मागहतिदेवदीवत्तिदयं संखेज्जजोयणं गत्ता।
तीरादो दक्खिणदो उत्तरभागेवि होदित्ति।।९१२।।
मागधत्रिदेवद्वीपत्रितयं संख्यातयोजनं गत्वा।
तीरात् दक्षिणत: उत्तरभागेऽपि भवतीति।।९१२।।
मागह। भरतक्षेत्रे दक्षिणतस्तीरात् संख्यातयोजनानि गत्वा मागधवरतनुप्रभासाख्यामराणां त्रयाणां देवानां तत्तन्नामद्वीपत्रयमस्ति, ऐरावतोत्तरभागेऽपि तथा द्वीपत्रयमस्ति।।९१२।।
गाथार्थ :—समुद्र के दक्षिण तट से संख्यात योजन आगे जाकर मागध आदि तीन देव हैं और इन्हीं नाम के धारी तीन द्वीप हैं। उत्तर भाग अर्थात् ऐरावत क्षेत्र में भी तीन द्वीप हैं।।९१२।।
विशेषार्थ :—भरत क्षेत्र की गङ्गा सिन्धु नदियों के प्रवेशद्वार और एक जम्बूद्वीप का द्वार इन तीनों द्वारों के सम्मुख संख्यात योजन आगे जाकर मागध, वरतनु और प्रभास नामक तीन देवों के इसी नाम वाले तीन द्वीप हैं। इसी प्रकार उत्तर भाग अर्थात् ऐरावत क्षेत्र में भी तीन द्वीप हैं।