रचयित्री-आर्यिका चंदनामती
-बसंततिलका छंद-
भगवान श्री भरत हैं भारत के स्वामी।
तीर्थेश श्री ऋषभदेव पथानुगामी।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।१।।
तेजस्वि पुत्र हो मात यशस्वती के।
ओजस्वि भ्रात हो श्रेष्ठ सुबाहुबलि के।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।२।।
वृषभेश ने निज मुकुट पहना भरत को।
राजा बनाया अयोध्यापति भरत को।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।३।।
पुरुषार्थ धर्म अरु अर्थ व काम क्रम से।
पालन किया फिर मिला था मोक्ष क्रम से।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।४।।
पहले जिनेन्द्र भक्ति करके दिखाया।
सम्यक्त्व क्षायिक प्रभू के निकट पाया।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।५।।
श्री आदिनाथ जिनवर के समवसरण में।
श्रोता प्रमुख बन सुनी थी दिव्यध्वनि को।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।६।।
फिर चक्ररत्न आयुधशाला में प्रगटा।
उसको हि अर्थपुरुषार्थ भरत ने समझा।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।७।।
क्रम प्राप्त कामपुरुषार्थ तृतीय आया।
महलों में पुत्र का जन्म हुआ बताया।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।८।।
पुरुषार्थ कोई उलंघन नहिं किया था।
चिन्तन सदैव आत्मा का ही किया था।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।९।।
प्रभु भक्ति के अनंतर की चक्र पूजा।
फिर पुत्र रत्न का जन्मोत्सव हुआ था।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।१०।।
छह खण्ड भूमि जीती बने चक्रवर्ती।
जिनसेन सूरि विरचित पढ़ना चरित भी।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।११।।
घर में विरागी भरत की हैं कथाएँ।
नगरी अयोध्या की सच्ची है कथा ये।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।१२।।
शंकाओं का समाधान किया भरत ने।
रहते हैं हम महल में वैरागी बनके।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।१३।।
बन चक्रवर्ति कल्पद्रुम यज्ञकर्ता।
देते किमिच्छक सुदान महान दाता।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।१४।।
उपवास शील व्रत युत वे देशव्रति थे।
धर्मोपदेष्टा अवधिज्ञानी प्रमुख थे।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।१५।।
क्षणभर में राज्यवैभव का त्याग करके।
वैâवल्यज्ञान तत्क्षण ही प्राप्त करके।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।१६।।
नवनिधि व चौदह रतन अरु संग साथी।
छोड़े करोड़ों घोड़े लाखों थे हाथी।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।१७।।
अरिहंत केवलि बने फिर सिद्ध आत्मा।
त्रैलोक्यपति भरत प्रभु भगवान आत्मा।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।१८।।
जल में कमल सदृश भिन्न प्रसिद्ध थे वे।
भव भोग से विरत निज अनुरक्त थे वे।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।१९।।
है आज आवश्यकता यह जानने की।
भारतीय संस्कृति को पहचानने की।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।२०।।
श्री ज्ञानमति जी गणिनी माँ ने बताया।
भगवान श्री भरत ने भारत बनाया।।
चक्रीश प्रभु भरत के पद में नमूँ मैं।
सम्पूर्ण शांतिहित मंगल ध्वनि करूँ मैं।।२१।।
तर्ज-गंगा यमुना में जब तक के……
भारत-भरत का भारत…….२
चंदा सूरज में जब तक के ज्योती रहे,
चक्रवर्ती भरत प्रभु की कीर्ति रहे-कीर्ति रहे।
भारत…..भरत का भारत-२….।
आराधन भरत का करें हम सभी,
‘‘चन्दनामति’’ करें वन्दना हम सभी-वन्दना हम सभी।
भारत…..भरत का भारत-२….।
हो जय जय भारत……भरत का भारत……।।