तडदो बारसहस्सं गंतूणिह तेत्तियुदयवित्थारो।
गोदमदीओ चिट्ठदि वायव्वदिसम्हि वट्टुलओ।।९१०।।
तटतो द्वादशसहस्रं गत्वेह तावदुदयविस्तार:।
गौतमद्वीप: तिष्ठति वायव्यदिशि वर्तुल:।।९१०।।
तड। इह लवणे अभ्यन्तरतटात् द्वादशसहस्र १२००० योजनानि गत्वा तावन्मात्रोदय: १२००० तावन्मात्रविस्तार: १२००० वृत्ताकारो वायव्यां दिशि गौतमाख्यो द्वीपस्तिष्ठति।।९१०।।
बहुवण्णणपासादा वणवेदीसहिय तेसु दीवेसु।
तस्सामी वेलंधरणागा सगदीवणामा ते।।९११।।
बहुवर्णनप्रासादा: वनवेदीसहितेषु तेषु द्वीपेषु।
तत्स्वामिनो बेलन्धरनागा: स्वकद्वीपनामानस्ते।।९११।।
बहु। वनैर्वेदिकाभि: सहितेषु तेषु द्वीपेषु सर्वेषु बहुवर्णनोपेता: प्रासादा: सन्ति। तद्द्वीपस्वामिनो ये बेलंधरनागास्ते स्वकीयस्वकीयद्वीपनामान:।।९११।।
गाथार्थ :—जितने योजन विस्तार और उँâचाई वाला द्वीप है, लवण समुद्र के अभ्यन्तर तट से बाहर की ओर उतने ही योजन दूर जाकर वायव्य दिशा में गोल आकार वाला गौतम नाम का द्वीप है।।९१०।।
विशेषार्थ :—लवण समुद्र के अभ्यन्तर तट से बाहर की ओर वायव्य दिशा में १२००० योजन दूर जाकर १२००० योजन उँâचा और १२००० योजन चौड़ा गोल आकार वाला गौतम नाम का द्वीप है।
गाथार्थ :—वे सब द्वीप वनों और वेदिकाओं से युक्त हैं, उनमें महान् विभूतियुक्त प्रासाद हैं, उन द्वीपों के स्वामी अपने-अपने द्वीप सदृश नाम वाले वेलन्धर जाति के नागकुमार देव हैं।।९११।।