-स्थापना (अडिल्ल छंद)-
पूर्वी दिल्ली यमुनापार का क्षेत्र है।
जिनवर भक्ती का यह सुन्दर केन्द्र है।।
सब जिनमंदिर का विधिवत् अर्चन करूँ।
आह्वानन कर जिनप्रतिमा वंदन करूँ।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य पूर्वीक्षेत्रस्थितसमस्त-जिनमंदिरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य पूर्वीक्षेत्रस्थितसमस्त-जिनमंदिरसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य पूर्वीक्षेत्रस्थितसमस्त-जिनमंदिरसमूह! अत्र मम सन्निहिता: भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अष्टक (स्रग्विणी छंद)-
क्षीरसागर का जल स्वर्णझारी में ले।
तीन धारा करूँ प्रभु के पादाब्ज में।।
दिल्ली के पूर्वी क्षेत्रों के जिनमन्दिरम्।
वन्दना अर्चना मैं करूँ जिनवरम्।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य पूर्वीक्षेत्रस्थितसमस्त-जिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
घिस के चन्दन में कर्पूर मैंने लिया।
भव का आतप नशे प्रभु चरण चर्चिया।।
दिल्ली के पूर्वी क्षेत्रों के जिनमन्दिरम्।
वन्दना अर्चना मैं करूँ जिनवरम्।।२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य पूर्वीक्षेत्रस्थितसमस्त-जिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ्र अक्षत के पुंजों को मुट्ठी में ले।
प्राप्त अक्षय हो पद पूजूँ अक्षत से मैं।।
दिल्ली के पूर्वी क्षेत्रों के जिनमन्दिरम्।
वन्दना अर्चना मैं करूँ जिनवरम्।।३।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य पूर्वीक्षेत्रस्थितसमस्त-जिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
बेला चंपा चमेली के पुष्पों को ले।
अंजली भर चढ़ाना है प्रभु पद मुझे।।
दिल्ली के पूर्वी क्षेत्रों के जिनमन्दिरम्।
वन्दना अर्चना मैं करूँ जिनवरम्।।४।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य पूर्वीक्षेत्रस्थितसमस्त-जिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
मीठे नमकीन पकवान्न ले थाल में।
भूख व्याधि नशे प्रभु चढ़ाऊँ तुम्हें।।
दिल्ली के पूर्वी क्षेत्रों के जिनमन्दिरम्।
वन्दना अर्चना मैं करूँ जिनवरम्।।५।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य पूर्वीक्षेत्रस्थितसमस्त-जिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
स्वर्ण थाली में रत्नों का दीपक लिया।
आरती प्रभु की कर मोहतम कम किया।।
दिल्ली के पूर्वी क्षेत्रों के जिनमन्दिरम्।
वन्दना अर्चना मैं करूँ जिनवरम्।।६।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य पूर्वीक्षेत्रस्थितसमस्त-जिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु की पूजा में धूप दहन कर दिया।
कर्मों को नष्ट करने का मन कर लिया।।
दिल्ली के पूर्वी क्षेत्रों के जिनमन्दिरम्।
वन्दना अर्चना मैं करूँ जिनवरम्।।७।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य पूर्वीक्षेत्रस्थितसमस्त-जिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
फल अनंनास अंगूर का थाल ले।
मोक्षफल प्राप्ति हित नाऊँ निज भाल मैं।।
दिल्ली के पूर्वी क्षेत्रों के जिनमन्दिरम्।
वन्दना अर्चना मैं करूँ जिनवरम्।।८।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य पूर्वीक्षेत्रस्थितसमस्त-जिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
अर्घ्य का थाल पद में चढ़ाऊँ प्रभो!
‘‘चन्दनामती’’ परमपद मुझे प्राप्त हो।।
दिल्ली के पूर्वी क्षेत्रों के जिनमन्दिरम्।
वन्दना अर्चना मैं करूँ जिनवरम्।।९।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य पूर्वीक्षेत्रस्थितसमस्त-जिनमंदिरजिनप्रतिमाभ्य: अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-दोहा-
मंदिर एवं मूर्तियाँ, नवदेवों में देव।
शांतीधारा की क्रिया, है सुख शांती हेत।।१०।।
शांतये शांतिधारा।।
मंदिर में प्रभु के निकट, पुष्पांजलि चढ़ाय।
हृदय कमल विकसित करूँ, गुणपुष्पों को पाय।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।।
।।अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।
–शंभु छंद-
सूरजमल विहार के जिनमंदिर को मेरा वन्दन है।
पार्श्वनाथ प्रभु सहित सभी प्रतिमा को अर्घ्य समर्पण है।।
गणिनी ज्ञानमती माता ने, लघु प्रतिमा से नींव रखी।
उसका चमत्कार देखो, जिनमंदिर बना विशाल वहीं।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे सूरजमलविहारस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
-दोहा-
बाहुबली एन्क्लेव में, श्रीजिनवर का धाम।
महावीर प्रभु मूल हैं, अर्घ्य चढ़ाऊँ आन।।२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे बाहुबलीएन्क्लेवस्थित-श्रीजिनमंदिरस्य मूलनायकश्रीमहावीरप्रतिमासमन्वितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ऋषभदेव जिनधाम से, सार्थक ऋषभविहार।
प्रतिमाओं को अर्घ्य दे, प्रणमूँ बारम्बार।।३।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे ऋषभविहारस्थित-श्रीजिनमंदिरस्य मूलनायकश्रीऋषभदेवप्रतिमासमन्वितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
-शंभु छंद-
जागृति एन्क्लेव का पार्श्वनाथ जिनमंदिर लगे सुहाना है।
प्रभु पार्श्व सहित सब जिनप्रतिमाओं को पूर्णार्घ्य चढ़ाना है।।४।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे जागृतिएन्क्लेवस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकश्रीपार्श्वनाथप्रतिमासमन्वितसमस्त-जिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।।४।।
-दोहा-
बना विवेकविहार में, ऋषभदेव जिनधाम।
सब प्रतिमा को अर्घ्य दे, जजूँ ऋषभ भगवान।।५।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे विवेकविहारस्थित-श्रीजिनमंदिरस्य मूलनायकश्रीऋषभदेवजिनप्रतिमासमन्वितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
-शंभु छंद-
आदिप्रभू की प्रतिमा है, गणिनी ज्ञानमती की देन जहाँ।
चलो शिवम् एन्क्लेव में भक्तों के संग भक्ति करें वहाँ।।६।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे शिवम्एन्क्लेवस्थित-श्रीऋषभदेवजिनमंदिरस्य मूलनायकश्रीऋषभदेवप्रतिमासमन्वितसमस्त-जिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
-शंभु छंद-
भीमगली विश्वासनगर में, ऋषभदेव की महिमा है।
अर्घ्य चढ़ा सब जिनबिम्बों को, पाऊँ निजगुण गरिमा है।।७।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे भीमगली-विश्वासनगरस्थित-श्रीऋषभदेवजिनमंदिरस्य मूलनायकश्रीऋषभदेवप्रतिमासमन्वितसमस्तजिन-प्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
रामगली विश्वासनगर में, पार्श्वनाथ का अतिशय है।
मंदिर मूर्ति को अर्घ्य चढ़ाकर, चाहूँ मैं पद अक्षय है।।८।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे रामगली-विश्वासनगरस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकश्रीपार्श्वनाथप्रतिमासमन्वितसमस्त-जिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
विश्वासनगर में महावीर भगवान का इक जिनमंदिर है।
नम्बर दस की गली में गूंजे उनकी पूजन का स्वर है।।९।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे गली नं. १०-विश्वासनगर-स्थितश्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकश्रीमहावीरप्रतिमासमन्वितसमस्तजिन-प्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
भोलानाथनगर के पार्श्वनाथ मंदिर को वन्दन है।
उसमें राजित सब जिनप्रतिमाओं को अर्घ्य समर्पण है।।१०।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे भोलानाथनगरस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकश्रीपार्श्वनाथप्रतिमासमन्वितसमस्तजिन-प्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
पार्श्वनाथ का मंदिर है, छोटा बाजार शाहदरा में।
उस मंदिर की सब प्रतिमाएँ, भक्तों को सुख दें सच में।।११।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे छोटाबाजार-शाहदरास्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकश्रीपार्श्वनाथप्रतिमासमन्वितसमस्त-जिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
तर्ज-नयनपथ गामी भवतु मे…….
बिहारी कालोनी, ऋषभप्रभु का धाम मानी।
प्रभू की भक्ती से, जहाँ बनते भक्त ज्ञानी।।
सभी जिनबिम्बों का, चलो मिल दर्शन करेंगे।
अर्घ्य की थाली ले, चढ़ा आतम सुख वरेंगे।।१२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे बिहारीकालोनीस्थित-श्रीऋषभदेवजिनमंदिरस्य मूलनायकश्रीऋषभदेवप्रतिमासमन्वितसमस्तजिन-प्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
-शंभु छंद-
वैâलाशनगर दिल्ली के गली नम्बर दो में जिनमंदिर है।
प्रभु महावीर की जिनप्रतिमा मंदिर में विराजी सुन्दर हैं।।
मंदिर के मूलनायक प्रभु के संग सबको अर्घ्य चढ़ाना है।
मानव जीवन के मंदिर पर सम्यक्त्व का कलश चढ़ाना है।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे वैâलाशनगर गली नं.-२ स्थित-श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहितसमस्त-जिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
वैâलाशनगर के गली नम्बर बारह में भी जिनमंदिर है।
पार्श्वनाथ की जिनप्रतिमा मंदिर में विराजी सुन्दर हैं।।
मंदिर के मूलनायक प्रभु के संग सबको अर्घ्य चढ़ाना है।
मानव जीवन के मंदिर पर सम्यक्त्व का कलश चढ़ाना है।।२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे वैâलाशनगर गली नं.-१२ स्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहितसमस्त-जिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
दिल्ली धरमपुरा की जैन गली में बना जिनमंदिर है।
प्रभु महावीर की जिनप्रतिमा मंदिर में विराजी सुन्दर हैं।।
मंदिर के मूलनायक प्रभु के संग सबको अर्घ्य चढ़ाना है।
मानव जीवन के मंदिर पर सम्यक्त्व का कलश चढ़ाना है।।३।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे धरमपुराजैनगलीस्थित-श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
श्री वासुपूज्य भगवान का मंदिर, गांधीनगर में निर्मित है।
उस मंदिर की सब प्रतिमाओं को मेरा अर्घ्य समर्पित है।।
मंदिर के मूलनायक प्रभु के संग सबको अर्घ्य चढ़ाना है।
मानव जीवन के मंदिर पर सम्यक्त्व का कलश चढ़ाना है।।४।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे गांधीनगरस्थित-श्रीवासुपूज्यजिनमंदिरस्य मूलनायकवासुपूज्यप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
रघुवरपुरा मोहल्ले में प्रभु पार्श्वनाथ का मंदिर है।
उस मंदिर की प्रतिमाओं को अर्घ्य चढ़ाऊँ सुन्दर है।।
मंदिर के मूलनायक प्रभु के संग सबको अर्घ्य चढ़ाना है।
मानव जीवन के मंदिर पर सम्यक्त्व का कलश चढ़ाना है।।५।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे रघुवरपुरास्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
रघुवरपुरा में एक और प्रभु आदिनाथ जिनमंदिर है।
मूलप्रभू के साथ सभी प्रतिमा को अर्घ्य समर्पित है।।
मंदिर के मूलनायक प्रभु के संग सबको अर्घ्य चढ़ाना है।
मानव जीवन के मंदिर पर सम्यक्त्व का कलश चढ़ाना है।।६।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजध्ाानीदिल्लीमहानगरे रघुवरपुरास्थित-श्रीआदिनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकआदिनाथप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
शांति मोहल्ला शांतिनाथ प्रभु के मंदिर से शोभ रहा।
मंदिर की सब प्रतिमाओं को अर्घ्य चढ़ा मन हरष रहा।।
मंदिर के मूलनायक प्रभु के संग सबको अर्घ्य चढ़ाना है।
मानव जीवन के मंदिर पर सम्यक्त्व का कलश चढ़ाना है।।७।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे शांतिमोहल्लास्थित-श्रीशांतिनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकशांतिनाथप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
पार्श्वनाथ भगवान राजगढ़ कालोनी के कष्ट हरें।
जिनमंदिर में सभी भक्तगण पापकर्म को नष्ट करें।।
मंदिर के मूलनायक प्रभु के संग सबको अर्घ्य चढ़ाना है।
मानव जीवन के मंदिर पर सम्यक्त्व का कलश चढ़ाना है।।८।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे राजगढ़ कालोनी स्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
पूर्वी दिल्ली कृष्णानगर के जिनमंदिर का दर्श करो।
अर्घ्य समर्पण कर प्रतिमाओं के चरणों का स्पर्श करो।।
मंदिर के मूलनायक प्रभु के संग सबको अर्घ्य चढ़ाना है।
मानव जीवन के मंदिर पर सम्यक्त्व का कलश चढ़ाना है।।९।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे कृष्णानगरस्थित-श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
महावीर जिनमंदिर दिल्ली शंकरनगर में स्थित है।
अष्टद्रव्य का अर्घ्य प्रभू के पद में करूँ समर्पित है।।
मंदिर के मूलनायक प्रभु के संग सबको अर्घ्य चढ़ाना है।
मानव जीवन के मंदिर पर सम्यक्त्व का कलश चढ़ाना है।।१०।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे शंकरनगरस्थित-श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
-दोहा-
राधेपुरी में राजते, चन्द्रप्रभ भगवान।
मंदिर एवं मूर्ति के, पद में करूँ प्रणाम।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे राधेपुरीस्थित-श्रीचन्द्रप्रभ-जिनमंदिरस्य मूलनायकचन्द्रप्रभप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
-शंभु छंद-
पार्श्वनाथ का एक और जिनमंदिर राधेपुरी में है।
अर्घ्य चढ़ाकर वन्दन कर लूँ मंदिर जिनप्रतिमा को मैं।।
मंदिर के मूलनायक प्रभु के संग सबको अर्घ्य चढ़ाना है।
मानव जीवन के मंदिर पर सम्यक्त्व का कलश चढ़ाना है।।१२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे राधेपुरीस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
बना बैंक एन्क्लेव में, वीर जिनालय धाम।
वीर प्रभू के चरण में, शत शत करूॅँ प्रणाम।।२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे बैंक एन्क्लेवस्थित-श्रीमहावीरस्यजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
-शंभु छंद-
लक्ष्मीनगर सुभाष चौक में पार्श्वनाथ जिन निलय बना।
उस मंदिर एवं प्रतिमा को अर्घ्य चढ़ा मन हर्ष घना।।३।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे सुभाषचौक-लक्ष्मीनगरस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
दिल्ली की शास्त्रीनगर लाहोरे कालोनी में मंदिर है।
अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ जहाँ पार्श्वनाथ प्रभु सुन्दर हैं।।४।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे शास्त्रीनगर-लाहोरेस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
पूर्वी दिल्ली में इक पांडवनगर क्षेत्र कहलाता है।
शांतिनाथ जिनमंदिर से वह अतिशय शोभा पाता है।।
अर्घ्य चढ़ाकर उन्हें हस्तिनापुर का सुमिरन आता है।
तीर्थ-मूर्ति-मंदिर का अर्चन भव संताप मिटाता है।।५।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे पांडवनगरस्थित-श्रीशांतिनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकशांतिनाथप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
-शेर छंद-
कृष्णानगर दिल्ली अहिंसाधाम है बना।
प्रभु वीर की प्रतिमा से सार्थनाम है घना।।
मैं अर्घ्य चढ़ा वीर वर्धमान को नमूँ।
पालन करूँ अहिंसा सार्थक जनम करूँ।।६।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे अहिंसाधामस्थित-श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
इक मधु विहार स्थान है पारस विहार में।
श्रीपार्श्वप्रभु की मूर्ति वहाँ मूलवेदी में।।
मंदिर तथा सब मूर्तियों को नमन करूँ मैं।
शुभ अर्घ्य चढ़ा जीवन को धन्य करूँ मैं।।७।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे मधुविहार-पार्श्वविहारस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
–दोहा–
पार्श्वनाथ जिनधाम से, शोभे मयूर विहार।
अर्घ्य चढ़ाकर पूजते, शीघ्र छुटे संसार।।८।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे मयूरविहार-फेज-१ स्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
शांतिनाथ तीर्थेश का, धाम मयूर विहार।
जिनमंदिर जिनमूर्ति को, वंदन बारम्बार।।९।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे मयूरविहार-फेज-३ स्थित-श्रीशांतिनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकशांतिनाथप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
पटपड़गंज में है बना, पार्श्व जिनालय एक।
पूजन कर वंदन करूँ, श्रद्धा से सिर टेक।।१०।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे पटपड़गंजस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
-शंभु छंद-
दिल्ली के प्रीतविहार क्षेत्र में धार्मिकता का संगम है।
प्रभु महावीर चौबिसवें तीर्थंकर के पद में वंदन है।।
आठों द्रव्यों का अर्घ्य थाल सब प्रतिमाओं को समर्पित है।
यहाँ उच्च शिखर पर तीन लोक का जैन चिन्ह भी निर्मित है।।११।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे प्रीतविहारस्थित-श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
तर्ज-जहाँ जन्मे वीर वर्धमान जी………
कमल मंदिर में विराजे भगवान हैं, राजधानी दिल्ली की जो शान हैं।
उन जिनवर ऋषभदेव के चरण, अर्पण करूँ अर्घ्य का थाल है।।०।।
दिल्ली प्रीतविहार में सुंदर,
कमल जिनालय निर्मित है।
गणिनी ज्ञानमती माता की,
प्रेरणा का यह प्रतिफल है।।
उसमें राजे प्रभू जी महान हैं, राजधानी दिल्ली की जो शान हैं।
उन जिनवर ऋषभदेव के चरण, अर्पण करूँ अर्घ्य का थाल मैं।।१२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे प्रीतविहार-कमल मंदिरस्थित-श्रीऋषभदेवजिनमंदिरस्य मूलनायकऋषभदेवप्रतिमा-सहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
-शंभु छंद-
पूर्वी दिल्ली का सुंदर जिनमंदिर निर्माण विहार में है।
महावीरजी अतिशयक्षेत्र सदृश प्रतिमाएं शोभें वेदी में।।
इस मंदिर के दर्शन करके सब प्रतिमाओं को नमन करो।
ले अष्टद्रव्य का थाल अर्घ्य अर्पण कर पाप को शमन करो।।१३।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे निर्माणविहारस्थित-जिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासमन्वित समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
-शेर छंद-
स्कूल ब्लॉक शकरपुर में पार्श्व जिनालय।
चिन्तामणि प्रभु पार्श्व की भक्ती का है निलय।।
इनके चरण में अर्घ्य दे अनर्घ्यपद चहूँ।
प्रभु के समक्ष अपने दु:ख दर्द सब कहूँ।।१४।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे स्कूलब्लॉक-शकरपुरस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
इक और शकरपुर में नेमिनाथ धाम है।
शौरीपुरी की याद दिलाता स्थान है।।
प्रभु नेमि के संग सभी मूर्तियों को नमन है।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर करूँ शत बार नमन है।।१५।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे मास्टर ब्लॉक-शकरपुरस्थित-श्रीनेमिनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकनेमिनाथप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
-शंभु छंद-
मेन बाजार शकरपुर के बी ब्लॉक में ऋषभदेव मंदिर।
अर्घ्य चढ़ाकर पूजन कर लूँ कट जावें भव के बंधन।।१६।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे मेनबाजार बी ब्लॉकस्थित-श्रीऋषभदेवजिनमंदिरस्य मूलनायकऋषभदेवप्रतिमासहितसमस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
-शंभु छंद-
गंगा विहार के जिनमंदिर में, पार्श्वनाथ जी विराजे हैं।
मंदिर व मूर्ति को अर्घ्य चढ़ाकर, पाप सभी भग जाते हैं।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे गंगाविहारस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
पूर्वी दिल्ली के चांदबाग में, चन्द्रप्रभ जिनमंदिर है।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ, मिल जाय देवगति सुंदर है।।२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे चांदबागस्थित-श्रीचन्द्रप्रभजिनमंदिरस्य मूलनायकचन्द्रप्रभप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
दिल्ली के इक गोविन्द विहार में, महावीर का मंदिर है।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ, मिल जाय देवगति सुंदर है।।३।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे गोविन्दविहारस्थित-श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
सादतपुर में श्री शांतिनाथ, मंदिर में प्रभू विराजे हैं।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ, मिल जाय देवगति सुंदर है।।
गणिनी श्री ज्ञानमती माता ने, शिलान्यास था करवाया।
कालोनी के सब भक्तों ने, तब से मंदिर दर्शन पाया।।४।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे सादतपुरस्थित-श्रीशांतिनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकशांतिनाथप्रतिमासहित-समस्तजिन-प्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
दिल्ली की खजूरी कालोनी में, ऋषभदेव का मंदिर है।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ, मिल जाय देवगति सुंदर है।।५।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे खजूरी कालोनीस्थित-श्रीऋषभदेवजिनमंदिरस्य मूलनायकऋषभदेवप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
पूर्वी दिल्ली के भजनपुरा में, पार्श्वनाथ जिनमंदिर है।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ, मिल जाय देवगति सुंदर है।।६।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे भजनपुरास्थित-श्रीपार्श्वनाथ-जिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
उस भजनपुरा के गंगोत्री-विहार में श्रीजिनमंदिर है।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ, मिल जाय देवगति सुंदर है।।७।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे गंगोत्रीविहार-भजनपुरास्थित-श्रीचन्द्रप्रभजिनमंदिरस्य मूलनायकचन्द्रप्रभप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
पूर्वी दिल्ली यमुना विहार में, पार्श्वनाथ जिनमंदिर है।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ, मिल जाय देवगति सुंदर है।।८।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे यमुनाविहारस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
श्रीक्षेत्र मौजपुर में तीर्थंकर, शांतिनाथ जिनमंदिर है।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ, मिल जाय देवगति सुंदर है।।९।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे मौजपुरस्थित-श्रीशांतिनाथ-जिनमंदिरस्य मूलनायकशांतिनाथप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
यमुनापार के जयप्रकाश नगर में, शांतिनाथ जिनमंदिर है।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ, मिल जाय देवगति सुंदर है।।१०।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे जयप्रकाशनगरस्थित-श्रीशांतिनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकशांतिनाथप्रतिमासहित-समस्तजिन-प्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
पूर्वी दिल्ली के ब्रह्मपुरी में, पार्श्वनाथ जिनमंदिर है।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ, मिल जाय देवगति सुंदर है।।११।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे ब्रह्मपुरीस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
दिल्ली के गौतमपुरी क्षेत्र में, ऋषभदेव जिनमंदिर है।
भक्तों के द्वारा प्रभु भक्ती का, गूंजे जहाँ सदा स्वर है।।
उस मंदिर में राजित सब, जिनप्रतिमाओं को वन्दन है।
यहाँ के दानी भक्तों कर लो, प्रभु के पद अर्घ्य समर्पण है।।१२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे गौतमपुरीक्षेत्रस्थित-श्रीऋषभदेवजिनमंदिरस्य मूलनायकऋषभदेवप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
उस्मानपुरा दिल्ली में पावन, शांतिनाथ जिनमंदिर है।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ, मिल जाय देवगति सुंदर है।।१३।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे उस्मानपुरास्थित-श्रीशांतिनाथ-जिनमंदिरस्य मूलनायकशांतिनाथप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
दिल्ली के क्षेत्र वैâथवाड़ा में श्री नेमिनाथ जिनमंदिर है।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ, मिल जाय देवगति सुंदर है।।१४।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे वैâथवाड़ास्थित-श्रीनेमिनाथ-जिनमंदिरस्य मूलनायकनेमिनाथप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
दिल्ली के शास्त्रीपार्क क्षेत्र में, महावीर जिनमंदिर है।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ, मिल जाय देवगति सुंदर है।।१५।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे शास्त्रीपार्कस्थित-श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
पूर्वी दिल्ली सोनिया विहार में, अजितनाथ जिनमंदिर है।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ, मिल जाय देवगति सुंदर है।।१६।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे सोनियाविहारस्थित-श्रीअजितनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकअजितनाथप्रतिमासहित-समस्तजिन-प्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
सुभाषविहार भजनपुरा में, श्रीचन्द्रप्रभ जिनमंदिर है।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ, मिल जाय देवगति सुंदर है।।१७।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे सुभाषविहार-भजनपुरास्थित-श्रीचन्द्रप्रभजिनमंदिरस्य मूलनायकचन्द्रप्रभप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
-कुसुमलता छंद-
चलो चलेंगे नवीन शाहदरा, जिनमंदिर का दर्श करें।
नवदेवों में एक देवता, प्रतिमा सम्मुख अर्घ्य धरें।।
जैसे सूरज धरती का, सम्पूर्ण अंधेरा हरता है।
वैसे मंदिर मूर्ति का अर्चन, मन में उजाला भरता है।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे नवीनशाहदरास्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
-शेर छंद-
श्री पार्श्वनाथ धाम है कबूलनगर में।
जो यमुनापार शाहदरा का भक्ति केन्द्र है।।
मैं रत्नयुक्त अर्घ्य ले जिनवर को समर्पूं।
जिनमंदिरों में राज रहीं प्रतिमा को अर्चूं।।२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे कबूलनगर-शाहदरास्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
श्री वासुपूज्य जिनालय शिवाजी पार्क में।
प्रभु भक्ति करके भक्त करें जन्म सार्थ हैं।।
मैं रत्नयुक्त अर्घ्य ले जिनवर को समर्पूं।
जिनमंदिरों में राज रहीं प्रतिमा को अर्चूं।।३।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे शिवाजीपार्कस्थित-श्रीवासुपूज्यजिनमंदिरस्य मूलनायकवासुपूज्यनाथप्रतिमासहित-समस्तजिन-प्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
श्री शांतिनाथ मंदिर शिवाजी पार्क में।
उसमें भी भक्त भक्ति करें पुण्यधाम है।।
मैं रत्नयुक्त अर्घ्य ले जिनवर को समर्पूं।
जिनमंदिरों में राज रहीं प्रतिमा को अर्चूं।।४।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीम्ाहानगरे शिवाजीपार्कस्थित-श्रीशांतिनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकशांतिनाथप्रतिमासहित-समस्तजिन-प्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
बलवीरनगर में बना प्रभु वीर जिनालय।
भक्तों के लिए भक्ति का साधन है सुखालय।।
मैं रत्नयुक्त अर्घ्य ले जिनवर को समर्पूं।
जिनमंदिरों में राज रहीं प्रतिमा को अर्चूं।।५।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे बलवीरनगरस्थित-श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
है रामनगर में बना महावीर का मंदिर
प्रभु भक्ति का सदा जहाँ भरा है समंदर।।
मैं रत्नयुक्त अर्घ्य ले जिनवर को समर्पूं।
जिनमंदिरों में राज रहीं प्रतिमा को अर्चूं।।६।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे रामनगरस्थित-श्रीमहावीर-जिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
श्री चन्द्रलोक में भवन, चन्दा सा चमकता।
जिनमूर्तियों को अर्घ्य चढ़ा भाग्य चमकता।।
मैं रत्नयुक्त अर्घ्य ले जिनवर को समर्पूं।
जिनमंदिरों में राज रहीं प्रतिमा को अर्चूं।।७।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे चन्द्रलोकस्थित-जिनमंदिरस्य समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
है शाहदरा की ज्योति कालोनी में जिनालय।
महावीर वीर सन्मती की भक्ति का निलय।।
मैं रत्नयुक्त अर्घ्य ले जिनवर को समर्पूं।
जिनमंदिरों में राज रहीं प्रतिमा को अर्चूं।।८।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे ज्योतिकालोनी-शाहदरा-स्थित-श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहित-समस्तजिन-प्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ज्योतीनगर में भी है पार्श्वनाथ जिनालय।
भक्तों को भक्ति करने हेतु एक सुखालय।।
मैं रत्नयुक्त अर्घ्य ले जिनवर को समर्पूं।
जिनमंदिरों में राज रहीं प्रतिमा को अर्चूं।।९।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे ज्योतीनगरस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
श्री चन्द्रप्रभ का जिनालय अशोकनगर में।
चन्दाप्रभू की भक्ति करें भक्त वहाँ पे।।
मैं रत्नयुक्त अर्घ्य ले जिनवर को समर्पूं।
जिनमंदिरों में राज रहीं प्रतिमा को अर्चूं।।१०।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे अशोकनगरस्थित-श्रीचन्द्रप्रभजिनमंदिरस्य मूलनायकचन्द्रप्रभप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
-कुसुमलता छंद-
श्री ऋषभदेव जिनमंदिर निर्मित है दिलशाद गार्डन में।
आदिब्रह्मा के गुण गाते भव्यात्मा जाकर मंदिर में।।
हम अष्टद्रव्य का थाल सजाकर अर्घ्य चढ़ाने आए हैं।
जिनमंदिर को भी वंदन कर भक्ति से शीश झुकाए हैं।।११।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे दिलशादगार्डन-आर ब्लॉकस्थित-श्रीऋषभदेवजिनमंदिरस्य मूलनायकऋषभदेवप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
प्रभु महावीर का जिनमंदिर दिलशाद गार्डन में इक है।
भक्तों के द्वारा प्रभु की अर्चा होती जहाँ पर प्रतिदिन है।।
हम अष्टद्रव्य का थाल सजाकर अर्घ्य चढ़ाने आए हैं।
जिनमंदिर को भी वंदन कर भक्ति से शीश झुकाए हैं।।१२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे दिलशादगार्डन-पी पॉकेटस्थित-श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
श्री मानसरोवर पार्क में है श्री संभवनाथ का जिनमंदिर।
जहाँ सदा गूंजते रहते हैं भक्तों की भक्ति के स्वर सुंदर।।
हम अष्टद्रव्य का थाल सजाकर अर्घ्य चढ़ाने आए हैं।
जिनमंदिर को भी वंदन कर भक्ति से शीश झुकाए हैं।।१३।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे मानसरोवरपार्कस्थित-श्रीसंभवनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकसंभवनाथप्रतिमासहित-समस्तजिन-प्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं राजधानीदिल्लीस्थितसर्वजिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। (९ बार जपें)
-शंभु छंद-
जय जय जिनमंदिर का वैभव अतिशायी अनुपम गुणमय है।
जय जय जिनप्रतिमा का अतिशय आनन्त्य चतुष्टय गुणमय है।।
जय जय चौबीसों तीर्थंकर अगणित गुण संयुत रहते हैं।
जय जय उनसे संयुत मंदिर मानो बस समवसरणयुत हैं।।१।।
उत्तुंग धवल शिखरों से सहित जिनमंदिर पुण्य के स्थल हैं।
जो स्वर्णकलश व ध्वजाओं से संयुत जिनभक्ति के स्थल हैं।।
जो भव्य दूर से भी मंदिर के शिखर का दर्शन कर लेते।
वे अपनी आत्मा को उन धवल शिखरसम उज्वल कर लेते।।२।।
ऐसे मंदिर युग की आदी में इन्द्र बनाया करते थे।
तीर्थंकर जन्म से पहले इन्द्र धरा पर आया करते थे।।
प्रभु जन्म महल से पूर्व नगरि में मंदिर ही वे बनाते थे।
फिर महल में राजा रानी को मंगल प्रवेश करवाते थे।।३।।
इस युग में श्री जिनमंदिर की निर्माण शृंखला चलती है।
भव्यात्मा श्रावकगण द्वारा मंदिरों में भक्ती चलती है।।
दिल्ली के भौतिक जीवन में भी आध्यात्मिकता रहती है।
यहाँ के सब क्षेत्रों में लगभग मंदिर के प्रति रुचि सबकी है।।४।।
पूर्वी दिल्ली के जिनमंदिर प्राचीन व नूतन निर्मित हैं।
भगवान विराजित हैं उनमें दिल्ली की ये विशाल कृति हैं।।
वहाँ नित्य प्रभू अभिषेक तथा शांतिधाराएँ चलती हैं।
इन्द्रध्वज कल्पद्रुम आदिक पूजाएं होती रहती हैं।।५।।
सन्तों के पदार्पण से भक्तों का मेला वहाँ लगता रहता।
आहारदान आदि देकर भव्यों का पुण्य बढ़ा करता।।
मंदिर का वैभव देखो तो मन रोमांचित हो जाता है।
तीर्थंकर प्रभु काr छवि देखो तो भक्ति से मन भर जाता है।।६।।
श्री गणिनीप्रमुख ज्ञानमति माता की इच्छा दर्शन की हुई।
इसलिए ‘‘चन्दनामति’’ द्वारा पूजन विधान कृति लिखी गई।।
पूर्वी दिल्ली मंदिर पूजन की जयमाला का अर्घ्य लिया।
सब मंदिर एवं प्रतिमाओं के चरण महार्घ्य समर्प्य दिया।।७।।
ॐ ह्रीं राजधानीदिल्लीमहानगरस्य पूर्वीक्षेत्रस्थितसमस्तजिनमंदिर-जिनप्रतिमाभ्य: जयमाला महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
तर्ज-मैया हो गंगा…….
देवा…..हो जिनवर देवा, देवा….हो जिनवर देवा,
चक्रवर्ती तथा इन्द्र की सम्पदा, मिलती है यदि करें हम प्रभू अर्चना,
…..प्रभू अर्चना।।देवा…हो……
चन्दा सूरज में जब तक के ज्योती रहे, दिल्ली के मंदिरों की कीर्ति रहे,
…..कीर्ति रहे।।देवा……हो जिनवर देवा।।
।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।