गणिनी-आर्यिका-श्री ब्राह्मी माता की वंदना
श्री ऋषभदेव के समवसरण में, ब्राह्मी-गणिनी मानी हैं।
श्री ऋषभदेव की पुत्री ये, साध्वी में प्रमुख बखानी हैं।।
रत्नत्रय गुणमणि से भूषित, ये शुभ्र वस्त्र को धारे हैं।
इनकी स्तुति वंदन भक्ती, हमको भवदधि से तारे है।।१।।
आर्यिका श्री सुंदरी माता आदि की वंदना
सुंदरी आर्यिका मात आदि, त्रय लाख पचास हजार कही।
मूलोत्तर गुण से भूषित ये, इन्द्रादिक से भी पूज्य कहीं।।
इनकी भक्ती स्तुति करके, हम त्याग धर्म को भजते हैं।
संसार जलधि से तिरने को, आर्यिका मात को नमते हैं।।२।।
ऋषभदेव के शासन की आर्यिकाओं की वंदना
श्री ऋषभदेव के शासन में, आर्यिका मात अगणित मानी।
उनके चरणों में नित्य नमूँ, ये संयतिका पूज्य मानी।।
इनकी स्तुति पूजा करके, हम त्याग धर्म को भजते हैं।
संसार जलधि से तिरने को, आर्यिका मात को नमते हैं।।३।।
चौबीस तीर्थंकर के समवसरण की आर्यिकाओं की वंदना
पचास लाख छप्पन सहस, दो सौ तथा पचास।
समवसरण की साध्वियां, और अन्य भी खास।।
अट्ठाइसों मूलगुण, उत्तर गुण बहुतेक।
धारें सबहीं आर्यिका, नमूँ नमूँ शिर टेक।।१।।
सर्व आर्यिका वंदना
जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में, चतुर्थ काल से लेकर भी।
इस पंचमकाल के अंतिम तक, सर्वश्री संयतिका होंगी।।
ब्राह्मी माता से सर्वश्री, माता तक जितनी संयतिका।
जो हुईं हो रहीं होवेंगी, मैं नमूँ भक्ति भवदधि नौका।।२।।