एतानि द्वादशांगस्पर्शनानि पृथक्पृथगंभ: स्पर्शनपूर्वकाणि कर्तव्यानि। इति द्वादशांगस्पर्शनविधि: इत्याचमनविधानम्।
(इन द्वादश अंगों का स्पर्शन पृथक्-पृथक् जल स्पर्शनपूर्वक करना चाहिए।)
पूरकं विधाय अंगुष्ठानामिकाभ्यां नासाविवरद्वयं संवृत्य कुंभकं कुर्वन्नेव-
प्राणायामविधि
णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं। इति गाथांशद्वयं जप्त्वान्ते रेचकं कुर्यात्। अनेनैव विधिना-
णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाणं। इति गाथांशद्वयं तथा।
णमो लोए सव्वसाहूणं। इत्येकांशं जपेत्।
।।इति प्राणायामविधि:।।
(पूरक विधि से अंगूठा और अनामिका से नाक के छिद्र को बंद कर कुंभक करते हुए मंत्र के दो पदों को जपें, अंत में रेचक विधि करें। ऐसे ही दो पदों के उच्चारण में भी पूरक, कुंभक, रेचक विधि है पुन: ‘णमो लोए सव्वसाहूणं’ में भी तीनों विधि हैं। ‘णमो अरिहंताणं’ बोलते हुए श्वांस को खीचें यही पूरक है, अनन्तर कुछ सेकेण्ड अंदर से श्वांस रोके रखें यह कुंभक है, अनंतर ‘णमो सिद्धाणं’ बोलते हुए श्वांस को छोड़ें यह रेचक है। ऐसे ही णमो आइरियाणं में पूरक व कुंभक, अनन्तर णमो उवज्झायाणं बोलते हुए रेचक होता है। तथैव णमो लोए में पूरक कुंभक करके ‘सव्वसाहूणं’ में रेचक प्राणायाम होता है। यह सब मन से ही होता है उच्चारण में नहीं बनता है।
श्वांस की वायु को मस्तक तक पहुँचाना पूरक है, वायु को नाभिस्थान में लाकर रोकना कुंभक है और रुकी वायु को धीरे-धीरे बाहर निकालना रेचक है।
ॐ णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं।
इत्यपराजितमंत्रमष्टशतवारान्जपेत्।।इति जप:।।
(पुन: १०८ बार या २७ बार या ९ बार महामंत्र का जाप्य करें।)