तदनन्तर अत्यन्त उत्सुकता से भरे राम ने शीघ्र ही पूछा कि हे विद्याधरों! बतलाओ कि लंका कितनी दूर है?।।९९।। हे देव! किसी तरह उच्चारण किया हुआ जिसका नाम ही भय से ज्वर उत्पन्न कर देता है उसके विषय में हम आपके सामने क्या कहें ?।।१०३।। क्षुद्र शक्ति के धारक हम लोग कहाँ और लंका का स्वामी रावण कहाँ ? अतः इस समय आप इस जानी हुई वस्तु की हठ छोड़िए।।१०४।। अथवा हे प्रभो! यह सुनना आवश्यक ही है तो सुनिए कहने में क्या दोष है ? आपके समक्ष तो कुछ कहा जा सकता है।।१०५।। दुष्ट मगरमच्छों से भरे हुए इस लवण समुद्र मेंं अनेक आश्चर्यकारी स्थानों से युक्त प्रसिद्ध राक्षसद्वीप है।।१०६।। जो सब ओर से सात योजन विस्तृत है तथा कुछ अधिक इक्कीस योजन उसकी परिधि है।।१०७।। उसके बीच में सुमेरु पर्वत के समान त्रिकूट नाम का पर्वत है जो नौ योजन ऊँचा और पचास योजन चौड़ा है।।१०८।। सुवर्ण तथा नाना प्रकार के मणियों से देदीप्यमान एवं शिलाओं के समूह से व्याप्त है। राक्षसों के इन्द्र भीम ने मेघवाहन के लिए वह दिया था।।१०९।। तट पर उत्पन्न हुए नाना प्रकार के चित्र-विचित्र वृक्षों से सुशोभित उस त्रिकूटाचल के शिखर पर लंका नाम की नगरी है जो मणि और रत्नों की किरणों तथा स्वर्ग के विमानों के समान मनोहर महलों एवं क्रीड़ा आदि के योग्य सुन्दर प्रदेशों से अत्यन्त शोभायमान है।।११०-१११।। जो सब ओर से तीस योजन चौड़ी है तथा बहुत बड़े प्राकार और परिखा से युक्त होने के कारण दूसरी पृथिवी के समान जान पड़ती है।।११२।। लंका के समीप में और भी ऐसे स्वाभाविक प्रदेश हैं जो रत्न, मणि तथा स्वर्ण से निर्मित हैं।।११३।। वे सब प्रदेश उत्तमोत्तम नगरों से युक्त हैं, राक्षसों की क्रीड़ा-भूमि हैं तथा महाभोगों से युक्त विद्याधरों से सहित हैं।।११४।। सन्ध्याकार, सुवेल, कांचन, ह्लादन, योधन, हंस, हरिसागर और अर्द्ध स्वर्ग आदि अन्य द्वीप भी वहाँ विद्यमान हैं जो समस्त ऋद्धियों तथा भोगों को देने वाले हैं, वन-उपवन आदि से विभूषित हैं तथा स्वर्ग प्रदेशों के समान जान पड़ते हैं।।११५-११६।। लंकाधिपति रावण भृत्यवर्ग से आवृत हो मित्रों, भाइयों, पुत्रों, स्त्रियों तथा अन्य इष्टजनों के साथ उन प्रदेशों में क्रीड़ा किया करता है।।११७।। क्रीड़ा करते हुए उस विद्याधरों के अधिपति को देखकर मैं समझता हूँ कि इन्द्र भी आशंका को प्राप्त हो जाता है।।११८।। जिसका भाई विभीषण लोक में अत्यधिक बलवान् है, युद्ध में बड़े-बड़े लोगों के द्वारा भी अजेय है और राजाओं में श्रेष्ठ है।।११९।। बुद्धि द्वारा उसकी समानता करने वाला देव भी नहीं है फिर मनुष्य तो निश्चित ही नहीं है। जगत्प्रभु रावण को उसी एक भाई का संसर्ग प्राप्त होना पर्याप्त है।।१२०।। उसका गुणरूपी आभूषणों से सहित एक छोटा भाई भी है जो कुम्भकर्ण इस नाम से प्रसिद्ध है तथा त्रिशूल नामक महाशस्त्र से सहित है।।१२१।।