रचयित्री-गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी
ह्रीं कारोऽयं महामंत्र:, सर्वविघ्नविनाशक:।
ह्रीं कारं सर्वमंत्रेषु, मान्यं कुर्वन्ति साधव:।।१।।
ह्रीं कारेण पिशाचाद्या:, पलायन्ते क्षणादिह।
ह्रीं काराय मुदा नित्यं, त्रेधा भक्त्या नमो नम:।।२।।
ह्रीं कारात् सर्वमंत्राश्च, भवन्ति शक्तिशालिन:।
ह्रीं कारस्य महाशक्तिं, मुनीन्द्रा: कथयन्त्यपि।।३।।
ह्रीं कारे मे मनो नित्यं, स्थिरीभूतं भवेत् सदा।
ह्रीं कार! मोक्षबीज! त्वं, मां रक्ष सर्वव्याधित:।।४।।
ह्री में श्वेत अर्धचंद्र में चंद्रप्रभ-पुष्पदंत स्वामी, नीली बिन्दु में मुनिसुवत व नेमिनाथ, लाल कला में पद्मप्रभ व वासुपूज्य स्वामी, ‘ई’ की मात्रा में सुपार्श्वनाथ व पार्श्वनाथ पुन: पीले ‘ह्र’ में शेष सोलह तीर्थंकर विराजमान हैं। ऐसे पंचवर्णी ‘ह्री ’ में पाँचों वर्ण के चौबीस तीर्थंकर विराजमान हैं।
राजधानी दिल्ली के कनॉट प्लेस क्षेत्र में निर्मित श्री भरत ज्ञानस्थली तीर्थ पर विराजमान प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव को, प्रथम चक्रवर्ती भरत सिद्ध भगवान को और ‘ह्री ँ में विराजमान चौबीसों तीर्थंकरों को मेरा अनंत अनंत बार नमस्कार होवे।