चक्रवर्ती भरत समवसरण में पहुँचकर भगवान की वंदना-स्तुति करते हैं। भगवान के चरणों में नमस्कार करते समय उन्हें अवधिज्ञान प्रगट हो जाता है-
भक्त्या प्रणमतस्तस्य भगवत्पादपंकजे।
विशुद्धिपरिणामांग-मवधिज्ञानमुद्बभौ।।२८।।
भक्तिपूर्वक भगवान के चरणों को प्रणाम करते हुए भरत के परिणाम इतने विशुद्ध हो गये थे कि उनके उसी समय ‘अवधिज्ञान’ उत्पन्न हो गया।