श्री शांति कुंथु अरनाथ प्रभू ने, जन्म लिया इस धरती पर।
यह हस्तिनागपुर तीर्थ वंद्य, रत्नों की वृष्टि हुई यहाँ पर।।
यहाँ जम्बूद्वीप बना सुंदर, जिनमंदिर हैं महिमा मंडित।
मेरा यहाँ संघ सहित निवास, स्वाध्याय ध्यान से है हितप्रद।।१।।
श्री भरत चक्रवर्ती का विधान, है इक सौ आठ अर्घ्य सुखप्रद।
यह तन का सर्वरोग हरकर, अतिशय शक्ती देता संतत।।
वीराब्द पचीस सौ सैंतालिस, वैशाख शुक्ल द्वादशि तिथि में।
यह विधान रचना पूर्ण किया, होवे मंगलकर सब जग में।।२।।
श्रीमत् चारित्र चक्रवर्ती, आचार्य शांतिसागर गुरुवर।
बीसवीं सदी के प्रथम सूरि, इन पट्टाचार्य वीरसागर।।
ये दीक्षा गुरुवर मेरे हैं, मुझ नाम रखा था ‘ज्ञानमती’।
इनके प्रसाद से ग्रंथों की, रचना कर हुई अन्वर्थमती।।३।।
श्री भरत चक्रवर्ती का विधान, भाक्तिकगण नितप्रति किया करें।
जिनशासन देव-देवियाँ भी, भक्तों की रक्षा किया करें।।
जब तक हस्तिनापुर में सुमेरु-पर्वत, जब तक शशि-सूर्य रहें।
तब तक मुझ गणिनी ‘ज्ञानमती’ कृत, यह विधान जयशील रहे।।४।।
भरत सिद्ध प्रभु भक्ति से, भक्त बनें धनवान।
आध्यात्मिक सुख शांति से, करें स्वात्म धनवान।।५।।
।। इति प्रशस्ति: समाप्ता।।