-स्थापना-
दक्षिण दिल्ली के जिनमंदिर जिनप्रतिमाओं को वंदन है।
इनकी पूजन करके भव्यों के कट जाते भव बंधन हैं।।
प्रतिमाएँ आत्मा को भगवान बनाने का इक साधन हैं।
आठों द्रव्यों से पूजन के पहले उनका आह्वानन है।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य दक्षिणसंभागस्थित-समस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमासमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य दक्षिणसंभागस्थित-समस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमासमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य दक्षिणसंभागस्थित-समस्तजिनमंदिरजिनप्रतिमासमूह! अत्र मम सन्निहिता: भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अष्टक (शेर छंद)-
गंगा नदी का नीर ले प्रभु पद करूँ धारा।
कर जन्म मृत्यु नाश पाऊँ भव का किनारा।।
है दक्षिणी दिल्ली के जिनभवनों की अर्चना।
प्रतिमाओं की छवि मन में धरके करूँ वन्दना।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्यराजधानीदिल्लीमहानगरस्य दक्षिणसंभागस्थित-समस्तजिनमंदिरेभ्य: जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
चंदन की शीतलता को सभी जानते जग में।
प्रभु पद में चर्च आत्मशांति मिलती है सच में।।
है दक्षिणी दिल्ली के जिनभवनों की अर्चना।
प्रतिमाओं की छवि मन में धरके करूँ वन्दना।।२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्यराजधानीदिल्लीमहानगरस्य दक्षिणसंभागस्थित-समस्तजिनमंदिरेभ्य: संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
अक्षत के पुंज लेके प्रभु के निकट चढ़ाऊँ।
नश्वर शरीर से अनश्वर आत्मसुख चाहूँ।।
है दक्षिणी दिल्ली के जिनभवनों की अर्चना।
प्रतिमाओं की छवि मन में धरके करूँ वन्दना।।३।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य दक्षिणसंभागस्थित-समस्तजिनमंदिरेभ्य: अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
लेकर सुगंधित पुष्प मैं प्रभु पद में चढ़ाऊँ।
हो काम व्यथा नाश यही भावना भाऊँ।।
है दक्षिणी दिल्ली के जिनभवनों की अर्चना।
प्रतिमाओं की छवि मन में धरके करूँ वन्दना।।४।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य दक्षिणसंभागस्थित-समस्तजिनमंदिरेभ्य: कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
व्यंजन सरस नैवेद्य ले प्रभु पद में चढ़ाऊँ।
आत्मीक सुख की प्राप्ति हो क्षुधरोग नशाऊँ।।
है दक्षिणी दिल्ली के जिनभवनों की अर्चना।
प्रतिमाओं की छवि मन में धरके करूँ वन्दना।।५।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य दक्षिणसंभागस्थित-समस्तजिनमंदिरेभ्य: क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
घृतदीप जलाकर प्रभू की आरती करूँ।
कर मोहतिमिर नाश ज्ञान भारती भरूँ।।
है दक्षिणी दिल्ली के जिनभवनों की अर्चना।
प्रतिमाओं की छवि मन में धरके करूँ वन्दना।।६।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य दक्षिणसंभागस्थित-समस्तजिनमंदिरेभ्य: मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
वर अष्ट गंध धूप अग्नि में दहन करूँ।
कर नष्ट कर्म क्रम से मोक्ष में गमन करूँ।।
है दक्षिणी दिल्ली के जिनभवनों की अर्चना।
प्रतिमाओं की छवि मन में धरके करूँ वन्दना।।७।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य दक्षिणसंभागस्थित-समस्तजिनमंदिरेभ्य: अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
अंगूर आम्र केला आदि फल चढ़ाऊँ मैं।
प्रभु! तव कृपाप्रसाद से शिवफल को पाऊँ मैं।।
है दक्षिणी दिल्ली के जिनभवनों की अर्चना।
प्रतिमाओं की छवि मन में धरके करूँ वन्दना।।८।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य दक्षिणसंभागस्थित-समस्तजिनमंदिरेभ्य: मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल गंध अक्षतादि अष्ट द्रव्य लाऊँ मैं।
शुभ अर्घ्य चढ़ा ‘‘चन्दनामति’’ सौख्य पाऊँ मैं।।
है दक्षिणी दिल्ली के जिनभवनों की अर्चना।
प्रतिमाओं की छवि मन में धरके करूँ वन्दना।।९।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरस्य दक्षिणसंभागस्थित-समस्तजिनमंदिरेभ्य: अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-दोहा-
मंदिर एवं मूर्तियाँ, नवदेवों में देव।
शांतीधारा की क्रिया, है सुख शांती हेत।।१०।।
शांतये शांतिधारा।।
मंदिर में प्रभु के निकट, पुष्पांजलि चढ़ाय।
हृदय कमल विकसित करूँ, गुणपुष्पों को पाय।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।।
।।अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।
तर्ज-बाहुबली बाहुबली………..
आर.के. पुरम्, आर.के. पुरम्
चलो चलें मंदिर आर.के. पुरम्।।टेक.।।
दक्षिण दिल्ली के इस मंदिर में हैं विराजे वीरजिनम्।।आर.के.पुरम्।।०।।
पूजा भक्ति के साधन ये जिनमंदिर कहलाते हैं।
हमको भी ये माध्यम ही भवदधि से पार लगाते हैं।।
महावीर मंदिर में विराजित सब प्रतिमाओं को करो नमन,
आर.के. पुरम्, आर.के. पुरम्……..।।१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे आर.के.पुरम्स्थित-श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
-कुसुमलता छंद-
नेमिनाथ भगवान का मंदिर, सूरजकुण्ड बदरपुर में।
जिनप्रतिमा को अर्घ्य चढ़ाकर, क्रम से पाऊँ शिवपुर मैं।।
मंदिर में विराजित सभी मूर्तियों को भी अर्घ्य समर्पित है।
मेरे मनमंदिर के कमलासन पर प्रभु मूर्ति विराजित हैं।।२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे बदरपुर-सूरज-कुण्डरोडस्थित-श्रीनेमिनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकनेमिनाथप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
-दोहा-
दिल्ली भारत नगर में, ऋषभदेव जिनधाम।
अर्घ्य चढ़ाकर भक्ति से, प्रभुपद करूँ प्रणाम।।३।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे भारतनगरस्थित-श्रीऋषभदेवजिनमंदिरस्य मूलनायकऋषभदेवप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
-कुसुमलता छंद-
भोगलजंगपुरा में श्री महावीर प्रभू का जिनालय है।
अष्ट द्रव्य का अर्घ्य चढ़ाकर पाते भक्त सुखालय हैं।।
वहाँ राजित सब प्रतिमाओं के, चरणों में मेरा वन्दन है।
आठों द्रव्यों का थाल सजा, जिनवर को अर्घ्य समर्पण है।।४।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे भोगलजंगपुरास्थित-श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
श्री पार्श्वनाथ प्रभु से शोभित है, ग्रीनपार्क का जिनमंदिर।
अतिशयकारी प्रभु समवसरण की रचना नई बनी सुन्दर।।
उन सबमें राजित जिनप्रतिमाओं के चरणों में अभिवन्दन है।
आठों द्रव्यों का थाल सजा जिनवर को अर्घ्य समर्पण है।।५।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे एन.दस ग्रीनपार्क एक्सटेंशनस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
पार्श्वनाथ भगवान कालका जी गोविन्दपुरी में है।
अर्घ्य चढ़ाकर मंदिर एवं सब बिम्बों को वन्दन है।।६।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे कालकाजी गोविन्दपुरीस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
रोहतक रोड घेवरा मोड़ पे महावीर जिनमंदिर है।
सब जिनप्रतिमाओं को शुभ अर्घ्य चढ़ाकर मेरा वंदन है।।७।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे घेवरामोड़-रोहतकरोड स्थित-श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहित-समस्त-जिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
लोधी कालोनी में प्रभु वीर का मंदिर बड़ा मनोहर है।
अर्घ्य चढ़ा कर भक्ति करूँ, भक्ति का यहाँ सरोवर है।।८।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे लोधीकालोनीस्थित-श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
तर्ज-भगत माँ ज्ञानमति का……
अहिंसा की जय हो-२
वीरप्रभू का उपदेश अहिंसा की जय हो।।टेक.।।
दिल्ली के महरोली क्षेत्र में तीर्थ अहिंसास्थल।
महावीर की मूर्ति विराजित कीर्ति अहिंसास्थल।।
उनके पद में अर्घ्य चढ़ाकर, पद अनर्घ्य प्राप्ती हो।।
अहिंसा की जय हो…..।।९।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे महरौली-अहिंसास्थलस्थित-श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
-शंभु छंद-
कुंदकुंद भारती का परिसर भरत प्रभू से शोभित है।
श्री विद्यानंदी आचार्य के उपदेशों से निर्मित है।।
ऋषभदेव तीर्थंकर के सुत भरत सिद्ध भगवान बने।
उन चरणों में अर्घ्य चढ़ाकर भक्तों के सब काम बनें।।१०।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे कुंदकुंदभारतीस्थित-श्रीभरतस्वामीजिनमंदिरस्य मूलनायकभरतप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
सरिता विहार दिल्ली में श्री चन्द्रप्रभ का जिनमंदिर है।
उनसे युत सब प्रतिमाओं को अर्घ्य चढ़ाकर वंदन है।।
मंदिर में राजित सब प्रतिमाओं को शुभ अर्घ्य समर्पित है।
मेरे मन मंदिर के कमलासन पर जिनमूर्ति विराजित है।।११।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे सरिताविहारस्थित-श्रीचन्द्रप्रभजिनमंदिरस्य मूलनायकचन्द्रप्रभसहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
श्री पार्श्वनाथ का जिनमंदिर संगम विहार में शोभ रहा।
प्रभु जी की वीतराग मुद्रा लख भक्तों का मन मोह रहा।।
मंदिर में राजित सब प्रतिमाओं को शुभ अर्घ्य समर्पित है।
मेरे मन मंदिर के कमलासन पर जिनमूर्ति विराजित है।।१२।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे संगमविहारस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथसहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
दिल्ली में तुगलकाबाद एक्सटेंशन में पार्श्व जिनालय है।
धरणेन्द्र व पद्मावति सेवित वे प्रभु इच्छित फलदायक हैं।।
उन प्रभुवर सहित सभी बिम्बों को हम शुभ अर्घ्य चढ़ाएंगे।
भक्ति के बल पर हम इक दिन भगवान स्वयं बन जाएंगे।।१३।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे तुगलकाबाद एक्सटेंशनस्थित-श्रीपार्श्वनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकपार्श्वनाथसहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
-शेर छंद-
दिल्ली में इक स्थान है सरोजनी नगर।
प्रभु वीर वर्धमान का मंदिर है वहाँ पर।।
सरवर में खिले कमलों से पूजा करूँ उनकी।
सम्पूर्ण अर्घ्य को चढ़ा अर्चा करूँ प्रभु की।।१४।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे सरोजनीनगरस्थित-श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायकमहावीरसहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
दिल्ली बसंतकुंज में वृषभेश जिनालय।
यहाँ के विशेष भक्तों की भक्ति का आलय।।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर प्रभू की अर्चना करूँ।
निज पद अनर्घ्य पाने हेतु प्रार्थना करूँ।।१५।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे बसंतकुंजस्थित-श्रीऋषभदेव-जिनमंदिरस्य मूलनायकऋषभदेवसहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
है ध्यान तीर्थ इक बसंतकुंज में बना।
आचार्यश्री आनन्दसागर जी की प्रेरणा।।
मैं अर्घ्य चढ़ा शांति प्रभु की अर्चना करूँ।
आतम निधी के हेतु ध्यान साधना करूँ।।१६।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे ध्यानतीर्थ-बसंतकुंजस्थित-श्रीशांतिनाथजिनमंदिरस्य मूलनायकशांतिनाथसहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
-दोहा-
सैनिक फार्म का जिनभवन, जिनभक्ति का धाम।
अर्घ्य चढ़ाकर है नमन, पूर्ण करो सब काम।।१७।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे सैनिकफार्मस्थित-श्रीमहावीरजिनमंदिरस्य समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
-शंभु छंद-
देखो चिराग दिल्ली में प्रभु महावीर की मूर्ति चमकती है।
भक्तों की भक्ती के चिराग से आत्मज्योति जहाँ जलती है।।
उन प्रभु को अर्घ्य चढ़ा करके सब प्रतिमाओं को नमन करूँ।
निज को भगवान बनाने हित भगवान के पद में नमन करूँ।।१८।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे चिराग-दिल्लीस्थित श्रीमहावीरजिनमंदिरेविराजमान मूलनायकतीर्थंकरश्रीमहावीरजिनप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
संगम विहार के गली नम्बर सोलह में अजितनाथ मंदिर।
सम्मेदशिखर से इस युग के जो प्रथम मोक्षगामी जिनवर।।
उन प्रभु को अर्घ्य चढ़ा करके सब प्रतिमाओं को नमन करूँ।
निज को भगवान बनाने हित भगवान के पद में नमन करूँ।।१९।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे संगमविहार-गली नं.-१६ स्थित श्रीअजितनाथजिनमंदिरेविराजमान मूलनायकतीर्थंकरश्रीअजितनाथ-जिनप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
दिल्ली की जैतपुर कालोनी में महावीर का मंदिर है।
श्रीवीरप्रभू के गुणगानों से गूंजे जहाँ भक्ति स्वर हैं।।
उन प्रभु को अर्घ्य चढ़ा करके सब प्रतिमाओं को नमन करूँ।
निज को भगवान बनाने हित भगवान के पद में नमन करूँ।।२०।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे जैतपुरस्थित श्रीमहावीरजिनमंदिरेविराजमान मूलनायकतीर्थंकरश्रीमहावीरजिनप्रतिमासहित-समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
दक्षिण दिल्ली कालकाजी एक्सटेंशन में श्री जिनमंदिर है।
श्री जैन दिगम्बर परिषद के ही भवन में पारस प्रभुवर हैं।।
मंदिर के पार्श्वनाथ जिनवर को, अर्घ्य चढ़ाकर नमन करूँ।
भगवान स्वयं बनने हेतू भगवान के पद में नमन करूँ।।२१।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्य राजधानीदिल्लीमहानगरे दक्षिणक्षेत्रे कालकाजी एक्सटेंशनस्थितश्रीमहावीरजिनमंदिरस्य मूलनायक महावीरप्रतिमासमन्वित समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं राजधानीदिल्लीस्थितसर्वजिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। (९ बार जपें)
हे नाथ! आपके गुणमणि की, पूजन कर पुण्य कमाएं हम।
दक्षिण दिल्ली मंदिर पूजन की, जयमाला प्रभु! गाएं हम।।टेक.।।
मंदिर दर्शन के भाव मात्र से, उपवासों का फल मिलता।
जिनवर प्रतिमा के दर्श मात्र से, दृढ़ सम्यक्त्व कमल खिलता।।
निज सम्यग्दर्शन दृढ़ करने हित, पूजन द्रव्य चढ़ाएं हम।
दक्षिण दिल्ली मंदिर पूजन की, जयमाला प्रभु! गाएं हम।।१।।
जिनप्रतिमा जहाँ विराजित हों वे जिनमंदिर कहलाते हैं।
पुण्यात्मा मानव ही प्रतिमा एवं मंदिर बनवाते हैं।।
श्री भरत चक्रवर्ती सम मंदिर बनाके पुण्य कमाएं हम।
दक्षिण दिल्ली मंदिर पूजन की, जयमाला प्रभु! गाएं हम।।२।।
दक्षिण दिल्ली के पुरातत्त्व में, साक्ष्य आज भी मिलते हैं।
सैकड़ों साल पहले भी यहाँ, जिनमंदिर थे यह सुनते हैं।।
ऐसी सद्बुद्धि मिले जिससे मंदिर को सदा बनाएं हम।
दक्षिण दिल्ली मंदिर पूजन की, जयमाला प्रभु! गाएं हम।।३।।
इक समय भी ऐसा आया था जब मंदिर तोड़े गये बहुत।
जिनधर्म के प्रति विद्वेष भाव से शास्त्र जलाए गये बहुत।।
फिर से स्वतंत्र भारत में पुण्य से जिनवर के गुण गाएं हम।
दक्षिण दिल्ली मंदिर पूजन की, जयमाला प्रभु! गाएं हम।।४।।
भारत की राजधानी दिल्ली मंदिर विधान का अवसर है।
दक्षिण दिल्ली के जिनमंदिर के दर्शन-वंदन का क्षण है।।
गणिनी श्री ज्ञानमती माँ की प्रेरणा का प्रतिफल पाएं हम।
‘‘चन्दनामती’’ प्रभु पूजन की जयमाला का अर्घ्य चढ़ाएं हम।।५।।
ॐ ह्रीं भारतदेशस्यराजधानीदिल्लीमहानगरस्य दक्षिणसंभागस्थित-समस्तजिनमंदिर-जिनप्रतिमाभ्य: जयमाला महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
तर्ज-मैया हो गंगा……..
देवा…..हो जिनवर देवा, देवा….हो जिनवर देवा,
चक्रवर्ती तथा इन्द्र की सम्पदा, मिलती है यदि करें हम प्रभू अर्चना,
…..प्रभू अर्चना।।देवा…हो……
चन्दा सूरज में जब तक के ज्योती रहे, दिल्ली के मंदिरों की कीर्ति रहे,
…..कीर्ति रहे।।देवा……हो जिनवर देवा।।
।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।