अयोध्या के द्वार पर आकर चक्ररत्न रुक गया, अंदर प्रवेश नहीं किया। तभी चक्रवर्ती आश्चर्यचकित हो चिंतन करने लगे……
क्या अभी कुछ दिग्विजय अधूरी है ?…..
मंत्रियों से परामर्श के बाद निर्णय हुआ कि-अभी आपके भ्राता आपके प्रति समर्पित नहीं हैं…..।
अट्ठानवें भ्राताओं के पास दूत के द्वारा पत्र भेजने पर वे सभी भ्राता आपस में विचार-विमर्श कर प्रभु ऋषभदेव के समवसरण में जाकर जैनेश्वरी दीक्षा ले लेते हैं एवं बाहुबली भ्राता युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं।बाहुबली के साथ दृष्टि युद्ध, जलयुद्ध और मल्लयुद्ध में बाहुबली से पराजित हो जाते हैं। तभी चक्ररत्न का स्मरण कर लेते हैं। वह चक्ररत्न अपने ‘वंशज’ पर नहीं चलता है अत: बाहुबली के पास खड़ा रह जाता है। तभी बाहुबली भी विरक्तमना होकर जैनेश्वरी दीक्षा लेकर ध्यान में स्थित हो जाते हैं।