किसी समय महाराजा भरत को एक साथ तीन समाचार प्राप्त होते हैं-
१. प्रभु ऋषभदेव को केवलज्ञान प्राप्त हुआ है, २. अंत:पुर में पुत्ररत्न की उत्पत्ति, ३. आयुधशाला में चक्ररत्न की उत्पत्ति हुई है।
उस समय भरत ने सर्वप्रथम भगवान के समवसरण में पहुँचकर प्रभु की पूजा, भक्ति करके दिव्यध्वनि से उपदेश सुना है, पुन: आयुधशाला में उत्पन्न चक्ररत्न की पूजा की है। पुन: अंत:पुर में पुत्र जन्म का उत्सव मनाया है।भगवान के समवसरण में भरत के भ्राता ऋषभसेन ने दीक्षा लेकर प्रथम गणधर का पद प्राप्त किया है। सभी निन्यानवें भाइयों ने दीक्षा ली थी, उनमें से ‘अनंतवीर्य’ भ्राता महामुनि इस युग में सर्वप्रथम मोक्ष गये हैं।ब्राह्मी-सुंदरी ने भी आर्यिका दीक्षा ली थी। वे सभी आर्यिकाओं में मुख्य ब्राह्मी माता प्रथम गणिनी हुई हैं। भरत चक्रवर्ती भगवान के समवसरण में मुख्य ‘श्रोता’ हुए हैं।अनंतर शरदऋतु में भरत चक्रवर्ती ने दिग्विजय के लिए चक्ररत्न को आगे करके प्रस्थान करके छहखण्ड पर विजय प्राप्त की है। अनंतर अयोध्या में आने पर महान उत्सव मनाये गये हैं।