाराय नम:।
२१. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-शरीरपरित्यागबाह्यतप:समन्विततप-आचाराय नम:।
२२. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-विविक्तशयनासनबाह्यतप:समन्विततप-आचाराय नम:।
२३. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-प्रायश्चितांतरंगतप:समन्विततप-आचाराय नम:।
२४. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-विनयांतरंगतप:समन्विततप-आचाराय नम:।
२५. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-वैयावृत्यांतरंगतप:समन्विततप-आचाराय नम:।
२६. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-स्वाध्यायांतरंगतप:समन्विततप-आचाराय नम:।
२७. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-ध्यानांतरंगतप:समन्विततप-आचाराय नम:।
२८. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-व्युत्सर्गांतरंगतप:समन्विततप-आचाराय नम:।
-वीर्याचार के ५ व्रत के ५ मंत्र-
२९. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-वरवीर्यपराक्रमसमन्वितवीर्याचाराय नम:।
३०. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-यथोक्तमानसमन्वितवीर्याचाराय नम:।
३१. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-बलानिगूहनसमन्वितवीर्याचाराय नम:।
३२. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-वीर्यानिगूहनसमन्वितवीर्याचाराय नम:।
३३. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-परक्रमसमन्वितवीर्याचाराय नम:।
चारित्राचार के १३ व्रतों के १३ मंत्र एवं छठा अणुव्रत का १ भेद मिलाकर १४ मंत्र
३४. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अहिंसामहाव्रतसमन्वित-चारित्राचाराय नम:।
३५. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-सत्यमहाव्रतसमन्वित-चारित्राचाराय नम:।
३६. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अचौर्यमहाव्रतसमन्वित-चारित्राचाराय नम:।
३७. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-ब्रह्मचर्यमहाव्रतसमन्वित-चारित्राचाराय नम:।
३८. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अपरिग्रहमहाव्रतसमन्वित-चारित्राचाराय नम:।
३९. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-रात्रिभोजनविरतिषष्ठाणुव्रतसमन्वित-चारित्राचाराय नम:।
४०. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-ईर्यासमितिसमन्वित-चारित्राचाराय नम:।
४१. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-भाषासमितिसमन्वित-चारित्राचाराय नम:।
४२. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-एषणासमितिसमन्वित-चारित्राचाराय नम:।
४३. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-आदाननिक्षेपणसमितिसमन्वित-चारित्राचाराय नम:।
४४. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-१प्रतिष्ठापनासमितिसमन्वित-चारित्राचाराय नम:।
४५. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-मनोगुप्तिसमन्वित-चारित्राचाराय नम:।
४६. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-वचनगुप्तिसमन्वित-चारित्राचाराय नम:।
४७. ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-कायगुप्तिसमन्वित-चारित्राचाराय नम:।