निर्मापितास्ततो घण्टा जिनबिम्बैरलंकृता:।
परार्घ्यरत्ननिर्माणा: संबद्धा हेमरज्जुभि:।।८७।।
लम्बिताश्च पुरद्वारि ताश्चतुर्विंशतिप्रमा:।
राजवेश्म महाद्वारगोपुरेष्वप्यनुक्रमात२।।८८।।
अर्थात् भरत चक्रवर्ती ने बहुमूल्य रत्नों से बने हुए, सुवर्ण की रस्सियों से बंधे हुए और जिनेन्द्रदेव की प्रतिमाओं से सजे हुए बहुत से घण्टे बनवाये तथा ऐसे-ऐसे चौबीस घंटे बाहर के दरवाजे पर, राजभवन के महाद्वार पर और गोपुर दरवाजों पर अनुक्रम से टंगवा दिए।।८७-८८।।