-शंभु छंद-
जिनशासन में जिनमंदिर एवं जिनप्रतिमा की महिमा है।
जिनका अवलम्बन लेकर भक्तों की बढ़ती गुणगरिमा है।।
भारत की धरती सदा उन्हीं मंदिर व मूर्ति से पावन है।
उनका दर्शन वंदन करके होते पवित्र सबके मन हैं।।१।।
-दोहा-
जिनमंदिर की शृंखला, में दिल्ली का नाम।
सीखें अध्यातम कला, करके दर्श महान।।२।।
सब जिनमंदिर मूर्तियाँ, करें जगत कल्याण।
उनकी पूजन कर यहाँ, पाऊँ सौख्य महान।।३।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीस्थितजिनमंदिरजिनप्रतिमासमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीस्थितजिनमंदिरजिनप्रतिमासमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीस्थितजिनमंदिरजिनप्रतिमासमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अष्टक-
तर्ज-आने से जिनकी आती बहार……
राजधानी दिल्ली का गूंज रहा नाद, सब मंदिरों से आती आवाज,
यहाँ प्रभु रहते हैं-दर्शन कर लो, पुण्यकथा कहते हैं-अर्चन कर लो।।टेक.।।
पुण्य की प्राप्ती के, सच्चे केन्द्र हैं ये जिनालय।
पाप की समाप्ती के, सच्चे केन्द्र हैं ये जिनालय।।
सुख साधन, प्रभु आराधन-२, यहाँ प्रभु रहते हैं दर्शन कर लो।
पुण्यकथा कहते हैं-अर्चन कर लो।।१।।
गंगा का पावन जल, प्रभु पूजन में लेकर चढ़ाऊँ।
भव भवों का अघ मल, जिनवर भक्ति से मैं नशाऊँ।।
सुख साधन, प्रभु आराधन-२, यहाँ प्रभु रहते हैं-दर्शन कर लो।
पुण्यकथा कहते हैं-अर्चन कर लो।।२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीस्थितसमस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
राजधानी दिल्ली का गूंज रहा नाद, सब मंदिरों से आती आवाज,
यहाँ प्रभु रहते हैं-दर्शन कर लो, पुण्य कथा कहते हैं-अर्चन कर लो।।टेक.।।
शान्ति की प्राप्ती के, सच्चे केन्द्र हैं ये जिनालय।
भवताप उपशान्ती के, सच्चे केन्द्र हैं ये जिनालय।।
सुख साधन, प्रभु आराधन-२, यहाँ प्रभु रहते हैं-दर्शन कर लो।
पुण्यकथा कहते हैं-अर्चन कर लो।।१।।
मलयागिरि का चन्दन, प्रभु पूजन में लेकर चढ़ाऊँ।
भव आतप का बन्धन, जिनवर भक्ति से मैं हटाऊँ।।
सुख साधन, प्रभु आराधन-२, यहाँ प्रभु रहते हैं-दर्शन कर लो।
पुण्यकथा कहते हैं-अर्चन कर लो।।२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीस्थितसमस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
राजधानी दिल्ली का गूंज रहा नाद, सब मंदिरों से आती आवाज,
यहाँ प्रभु रहते हैं-दर्शन कर लो, पुण्य कथा कहते हैं-अर्चन कर लो।।टेक.।।
आत्मा की शान्ति के, सच्चे केन्द्र हैं ये जिनालय।
विश्व की शान्ति के, सच्चे केन्द्र हैं ये जिनालय।।
सुख साधन, प्रभु आराधन-२, यहाँ प्रभु रहते हैं-दर्शन कर लो।
पुण्यकथा कहते हैं-अर्चन कर लो।।१।।
अक्षत के पुंजों को, प्रभु पूजन में लेकर चढ़ाऊँ।
अक्षय पद प्राप्ती हो, प्रभु भक्ति का फल यह चाहूँ।।
सुख साधन, प्रभु आराधन-२, यहाँ प्रभु रहते हैं-दर्शन कर लो।
पुण्यकथा कहते हैं-अर्चन कर लो।।२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीस्थितसमस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
तर्ज-हे दीनबंधु………
दिल्ली महानगर के मंदिरों की अर्चना।
करना है भक्ति भाव से जिनवर की वंदना।।०।।
फूलों के गुलदस्ते जहाँ मिलते गली-गली।
भक्तों की टोलियाँ उन्हीं फूलों को ले चलीं।।
प्रभु पद चढ़ा के पुष्प करूँ भक्ति वन्दना।
दिल्ली महानगरी के मंदिरों की अर्चना।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीस्थितसमस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
दिल्ली महानगर के मंदिरों की अर्चना।
करना है भक्ति भाव से जिनवर की वंदना।।
पकवान्न अनेकों जहाँ बनने की है प्रथा।
उस राजधानी में प्रभू की होती संकथा।।
प्रभु पद चढ़ा नैवेद्य करूँ भक्ति वन्दना।
दिल्ली महानगरी के मंदिरों की अर्चना।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीस्थितसमस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-शंभु छंद-
दिल्ली प्रदेश के जिनमंदिर की, दीप जला आरति कर लूँ।
मोहान्धकार के नाश हेतु, आतमा में ज्ञानज्योति भर लूँ।।टेक.।।
पाश्चात्य सभ्यता की छाया, जहाँ के कण-कण में समाई है।
लेकिन दिल्ली की जनता पर, गुरुओं की सदा परछाईं है।।
इसलिए हृदय में आता है, मंदिर में प्रभु भक्ति कर लूँ।
दिल्ली प्रदेश के जिनमंदिर की, दीप जला आरति कर लूँ।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीस्थितसमस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
-शंभु छंद-
दिल्ली के सब जिनमंदिर को, इक साथ भाव से वन्दन है।
अग्नी में धूप दहन करने से, कट जाते भव बंधन हैं।।टेक.।।
भौतिकता का साम्राज्य जहाँ, चप्पे-चप्पे पर दिखता है।
वहिं सम्यग्दृष्टी भक्तों में, प्रभु भक्ती स्वरस टपकता है।।
हम भी मलयागिरि धूप जला करने आए प्रभु अर्चन हैं।
दिल्ली के सब जिनमंदिर को, इक साथ भाव से वंदन है।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीस्थितसमस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
तर्ज-मैं तो छोड़ चली……..
चलो राजधानी दिल्ली चलें, फलों का थाल भर लाएँ।
हमको भी मुक्तिलक्ष्मी मिलें, पूजन में फल को चढ़ाएँ।।टेक.।।
सारी ही ऋतुओं के फल खाए हमने,
लेकिन नहीं तृप्ति पाई हमने।
कुछ क्षण के स्वादों में आनंद माना,
अध्यात्मसुख का नहीं स्वाद जाना।।
मंदिर एवं प्रभू के समक्ष, फल चढ़ाके फल पाएं।
चलो राजधानी दिल्ली चलें, फलों का थाल चढ़ाएँ।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीस्थितसमस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
तर्ज-मांगीतुुंगी तीर्थ से आमंत्रण आया है……
अष्टद्रव्य का थाल सजाकर, अर्घ्य चढ़ाना है,
दिल्ली के जिनमंदिर जाना है।।
जिनमंदिर में जाना है, भावों से अर्घ्य चढ़ाना है-२। अष्ट द्रव्य…..
जल चन्दन अक्षत व पुष्प, नैवेद्य दीप अरु धूप लिया।
फल युत आठों द्रव्यों का, शुभ अर्घ्य समर्पण आज किया।।
पद अनर्घ्य ‘‘चन्दनामती’’ हमको भी पाना है,
दिल्ली के जिनमंदिर जाना है।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीस्थितसमस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-दोहा-
मंदिर एवं मूर्तियाँ, नवदेवों में देव।
शांतीधारा की क्रिया, है सुख शांती हेत।।१०।।
शांतये शांतिधारा।।
मंदिर में प्रभु के निकट, पुष्पांजलि चढ़ाय।
हृदय कमल विकसित करूँ, गुणपुष्पों को पाय।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।।
।।अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।
(५ अर्घ्य)
तर्ज-गहरी गहरी नदियाँ……
लाल मंदिर दिल्ली का प्राचीन मंदिर प्यारा है।
लाल किला सामने इतिहास कहे न्यारा है।।टेक.।।
ईसवी सन् सोलह सौ छप्पन का वर्ष था।
अंग्रेज शासन में भारत परतंत्र था।।….भारत परतंत्र था।
पार्श्वनाथ मूलनायक प्रभु का सहारा है।
लालकिला सामने इतिहास कहे न्यारा है।।१।।
पद्मावति माता की भक्ति का केन्द्र जहाँ।
पक्षियों का अस्पताल करुणा का केन्द्र जहाँ।।….करुणा का केन्द्र जहाँ।
चांदनी चौक का यह लाल मंदिर प्यारा है।
लाल किला सामने इतिहास कहे न्यारा है।।२।।
मंदिर की सभी प्रतिमाओं को नमन है।
‘‘चन्दनामती’’ करूँ अर्घ्य समर्पण है।।……अर्घ्य समर्पण है।
चारों तरफ देखो वहाँ भीड़ का नजारा है।
लाल किला सामने इतिहास कहे न्यारा है।।३।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरेचांदनीचौकस्थितऐतिहासिक-दिगम्बर जैन लालमंदिरस्य मूलनायकश्रीपार्श्वनाथजिनप्रतिमासमन्वितसमस्तजिन-प्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
कूचा सेठ बड़ा मंदिर प्रभु ऋषभदेव का मंदिर है।
भक्तों की भक्ति का इस मंदिर में भरा समन्दर है।।
ऋषभदेव के श्रीचरणों में शीश झुकाकर वंदन है।
उन संयुत सब प्रतिमाओं को मेरा अर्घ्य समर्पण है।।१।।
समवसरण के रूप में, मूलनायक भगवान।
उनकी पूजन हेतु है, अष्टद्रव्य का थाल।।२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे चांदनीचौकक्षेत्रेकूचासेठस्थित-श्रीऋषभदेवजिनमंदिरस्य मूलनायकश्रीऋषभदेव-जिनप्रतिमासमन्वितसमस्त-जिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
कूचा सेठ में छोटा जिनमंदिर चन्द्रप्रभ मंदिर है।
गलियों से आ भक्त जहाँ रहते भक्ति में तत्पर हैं।।
मंदिर की सब प्रतिमाओं को मेरा अर्घ्य समर्पित है।
देवी पद्मावती यहाँ प्राचीन काल से विराजित हैं।।३।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे चांदनीचौकक्षेत्रेकूचा-सेठस्थित-श्रीचन्द्रप्रभजिनमंदिरस्य मूलनायकश्रीचन्द्रप्रभजिनप्रतिमासमन्वित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
श्री मुनिसुव्रत तीर्थंकर का जिनमंदिर बड़ा सुहाना है।
उन सहित सभी प्रतिमाओं के चरणों में अर्घ्य चढ़ाना है।।
महावीर वाटिका के सम्मुख दरियागंज का यह मंदिर है।
इसके परिसर में बच्चों का बालाश्रम निर्मित सुन्दर है।।४।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे दरियागंज जैन बालाश्रम स्थित-श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकश्रीमुनिसुव्रतनाथजिनप्रतिमा-समन्वितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
दरियागंज के महिला आश्रम में प्रभु महावीर जिनालय है।
महावीर की भक्ति तथा नारी रक्षा का आलय है।।
भक्ति सहित हम अर्घ्य चढ़ाकर पद अनर्घ्य की चाह करें।
इस आश्रम के भी उज्वल भविष्य का चिन्तन भाव करें।।५।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे दरियागंजस्थित-जैनमहिला-आश्रमपरिसरे श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकश्रीमहावीरजिनप्रतिमा-समन्वितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं राजधानीदिल्लीस्थितसर्वजिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। (९ बार जपें)
तर्ज-मीठो मीठो बोल…….
दर्शन करो जिनमंदिर का, उपवासों का फल मिलता।
करो अर्चन प्रभु के सामने, जयमाला अर्घ्य ले हाथ में।।दर्शन…।।०।।
जैसे सूरज अंधकार जग का हरे,
हर मानव के मन में उजियाला भरे।
वैसे ही जिनसूर्य तिमिर मिथ्या हरे,
सम्यग्दर्शन का प्रकाश मन में भरे।।
जिनचन्द्र का-जिनसूर्य का-२,
दर्शन पापों को काटता, अर्चन देता सुख शाश्वता।। दर्शन करो….।।१।।
जिनमंदिर नवदेव में है इक देवता,
चैत्यभक्ति गौतम गणधर ने है कहा।
इसी तरह जिनप्रतिमा भी है देवता,
इनके दर्शन से मिलता पद देव का।।
जिनचन्द्र का, जिनसूर्य का-२,
दर्शन पापों को काटता, अर्चन देता सुख शाश्वता।।दर्शन करो…।।२।।
इक मेंढक प्रभु वीर के दर्शन को चला,
कमलपुष्प भक्ति से मुख में ले चला।
पथ में ही मरकर वो देवता बन गया,
वही ‘‘चन्दनामती’’ प्रेरणा बन गया।।
जिनचन्द्र का-जिनसूर्य का-२,
दर्शन पापों को काटता, अर्चन देता सुख शाश्वता।। दर्शन करो…।।३।।
दिल्ली के जिनमंदिर बड़े विशाल हैं,
आध्यात्मिकता की ये बड़ी पहचान हैं।
गणिनी माता ज्ञानमती जी की देशना,
रच गया यह सुंदर विधान मिली प्रेरणा।
जिनचन्द्र का, जिनसूर्य का-२,
दर्शन पापों को काटता, अर्चन देता सुख शाश्वता।।दर्शन करो…४।।
पूजन की जयमाला का ये महार्घ्य है,
सब मंदिर-प्रतिमा के लिए पूर्णार्घ्य है।
मंदिर के शिखरों को भी वन्दन करूँ,
उन सम ऊँचा बनने हेतु नमन करूँ।।
जिनचन्द्र का, जिनसूर्य का-२
दर्शन पापों को काटता, अर्चन देता सुख शाश्वता।।
करो अर्चन प्रभु के सामने, जयमाला अर्घ्य ले हाथ में।।दर्शन करो…।।५।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्ली महानगरस्य समस्तजिनमंदिर-जिनप्रतिमाभ्य: जयमाला महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
तर्ज-मैया हो गंगा मैया……..
देवा…..हो जिनवर देवा, देवा….हो जिनवर देवा,
चक्रवर्ती तथा इन्द्र की सम्पदा, मिलती है यदि करें हम प्रभू अर्चना,
…..प्रभू अर्चना।।देवा…हो……
चन्दा सूरज में जब तक के ज्योती रहे, दिल्ली के मंदिरों की कीर्ति रहे,
…..कीर्ति रहे।।देवा……हो जिनवर देवा।।
।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।