तर्ज- माई रे माई ……………………..
तीर्थ अयोध्या जन्मभूमि से, हुआ है रथ का प्रवर्तन।
ऋषभदेव की जयकारों से, गूंजे हर घर आंगन।।
जय हो जिनशासन की जय, अयोध्या जी तीरथ की जय-२।।१।।
एक बार जो तीर्थ अयोध्या, का दर्शन करता है।
जन्म सफल हो जाता उसका, भवबंधन कटता है।।
लेकर जन्म अजन्मा बनने, का पुरुषार्थ करें हम।
ऋषभदेव की जयकारों से, गूंजे हर घर आंगन।।
जय हो जिनशासन की जय, अयोध्या जी तीरथ की जय जय-२।।२।।
तीर्थ अयोध्या की प्रभावना, का है रथ ये सुन्दर।
मानो यह तीरथ यात्रा का, देता शुभ आमंत्रण।।
गणिनी माता ज्ञानमती ने, किया है रथ का प्रवर्तन।
ऋषभदेव की जयकारों से, गूंजे हर घर आंगन।।
जय हो जिनशासन की जय अयोध्या जी तीरथ की जय-२।।३।।
नगरि अयोध्या में जनमे, पाँचों तीर्थंकर प्रतिमा।
स्वर्णमयी रथ में ये विराजी, इनकी अद्भुत महिमा।।
रत्नवृष्टि चन्दनामती कर, इन्हें करो शत वन्दन।
ऋषभदेव की जयकारों से, गूंजे हर घर आंगन।।
जय हो जिनशासन की जय, अयोध्या जी तीरथ की जय-२।।४।।
तर्ज-मीठे रस से भरियों री…………
आठों द्रव्यों से सजी, पूजन थाली लाओ रे, पूजन थाली लाओ रे।
शाश्वत तीर्थ की प्रभावना के गीत गाओ रे।।०।।
अयोध्या के रथ का प्रवर्तन हुआ है।
जिनशासन के भक्तों को तीर्थ दर्शन हुआ है।।
जन्मभूमि में प्रभू का पलना झुलाओ-सुन्दर लोरी गाओ रे
शाश्वत तीर्थ की प्रभावना के गीत गाओ।।१।।
सबसे बड़ी साध्वी गणिनी ज्ञानमती माताजी।
उनके ही करकमलों से प्रवर्तित ये रथ है।।
भक्तों! लाओ घिसके केशर स्वस्तिक बनाओ-रथयात्रा कराओ
शाश्वत तीर्थ की प्रभावना के गीत गाओ…..।।२।।
‘‘चन्दनामती’’ इस रथ पे, रत्नों की वृष्टि करो।।
जन्मभूमि के रत्नों को, दे सबकी तृप्ति करो।
तोरणद्वारों को लगाके, वन्दनवार सजाओ-वन्दनबार सजाओ।
शाश्वत तीर्थ की प्रभावना के गीत गाओ।।३।।
तर्ज-बाजी बाजी रे बधाई….
आया आया रे अयोध्या जी का रथ आया रे। आया आया रे…
महातीर्थ की प्रभावना का रंग छाया रे..।।०।।
लाया लाया रे सन्देशा-प्रभु जी का लाया रे-२
गणिनी ज्ञानमती माता ने डंका बजाया रे।।०।।
सुन्दर सुहाने पाँच जिनवर विराजे,
अयोध्या में जन्मे तीर्थंकर कहाते।
सौधर्म इन्द्र ने आ करके, जन्मोत्सव मनाया रे,
महातीर्थ की प्रभावना का रंग छाया रे।।१।। आया आया…..
अयोध्या में तीस चौबीसी की हैं प्रतिमा,
इक सौ एक पुत्र भगवन मंदिर की महिमा
अयोध्या में मानो फिर से चौथा काल आया रे,
महातीर्थ की प्रभावना का रंग छाया रे।।२।। आया आया…..
तीनलोक में अधो-मध्य-ऊर्ध्वलोक है,
‘‘चन्दनामती’’ ऊपर बना सिद्धलोक है।
अयोध्या से स्वामी जी का आमंत्रण आया है,
महातीर्थ की प्रभावना का रंग छाया रे।।३।। आया आया…..