रचयित्री-आर्यिका श्री चंदनामती माताजी
सबसे बड़े भगवान का मस्तकाभिषेक,
मस्तकाभिषेक-महामस्तकाभिषेक।।
ऋषभगिरी के ऋषभदेव को, नमन करो सिर टेक……मस्तकाभिषेक।।०।।
प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की, सबसे बड़ी प्रतिमा।
नाभिराय मरुदेवी के नन्दन, युग के आदिब्रह्मा।।
ऋषभगिरी मांगीतुंगी में, दीर्घकाय भगवान खड़े हैं।
मेरु सदृश प्रभु के मस्तक पर, करना है अभिषेक,
मस्तकाभिषेक…………।।१।।
छह वर्षों के बाद प्रथम, यह अवसर आया है।
वरदहस्त श्री ज्ञानमती, माता का पाया है।।
सन्तों के आशीष मिल रहे, जन जन के मन कमल खिल रहे,
करे चन्दनामती नमन, प्रभु चरणों में सिर टेक,
मस्तकाभिषेक…………।।२।।
पुण्यामृत को बरसातीं, पंचामृत की धारा।
शिख से लेकर नख तक, भीगा प्रभु का तन सारा।।
भीगे हैं भक्तों के तन मन, दृढ़ हो उनका सम्यग्दर्शन।
नील गगन के तले प्रभु जी रहे जगत को देख,
मस्तकाभिषेक…………।।३।।