कार्तिक कृष्णा अमावस्या, दीपावली पर्व, १३ नवम्बर २०२३ को शाश्वत जन्मभूमि अयोध्या स्थित बड़ी मूर्ति, रायगंज परिसर में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की मंगल प्रेरणा से अखण्ड दीप प्रज्ज्वलित करके भगवान महावीर स्वामी के २५५०वें निर्वाणकल्याणक महोत्सव वर्ष का शुभारंभ किया गया।
पुन: राजधानी दिल्ली में कार्तिक शु. चतुर्दशी, २६ नवम्बर २०२३ को लालकिला मैदान से दिगम्बर जैन परम्परा के १३५ से भी अधिक साधु एवं साध्वियों के ससंघ सान्निध्य में राष्ट्रीय स्तर पर इस महोत्सव वर्ष का शंखनाद किया गया।
पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणानुसार इस वर्ष के अन्तर्गत आपको भगवान महावीर एवं उनके अहिंसामयी शासन की प्रभावना हेतु विशेषरूप से कटिबद्ध होकर व्यक्तिगत, सामाजिक एवं राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विविध गतिविधियों के माध्यम से इस वर्ष को पूर्ण सफल करना है।
(१) श्री महावीर जी अतिशय क्षेत्र के भगवान महावीर की फोटो या कोई भी भगवान महावीर की फोटो छपवाकर यथास्थान लगाएं।
(२) भगवान महावीर स्वामी की निर्वाणभूमि पावापुरी का चित्र भी अधिकाधिक रूप से प्रचारित-प्रसारित करें।
(३) णमोकार महामंत्र को प्रत्येक जैन मंदिरों के बाहर, जैनगृहों के बाहर एवं प्रतिष्ठित स्थानों में अवश्यरूप से अंकित कराएं।
(४) जैनधर्म का प्रतीकचिन्ह-तीनलोक का चित्र भी यथास्थान लगवाएं।
(५) अपने मंदिरों, प्रतिष्ठानों एवं शहर के महत्वपूर्ण स्थानों पर जैनधर्म का पंचरंगी ध्वज ज्यादा से ज्यादा संख्या में लगाएं।
(६) सामाजिक स्तर पर जैनेतर समाज के लोगों को भी शाकाहारी बनने एवं अहिंसा के सिद्धान्त को अपनाने एवं प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करें।
(७) विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों के माध्यम से अहिंसा धर्म पर संगोष्ठियाँ- सेमिनार आयोजित कराने का प्रयास करें। ‘आज के परिप्रेक्ष्य में अहिंसा धर्म की महती आवश्यकता’ विषय पर आलेख लेखन, भाषण प्रतियोगिता, चित्र प्रतियोगिता इत्यादि आयोजित करके एवं करवाकर जिनशासन की प्रभावना में योगदान प्रदान करें।
(८) जीवदया के विभिन्न कार्यों को अपने-अपने स्तर पर आयोजित कराकर अिंहसा धर्म की प्रभावना करें।
(९) जैन बालक-बालिकाओं के लिए पाठशाला के माध्यम से भगवान महावीर के अिंहसामयी सिद्धान्तों को आरोपित करने का अवश्य कदम उठाएं।
(१०) अिंहसा संबंधी प्रचार सामग्री को अधिक से अधिक प्रकाशित कराकर समाज में वितरित करें।
(११) भगवान ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर स्वामी तक सभी चौबीसों तीर्थंकर भगवन्तों के जन्म एवं निर्वाणकल्याणकों को वर्ष भर मनाएँ, ताकि ‘भगवान महावीर जैनधर्म के संस्थापक हैं’, इस गलत धारणा का निराकरण हो सके।
भगवान महावीर के २५५०वें निर्वाण महोत्सव के उपलक्ष्य में प्रत्येक जैनबंधु का कर्तव्य है कि वह अपने जीवन में अहिंसामयी सिद्धान्तों को अपनाकर पूरे समाज में भी इनका प्रचार-प्रसार करे।