-शंभु छंद (अडिल्ल छंद)-
राजधानी दिल्ली भारत का दिल कहा।
जिनमंदिर दर्शन का पुण्य जहाँ मिल रहा।।
मध्यवर्ती दिल्ली के जिनमंदिर जजूँ।
मंदिर की जिनप्रतिमाओं को भी भजूँ।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य मध्यवर्तीक्षेत्रस्थित-समस्तजिनमंदिरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य मध्यवर्तीक्षेत्रस्थित-समस्तजिनमंदिरसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य मध्यवर्तीक्षेत्रस्थित-समस्तजिनमंदिरसमूह! अत्र मम सन्निहिता: भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अष्टक-
गंगा का शीतल जल लेकर, स्वर्णिम कलशा भर लाए हैं।
निज जन्म जरा मृति नाश हेतु, जलधारा करने आए हैं।।
दिल्ली के मध्यवर्ती क्षेत्रों के जिनमंदिर का अर्चन है।
उन सब मंदिर में राजित जिनप्रतिमाओं को भी वन्दन है।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य-मध्यवर्तीक्षेत्रस्थित-समस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
मलयागिरि का शीतल चन्दन, प्रभु चरण चढ़ाने आए हैं।
संसारताप का हो खण्डन, आतम सुख पाने आए हैं।।
दिल्ली के मध्यवर्ती क्षेत्रों के जिनमंदिर का अर्चन है।
उन सब मंदिर में राजित जिनप्रतिमाओं को भी वन्दन है।।२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य-मध्यवर्तीक्षेत्रस्थित-समस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
निज पद अखंड की प्राप्ति हेतु, हम अक्षत पुंज चढ़ाते हैं।
भगवान तुम्हारी पूजन से, दुख खण्ड खण्ड हो जाते हैं।।
दिल्ली के मध्यवर्ती क्षेत्रों के जिनमंदिर का अर्चन है।
उन सब मंदिर में राजित जिनप्रतिमाओं को भी वन्दन है।।३।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य-मध्यवर्तीक्षेत्रस्थित-समस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
बेला गुलाब आदिक पुष्पों की थाली भर कर लाए हैं।
निज कामव्यथा के नाश हेतु प्रभु दर पे चढ़ाने आए हैं।।
दिल्ली के मध्यवर्ती क्षेत्रों के जिनमंदिर का अर्चन है।
उन सब मंदिर में राजित जिनप्रतिमाओं को भी वन्दन है।।४।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य-मध्यवर्तीक्षेत्रस्थित-समस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
मीठे नमकीन व्यंजनों को हम प्रभु के निकट चढ़ाते हैं।
हो भूख व्यथा की उपशान्ति हम यही भावना भाते हैं।।
दिल्ली के मध्यवर्ती क्षेत्रों के जिनमंदिर का अर्चन है।
उन सब मंदिर में राजित जिनप्रतिमाओं को भी वन्दन है।।५।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य-मध्यवर्तीक्षेत्रस्थित-समस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
घृत दीपक स्वर्णिम थाली में लेकर हम आरति करते हैं।
मोहांधकार हो जाए नष्ट हम यही भावना करते हैं।।
दिल्ली के मध्यवर्ती क्षेत्रों के जिनमंदिर का अर्चन है।
उन सब मंदिर में राजित जिनप्रतिमाओं को भी वन्दन है।।६।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य-मध्यवर्तीक्षेत्रस्थित-समस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
चंदन कपूर की शुद्ध धूप अग्नी में दहन हम करते हैं।
मंदिर एवं मूर्ति पूजन से कर्म नष्ट कर सकते हैं।।
दिल्ली के मध्यवर्ती क्षेत्रों के जिनमंदिर का अर्चन है।
उन सब मंदिर में राजित जिनप्रतिमाओं को भी वन्दन है।।७।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य-मध्यवर्तीक्षेत्रस्थित-समस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
अंगूर सेब बादाम आदि फल से प्रभु पूजन करते हैं।
उसके फल में क्रम से निर्वाण का फल भी हम चख सकते हैं।।
दिल्ली के मध्यवर्ती क्षेत्रों के जिनमंदिर का अर्चन है।
उन सब मंदिर में राजित जिनप्रतिमाओं को भी वन्दन है।।८।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य-मध्यवर्तीक्षेत्रस्थित-समस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल गंधादिक का अष्टद्रव्य ले, अर्घ्य समर्पित करते हैं।
‘‘चन्दनामती’’ मंदिर पूजन से पद अनर्घ्य वर सकते हैं।।
दिल्ली के मध्यवर्ती क्षेत्रों के जिनमंदिर का अर्चन है।
उन सब मंदिर में राजित जिनप्रतिमाओं को भी वन्दन है।।९।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य-मध्यवर्तीक्षेत्रस्थित-समस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-दोहा-
मंदिर एवं मूर्तियाँ, नवदेवों में देव।
शांतीधारा की क्रिया, है सुख शांती हेत।।१०।।
शांतये शांतिधारा।।
मंदिर में प्रभु के निकट, पुष्पांजलि चढ़ाय।
हृदय कमल विकसित करूँ, गुणपुष्पों को पाय।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।।
।।अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।
(१५ अर्घ्य)
तर्ज-मेरी बिगड़ी बनाने वाली……..
ये पुण्य बढ़ाने वाले-जिनमंदिर प्यारे प्यारे,
इनमें विराजे जिनवर, तीर्थंकर प्यारे प्यारे।
इन प्रभु के पद में शत शत नमन हमारा है।
ले आए चढ़ाने अर्घ्यथाल यह प्यारा है।।ये पुण्य……।।टेक.।।
श्री अग्रवाल जिनमंदिर, राजा बाजार दिल्ली में।
श्री चन्द्रप्रभ जिनप्रतिमा, मंदिर की मूलनायक हैं।।
इन प्रभु के पद में शत-शत नमन हमारा है।
ले आए चढ़ाने अर्घ्य थाल यह प्यारा है।।ये पुण्य……।।१।।
इस मंदिर के परिसर में, सुन्दर बना कीर्तिस्तंभ है।
पावापुरि तीर्थ की रचना, माँ ज्ञानमती जी का कहना
ये गणिनी माता की प्रेरणा का नजारा है।
ले आए चढ़ाने अर्घ्य थाल यह प्यारा है।।ये पुण्य……।।२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे कनॉटप्लेस राजाबाजार-स्थित-श्रीअग्रवालदिगम्बरजिनमन्दिरस्य-मूलनायकश्रीचन्द्रप्रभजिनप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
-शंभु छंद-
खण्डेलवाल जिनमंदिर इक राजाबाजार में निर्मित है।
दिल्ली के कुछ प्राचीन मंदिरों में आता यह मंदिर है।।
प्रभु महावीर की जिनप्रतिमा मंदिर में मूल विराजित हैं।
अनमोल अर्घ्य अर्पण करके वन्दन कर विनय समर्पित है।।२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे कनॉटप्लेसराजा-बाजारस्थित-श्रीखण्डेलवालदिगम्बरजैनमन्दिरस्य मूलनायकश्रीमहावीर-जिनप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
तर्ज-गहरी गहरी नदियाँ…..
दिल्ली में चक्रवर्ती भरत ज्ञानतीर्थ है।
बड़ी मूर्ति नाम से बढ़ी इसकी कीर्ति है।।टेक.।।
इस तीर्थ पर ऋषभदेव चैत्यालय है।
बन रहा सुन्दर यहाँ ह्रीं का जिनालय है……ह्रीं का जिनालय है।।
राजधानी दिल्ली की खुली तकदीर है।
बड़ी मूर्ति नाम से बढ़ी इसकी कीर्ति है।।१।।
गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी।
संप्रेरिका हैं तीर्थ एवं मूर्ति की……तीर्थ एवं मूर्ति की।
दिल्ली कनॉट प्लेस बना पुण्यतीर्थ है।
बड़ी मूर्ति नाम से बढ़ी इसकी कीर्ति है।।२।।
भरत जी के भारत में रहते हैं आज हम।
चन्दनामती अर्घ्य थाल लेके आए हम…..थाल लेके आए हम।।
द्रव्य तीर्थ वन्दना से पाना भाव तीर्थ है।
बड़ी मूर्ति नाम से बढ़ी इसकी कीर्ति है।।३।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे कनॉटप्लेसराजा-बाजारस्थित-चक्रवर्ती भरतज्ञानतीर्थस्य चैत्यालये विराजमानश्री ऋषभदेवभरत-बाहुबली प्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
-शंभु छंद-
चांदनी चौक के निकट वैदवाड़ा में वीर जिनालय है।
प्राचीन मंदिरों में यह भी इतिहास प्रसिद्ध जिनालय है।।
बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य श्रीशान्तिसिंधु का प्रवास रहा।
तब से ही आगमपरम्परा का मंदिर जी में नाद रहा।।१।।
-दोहा-
मंदिर एवं मूर्ति को, अर्घ्य चढ़ाऊँ आज।
आर्षमार्ग चलता रहे, यही हृदय में आस।।२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे वैदवाड़ास्थित-श्रीमहावीर-जिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
दरियागंज के अंसारी रोड पे चन्द्रप्रभ जिनमंदिर है।
वहाँ ज्ञान ध्यान से लगती भक्तों की भक्ती अति सुन्दर है।।
सब जिनप्रतिमाओं के चरणों में अर्घ्य चढ़ाकर वंदन है।
निज आत्मगुणों की प्राप्ति हेतु जिनमंदिर का अभिवंदन है।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे अंसारीरोड-दरियागंजस्थित-श्रीचन्द्रप्रभजिनमंदिरस्य मूलनायकचन्द्रप्रभप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
तर्ज-जहाँ जन्मे वीर वर्धमान जी…….
नया मंदिर धरमपुरा धाम है, जहाँ राजें ऋषभ भगवान हैं।
केवल दीपक की रोशनी है यहाँ, इस मंदिर की यही पहचान है।।०।।
सहस्रकूट का चैत्यालय भी, इस मंदिर में निर्मित है।
सब प्रतिमाओं के श्रीचरणों में, मेरा अर्घ्य समर्पित है।।
मंदिर मूर्तियों को शत-शत प्रणाम है, ये भक्तों के लिए पुण्यधाम हैं।
केवल दीपक की रोशनी है यहाँ, इस मंदिर की यही पहचान है।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे चांदनीचौक-धरमपुरा-नयामंदिरस्थित-श्रीऋषभदेवजिनमंदिरस्य मूलनायकऋषभदेवप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
-स्रग्विणी छंद-
है दरीबाकला चांदनी चौक में, मेहरमंदिर है शांतिप्रभू उसमें हैं।
पंचमेरु की रचना के दर्शन करो, सबके चरणों में अर्घ्य समर्पण करो।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे चांदनीचौक-दरीबांकला-स्थित-श्रीमेहरमंदिरस्य मूलनायकशांतिनाथप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
चाँदनी चौक में और इक जिनभवन, नाम पद्मावती पुरवाल मंदिरम्।
प्रभु महावीर हैं मूलनायक प्रभो, अर्घ्य ले उनके चरणों में वन्दन करो।।
-शेर छंद-
है पास में ही दूसरा पंचायती मंदिर।
प्रभु पार्श्वनाथ प्रतिमा मूल उसमें हैं सुन्दर।।
उनको तथा सब मूर्तियों को अर्घ्य चढ़ाऊँ।
मंदिर के उच्च शिखर को भी शीश नमाऊँ।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे पंचायतीमंदिरस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
है दिल्ली गेट का बड़ा प्राचीन जिनालय।
कहते हैं सबसे पुराना दिल्ली का यह निलय।।
प्रभु पार्श्वनाथ महिमा से प्रसिद्ध यह मंदिर
मैं अर्घ्य चढ़ाऊँ ले स्वर्णथाल में सुंदर।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे दिल्लीगेटस्थित-श्रीपार्श्वनाथ-जिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
है सतघरा मंदिर धरमपुरा में अनूठा।
जिनभक्त पार्श्वनाथ की इसमें करें पूजा।।
इक ह्रीं की प्रतिमा विराजमान हैं यहाँ।
मैं अर्घ्य समर्पूं है कीर्तिस्तंभ भी यहाँ।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे चांदनीचौक-धरमपुरास्थित-श्रीसतघराजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
-शंभु छंद-
सीताराम बाजार में कूचापातीराम कहा जाता।
उसमें नेमिनाथ जिनमंदिर से हैं भक्तों का नाता।।
अर्घ्य चढ़ाकर नेमिनाथ प्रभुवर को मेरा वन्दन है।
तथा जिनालय की सब प्रतिमा को भी अर्घ्य समर्पण है।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे सीतारामबाजारस्य कूचापातीरामकालोनी स्थित-श्रीनेमिनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकनेमिनाथ-प्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
दिल्ली के मन्टोला-पहाड़गंज में प्रभु शांतिनाथ जी हैं।
वहाँ रहने वाले श्रावक औ श्राविका करें नित भक्ती हैं।।
उस शांतिनाथ जिनमंदिर को भक्ती से अर्घ्य चढ़ाना है।
सब वेदी की प्रतिमाओं को भी वंदन कर सुख पाना है।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे मन्टोला-पहाड़गंजस्थित-श्रीशांतिनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकशांतिनाथप्रतिमासहित-समस्तजिन-प्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
दिल्ली में अहिंसा मंदिर दरियागंज का है प्राचीन कहा।
प्रभु महावीर की जिनप्रतिमा से सार्थक नाम जिनालय का।।
मंदिर-प्रतिमा को अर्घ्य चढ़ा महिमा मंदिर की समझना है।
पूजन करके मानव जीवन पर कलशारोहण करना है।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे दरियागंजस्थितअहिंसा-मन्दिरस्य-मूलनायकश्रीमहावीरजिनप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
सब्जीमण्डी के बरफखाना में पार्श्वनाथ जिनमंदिर है।
इस पंचमकाल में ज्ञान-ध्यान-भक्ती का जहाँ समन्दर है।।
उन प्रभु को अर्घ्य चढ़ा करके सब प्रतिमाओं को नमन करूँ।
निज को भगवान बनाने हित भगवान के पद में नमन करूँ।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे सब्जीमण्डी-बर्फखानास्थित श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरेविराजमान मूलनायकतीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथजिनप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं राजधानीदिल्लीस्थितसर्वजिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। (९ बार जपें)
-शेर छंद-
जय जय जिनेन्द्रगृह मेरे भारत की शान हैं।
जय जय जिनेन्द्र गृह हम सभी के प्राण हैं।।
जय जय जिनेन्द्र मूर्तियाँ मंदिर की शान हैं।
जय जय जिनेन्द्रमूर्तियाँ त्रैलोक्य मान्य हैं।।१।।
गणधर गुरू ने दोनों को है देवता कहा।
नवदेवता पूजा में भी महत्त्व है बड़ा।।
जब से धरा व नभ का अस्तित्व है जग में।
मंदिर व मूर्तियों की प्रथा तब से है सच में।।२।।
इस आर्यखण्ड की धरा पवित्र है इनसे।
दिल्ली की भौतिकता भी तो पावन हुई इनसे।।
यूँ तो बहुत जिनालय हैं राजधानी में।
पर मध्यवर्ती क्षेत्र है दिल्ली पुरानी में।।३।।
है ऐतिहासिक लाल मंदिर अर्चना स्थल।
लहराया लालकिले के समक्ष धर्मध्वज।।
इस क्षेत्र में ऐसे अनेकों और हैं मंदिर।
जो मध्य दिल्ली क्षेत्र की निधियाँ हैं धरोहर।।४।।
गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माँ की प्रेरणा।
प्रभु भक्ति करने की सदा देती हैं देशना।।
जिनभक्ति ही संसार से हमको तिराएगी।
गुरुभक्ति से संयमग्रहण की युक्ति आएगी।।५।।
कितने गली कूचों में गूंजते हैं भक्ति स्वर।
क्योंकि वहाँ निर्मित हैं जिनालय तथा शिखर।।
उन मंदिरों की पूजन का महा अर्घ्य है।
जयमाला ‘चन्दनामती’ प्रभु को समर्प्य है।।६।।
-दोहा-
जिनमंदिर जिनमूर्तियाँ, पुण्यवृद्धि में हेतु।
अर्घ्य थाल अर्पित किया, पद अनर्घ्य के हेतु।।७।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य मध्यवर्तीक्षेत्रस्थित-समस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: जयमाला महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
तर्ज-गंगा मैया………
देवा…..हो जिनवर देवा, देवा….हो जिनवर देवा,
चक्रवर्ती तथा इन्द्र की सम्पदा, मिलती है यदि करें हम प्रभू अर्चना,
…..प्रभू अर्चना।।देवा…हो……
चन्दा सूरज में जब तक के ज्योती रहे, दिल्ली के मंदिरों की कीर्ति रहे,
…..कीर्ति रहे।।देवा……हो जिनवर देवा।।
।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।