-दोहा-
शांतिनाथ तीर्थेश को, नमूँ अनन्तों बार।
कुंथुनाथ अरनाथ को, नमूँ भक्ति उरधार।।१।।
कुंदकुंद आम्नाय में, गच्छ सरस्वति मान्य।
बलात्कारगण सिद्ध है, उनमें सूरि प्रधान।।२।।
सदी बीसवीं के प्रथम, शांतिसागराचार्य।
उनके पट्टाचार्य थे, वीरसागराचार्य।।३।।
देकर दीक्षा आर्यिका, दिया ज्ञानमती नाम।
गुरुवर कृपा प्रसाद से, सार्थ हुआ कुछ नाम।।४।।
वीर अब्द पच्चीस सौ, छ्यालिस जगत्प्रसिद्ध।
महावीर निर्वाण की, बेला अतिशय सिद्ध।।५।।
वीर अब्द पच्चीस सौ, सैंतालिस जग मान्य।
कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा, नव संवत्सर धन्य।।६।।
णमोकार यह मंत्र है, त्रयकालिक महामंत्र।
अनादि-अनिधन जगत में, मुनिनुत प्रथम सुमंत्र।।७।।
सर्व मंगलों में प्रथम, मंगल-उत्तम मान्य।
शरणभूत त्रैलोक्य में, अतिशय महिमा धन्य।।८।।
जब तक जग में रवि, शशी, परम अहिंसा धर्म।
तब तक यह मंगल कृती, देवे शिवपथ मर्म१।।९।।