—स्रग्विणी छंद—
तीर्थकर के पिता तीन जग के पिता।
इन्द्र उन चर्ण में शीश नावें सदा।।
तीर्थकर पुण्य माहात्म्य मुनि गावते।
इंद्र नागेंद्र चक्रेंद्र शिर नावते।।१।।
नाथ का काल कौमार्य जो वंदते।
देव बालक बनें संग उन खेलते।।
तीर्थकर पुण्य माहात्म्य मुनि गावते।
इंद्र नागेंद्र चक्रेंद्र शिर नावते।।२।।
राज्य का काल जो वंदते भाव से।
इंद्र आज्ञा उन्हों की सदा पालते।।
तीर्थकर पुण्य माहात्म्य मुनि गावते।
इंद्र नागेंद्र चक्रेंद्र शिर नावते।।३।।
जो नमें आप छद्मस्थ के काल को।
वे हि दीक्षा स्वयं१ ग्राह्य पद प्राप्त हों।।
तीर्थकर पुण्य माहात्म्य मुनि गावते।
इंद्र नागेंद्र चक्रेंद्र शिर नावते।।४।।
केवली काल नमते उन्हों के पुरा।
पग तले स्वर्ण पंकज खिलाते सुरा।।
तीर्थकर पुण्य माहात्म्य मुनि गावते।
इंद्र नागेंद्र चक्रेंद्र शिर नावते।।५।।
पूर्ण आयू प्रभू की सदा जो नमें।
मृत्यु को हन सदा काल तक जीवतें।।
तीर्थकर पुण्य माहात्म्य मुनि गावते।
इंद्र नागेंद्र चक्रेंद्र शिर नावते।।६।।
मल्लि वसुपूज्य सुत नेमि जिनपार्श्वजी।
वीर जिन पाँच ये ब्रह्मचारी यती।।
तीर्थकर पुण्य माहात्म्य मुनि गावते।
इंद्र नागेंद्र चक्रेंद्र शिर नावते।।७।।
बालयति पाँच तीर्थेश जो वंदते।
ब्रह्म२ ऋषिदेव हों मुक्तिवर होवते।।
तीर्थकर पुण्य माहात्म्य मुनि गावते।
इंद्र नागेंद्र चक्रेंद्र शिर नावते।।८।।
पालने में भि प्रभु ज्ञान महिमा धरें।
साधु दर्शन करत तत्त्व३ शंका हरें।।
तीर्थकर पुण्य माहात्म्य मुनि गावते।
इंद्र नागेंद्र चक्रेंद्र शिर नावते।।९।।
गर्भ में आवते मास छह पूर्व ही।
इंद्र गण खूब उत्सव करें नित्य ही।।
तीर्थकर पुण्य माहात्म्य मुनि गावते।
इंद्र नागेंद्र चक्रेंद्र शिर नावते।।१०।।
धन्य हो धन्य हो हे पिता धन्य हो।
धन्य विश्वेश्वरी मात जगवंद्य हो।।
तीर्थकर पुण्य माहात्म्य मुनि गावते।
इंद्र नागेंद्र चक्रेंद्र शिर नावते।।११।।
धन्य तुम रूप सौंदर्य अद्भुत खनी।
तीन जग में किसी से न उपमा बनी।।
तीर्थकर पुण्य माहात्म्य मुनि गावते।
इंद्र नागेंद्र चक्रेंद्र शिर नावते।।१२।।
धन्य तुम जन्म कौमार्य अरु राज्य भी।
धन्य छद्मस्थता केवली काल भी।।
तीर्थकर पुण्य माहात्म्य मुनि गावते।
इंद्र नागेंद्र चक्रेंद्र शिर नावते।।१३।।
धन्य हैं द्रव्य अरु क्षेत्र शुभ काल भी।
धन्य हैं भाव प्रभु आज तत्काल भी।।
तीर्थकर पुण्य माहात्म्य मुनि गावते।
इंद्र नागेंद्र चक्रेंद्र शिर नावते।।१४।।
मैं नमूँ मैं नमूँ आपको भाव से।
‘ज्ञानमती’ पूर्ण हो आप गुण गावते।।
तीर्थकर पुण्य माहात्म्य मुनि गावते।
इंद्र नागेंद्र चक्रेंद्र शिर नावते।।१५।।