रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
नाम तिहारा तारनहारा कब तेरा दर्शन होगा।
तेरी प्रतिमा इतनी सुन्दर, तू कितना सुन्दर होगा।। टेक.।।
जाने कितनी माताओं ने, कितने सुत जन्में हैं।
पर इस वसुधा पर तेरे सम, कोई नहीं बने हैं।।
पूर्व दिशा में सूर्य देव सम, सदा तेरा सुमिरन होगा।
तेरी प्रतिमा इतनी सुन्दर, तू कितना सुन्दर होगा।।१।।
पृथ्वी के सुन्दर परमाणू, सब तुझमें ही समा गए।
केवल उतने ही अणु मिलकर, तेरी रचना बना गए।।
इसीलिए तुझ सम सुन्दर नहिं, कोई नर सुन्दर होगा।
तेरी प्रतिमा इतनी सुन्दर, तू कितना सुन्दर होगा।।२।।
मन में तव सुमिरन करने से, पाप सभी नश जाते हैं।
यदि प्रत्यक्ष करें तव दर्शन, मनवांछित फल पाते हैं।।
आज ‘‘चंदनामती’’ प्रभू का, अनुपम गुण कीर्तन होगा।
तेरी प्रतिमा इतनी सुन्दर, तू कितना सुन्दर होगा।।३।।
रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज-महाकुंभ का पर्व महान……..
जिनमंदिर का निर्माण, करो सब मिलके करो।
करो सब मिलके करो, करो सब मिलके करो…,
इससे मिलता है पुण्य महान, करो सब मिल के करो।।टेक.।।
मंदिर में राजें जिनवर प्रतिमा, तीर्थंकर चौबीसों की महिमा।
चौबीसों प्रभू का गुणगान, करो सब मिलके करो।।जिन.।।१।।
मंदिर में बजते हैं घंटे झालर, जिनवर पे ढुरते हैं चौंसठ चामर।
प्रभु आरती का पुण्य महान, करो सब मिलके करो।।जिन.।।२।।
मंदिर व प्रतिमा निर्माण जैसा, दूजा न कोई है पुण्य वैसा।
धन बढ़ता है करने से दान, करो सब मिलके करो।।जिन.।।३।।
मंदिर में सोने की ईंट लगाओ, सोना ही सोना जीवन में पाओ।
अपनी आत्मा को स्वर्ण समान, करो सब मिलके करो।।जिन.।।४।।
मंदिर के दर्शन की कर लो प्रतिज्ञा, ‘‘चन्दनामती’’ आज लेना ये शिक्षा।
सम्यग्दर्शन से आत्मा महान, करो सब मिलके करो।।जिन.।।५।।
रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज—फूलों सा चेहरा तेरा……
इस युग की माँ शारदे, तू धर्म की प्राण है।
ज्ञानमती नाम है, ज्ञान की तू खान है, चारित्र परिधान है।।टेक.।।
महावीर प्रभु के शासन में अब तक,
कोई भी नारी न ऐसी हुई।
साहित्य लेखन करने की शक्ति,
तुझमें न जाने वैâसे हुई।।
शास्त्र पुराणों में, भक्ति विधानों में, तेरा प्रथम नाम है विश्व में-२
कलियुग की माँ भारती, पूनो का तू चांद है,
ज्ञानमती नाम है, ज्ञान की तू खान है, चारित्र परिधान है।।
इस युग…।।१।।
तीर्थंकरों की जन्मभूमि का,
उत्थान माता तुमने किया।
हस्तिनापुरी में जंबूद्वीप को,
साकार माता तुमने किया।।
तीर्थ अयोध्या की, कीर्ति प्रसारित की, मस्तकाभिषेक आदिनाथ का हुआ-२
तू जग की वागीश्वरी, धरती का सम्मान है,
ज्ञानमती नाम है, ज्ञान की तू खान है, चारित्र परिधान है।।
इस युग…।।२।।
गणिनी शिरोमणि तेरी तपस्या,
का लाभ इस वसुधा को मिला।
चारित्र चक्री गुरु के सदृश ही,
‘‘चंदना’’ इक पुष्प जग में खिला।
पुष्प महकता है, चाँद चमकता है, ज्ञानमती माता के रूप में-२
युग युग तू जीती रहे, हम सबके अरमान हैं,
ज्ञानमती नाम है, ज्ञान की तू खान है, चारित्र परिधान है।।
इस युग…।।३।।
रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज—दे दी हमें आजादी……
दे दी जगत को ज्ञानमती मात सी मिसाल।
हे रत्नमती मात! तुमने कर दिया कमाल।। टेक.।।
तुमको दहेज में मिला इक ग्रन्थ अनोखा।
श्री पद्मनन्दि पंचिंवशती था अनूठा।। हे रत्नमती……।।१।।
संसार से विराग का उससे सबक मिला।
तब ज्ञानमती नाम का पहला कुसुम खिला।।
इनसे जली है ज्ञानज्योति की नई मशाल।। हे रत्नमती……।।२।।
माताओं के लिए तेरी आदर्श कहानी।
जीवित सदा रहेगी तेरी त्याग निशानी।।
माता स्वयं पुत्री के चरण में नवाती भाल।। हे रत्नमती……।।३।।
यह जम्बूद्वीप की कृती तेरी ही कृती है।
उसके सभी कणों में बसी रत्नमती हैं।।
माता की वंदना में ‘चंदना’ का सजा थाल।। हे रत्नमती……।।४।।