अतिरुचिरा छन्द:-(१३ अक्षरी)
महामुनिर्व्रतगुणगुप्तिधर्मयुक्।
सुतीर्थकृत् विकसितभव्यपंकज:।।
सभा बभौ सुरनरसेविता च ते।
मनोम्बुजे मे वस धर्मनाथ! भो:!।।१!!
चंचरीकावली छंद-(१३ अक्षरी)
मता धन्या मध्ये योषितां सुप्रभा सा।
सुरत्नानां वृष्ट्या रत्नपू: रत्नसू: स्यात्।।
त्रयोदश्यां राधे यो सिते गर्भमाप्नोत्।
स धर्मेशो नित्यं मे मनोब्जे हि तिष्ठेत्।।२।।
मंजुभाषिणी छन्द:-(१३ अक्षरी)
नृपभानुराजसुत एष विश्रुत:।
सुसिते त्रयोदशदिने हि माघजे।।
जननोत्सव: सुरगणाधिपै: कृत:।
वरतत्तिथौ च किल दीक्षितो जिन:।।३।।
मत्तमयूर छन्द:-(१३ अक्षरी)
पौषे शुक्ले, केवलबोधेन सुपूर्णा।
पूर्णा जाता, सा तिथिरेषा सुखकर्त्री।।
ज्येष्ठ शुक्ले, नाथ! चतुर्थ्यां शिवभर्ता।
ज्ञानानंदं, स्वात्मसुखं मे कुरु देव!।।४।।
अनुष्टुप् छंद-(१३ अक्षरी)
दशलक्षसमाजीवी, तप्तकांचनसच्छवि:।
खाष्टैकहस्तसद्देहो, स जिन: वङ्कालाञ्छन:।।५।।
चन्द्रिका छंद-(१३ अक्षरी)
जिनवर! हृदि मे पादपंकजं ते।
मम खलु हृदयं तेंऽघ्रिपंकजे स्यात्।।
नहि भवति च यावत् निजात्मसिद्धि:।
मयि भवतु हि तावत् त्वदंघ्रिभक्ति:।।६।।