सगर चक्रवर्ती ने पुत्रों को हर्षित होकर आज्ञा दी कि भरत चक्रवर्ती ने कैलाशपर्वत पर महारत्नों से अरहन्तदेव के चौबीस मन्दिर बनवाये हैं, तुम लोग उस पर्वत के चारों ओर गङ्गा नदी को उन मन्दिरों की परिखा बना दो। उन राजपुत्रों ने भी पिता की आज्ञानुसार दण्डरत्न से वह काम शीघ्र ही कर दिया।।१०७-१०८।।
(उत्तरपुराण पर्व ४८, पृ. १०)
भरत चक्रवर्ती ने जो पहले जिनेन्द्र भगवान् के उत्तम मन्दिर बनवाये थे वे यदि कहीं भग्नावस्था को प्राप्त हुए थे तो उन रमणीय मन्दिरों को राजा दशरथ ने मरम्मत कराकर पुनःनवीनता प्राप्त करायी थी।।१७९।। यही नहीं, उनने स्वयं भी ऐसे जिनमन्दिर बनवाये थे जिनकी कि इन्द्र स्वयं स्तुति करता था तथा रत्नों के समूह से जिनकी विशाल कान्ति स्फुरायमान हो रही थी।।१८०।। (पद्मपुराण भाग—१ पृ. ४७१)