हवन में ‘सत्यजाताय नमः’ आदि पीठिका मंत्र बोले जाते हैं। ‘सत्यजन्मनः शरणं प्रपद्यामि’ जाति संस्कार के कारण होने से ये जातिमंत्र कहलाते हैं। ‘सत्यजाताय स्वाहा’ आदि निस्तारक मंत्र हैं। ‘सत्यजाताय नम:’ आदि ऋषिमंत्र हैं पुनः ‘सत्यजाताय स्वाहा’ आदि सुरेंद्र मंत्र हैं। प्रथम ‘सत्यजाताय स्वाहा’ आदि से परमराजादि मंत्र हैं पुन: ‘सत्यजाताय नम:’ से प्रारंभ कर परमेष्ठी होते हैं। ये पीठिकामंत्र आदि सात प्रकार के मंत्र गर्भाधान आदि क्रियाओं के करने में क्रियामंत्र कहलाते हैं और गणधरों द्वारा कहे हुए सूत्र में ये ही साधन मंत्र हो जाते हैं। विधिपूर्वक सिद्ध किये हुए ये ही मंत्र संध्याओं के समय देवपूजनरूप नित्य क्रिया करते समय तीनों अग्नियों में आहुति देने से आहुति मंत्र कहलाते हैं।