-गीता छंद-
सन्मति प्रभू को नित नमूँ, शासन जिन्हों का आज है।
संपूर्ण विघ्नों का प्रणाशन, ही जिन्हों का काम है।।
उन धर्म संतति में हुए, श्री कुंदकुंदाचार्य हैं।
जो हम सभी जन के लिए, बस एक ही आधार हैं।।१।।
श्री कुंदकुंदाम्नाय में शुभ, गच्छ सरस्वति मान्य है।
उनमें प्रसिद्धी प्राप्त गण, सु बलात्कार प्रधान है।।
उस संतती माला के मणि, श्री शांतिसागर सूरिवर।
उन पट्ट के आचार्य गुरुवर, वीरसागर धुर्यधर।।२।।
उनसे लिए व्रत आर्यिका के, ‘ज्ञानमति’ मैं हो गई।
जिन शास्त्र के स्वाध्याय से, विद्या निधी कुछ मिल गई।।
श्री देशभूषण सूरि मेरे, क्षुल्लिका गुरु ख्यात हैं।
श्रुत की कृपा से ज्ञानधन, कुछ आज मेरे पास है।।३।।
तीर्थंकरों की परम भक्ती, प्रेरती मुझको रही।
श्री तीस चौबीसी स्तोत्र, रचा गया जिससे सही।।
वीराब्द यह पच्चीस सौ चालिस जगत विख्यात है।
कार्तिक सुदी प्रतिपद तिथी नववर्ष जैनी मान्य है।।४।।
श्री हस्तिनापुर क्षेत्र में, स्तोत्र पूर्ण हुआ सही।
जो स्वपर के हित हेतु अतिशय, पुण्यकर महिमामयी।।
यावत् रहे जिनधर्म जग में, भव्यजन हित साधता।
तावत् रहें स्तोत्र गणिनी ‘ज्ञानमती’ कृत सासता।।५।।
।।श्रीतीसचौबीसीस्तोत्रं समाप्तम्।।