हस्तिनागपुर में हुये, त्रिभुवन गुरु ललाम।
नमूँ नमूँ नत शीश मैं, शांति कुंथु अर नाम।।१।।
-शंभु छंद-
जय शांतिनाथ तुम तीर्थंकर, चक्री औ कामदेव जग में।
माता ऐरावति धन्य हुईं, पितु विश्वसेन भी धन्य बने।।
भादों वदि सप्तमि गर्भ बसे, जन्में वदि ज्येष्ठ चतुर्दशि में।
इस ही तिथि में दीक्षा लेकर, सित पौष दशमि केवली बने।।२।।
शुभ ज्येष्ठ कृष्ण चौदश तिथि में, शिवपद साम्राज्य लिया उत्तम।
इक लाख वर्ष आयू चालिस, धनु१ तुंग चिह्नमृग तनु स्वर्णिम।।
हे शांतिनाथ! तीनों जग में, इक शांती के दाता तुमही।
इसलिये भव्यजन तुम पद का, आश्रय लेते रहते नितही।।३।।
श्री कुंथुनाथ पितु सूरसेन, माँ श्रीकांता के पुत्र हुए।
श्रावणवदि दशमी गर्भ बसे, वैशाख सितैकम२ जन्म लिये।।
इस ही तिथि में दीक्षा लेकर, सित चैत्र तीस केवलज्ञानी।
वैशाख सितैकम मुक्ति बसे, पैंतिस धनु तुंग देह नामी।।४।।
पंचानवे सहसवर्ष आयू, स्वर्णिम तनु छाग३ चिह्न प्रभु को।
सत्रहवें तीर्थंकर छट्ठे, चक्रेश्वर कामदेव तनु हो।।
तुम पदपंकज का आश्रय ले, भविजन भववारिधि तरते हैं।
निजआत्मसौख्य अमृत पीकर, अविनश्वर तृप्ती लभते हैं।।५।।
अरनाथ! सुदर्शन पिता आप, माँ ख्यात मित्रसेना जग में।
फाल्गुन सित तीज गर्भ आये, मगसिर सित चौदश को जन्में।।
मगसिर सित दशमी दीक्षा ले, कार्तिक सित बारस ज्ञान उदय।
प्रभु चैत्र अमावस्या शिवपद, धनु तीस तुंग तनु सुवरणमय।।६।।
चौरासी सहसवर्ष आयू, प्रभु चिह्न मीन१ से जग जानें।
हम भी तुम पद पंकज में नत, सब रोग शोक संकट हानें।।
जय जय रत्नत्रय तीर्थंकर, जय शांति कुंथु अर तीर्थेश्वर।
जय जय मंगलकर लोकोत्तम, जय शरणभूत हैं परमेश्वर।।७।।
मैं शुद्ध बुद्ध हूँ सिद्ध सदृश, मैं गुण अनंत के पुञ्जरूप।
मैं नित्य निरंजन अविकारी, चििंच्चतामणि चैतन्यरूप।।
निश्चयनय से प्रभु आप सदृश, व्यवहार नयाश्रित संसारी।
तुम भक्ती से यह शक्ति मिले, निज संपत्ति प्राप्त करूँ सारी।।८।।
तुम पद भक्ति प्रसाद से, मिले यही वरदान।
‘ज्ञानमती’ निधि पूर्ण हो, मिले अंत निर्वाण।।९।।