तर्ज—ऐसी लागी लगन……
अर्घ्य का थाल ले, प्रभु की जयमाल में।
अपने भावों को आओ समर्पण करें।।टेक.।।
सुबह मंदिर में जा, प्रभु का दर्शन करो।
पाँचों अंगों से झुक, प्रभु का वन्दन करो।।
बन्द मुट्ठी से, अक्षत चढ़ाया करो।। अर्घ्य का थाल ले…।।१।।
जैन शास्त्रों को करके, नमन भक्ति से।
कर लो स्वाध्याय कुछ, आत्मशक्ती मिले।।
चार पुंजों को धर, उसकी वाणी गहो।। अर्घ्य का थाल ले…।।२।।
साधु साध्वी मिलें, तो नमोस्तु करो।
तीन रत्नों के धारक को, त्रय पुंज दो।।
उनकी साक्षात् उपदेश, वाणी सुनो।। अर्घ्य का थाल ले…।।३।।
जैन मंदिर से तुम, वापसी जब चलो।
प्रभु के गंधोदक से, तन को पावन करो।।
पीठ प्रभु को न दे, सीधे-सीधे चलो।। अर्घ्य का थाल ले…।।४।।
मूलगुण आठ को, पालो सब श्रावकों।
‘‘चंदनामति’’ तभी, सच्चे श्रावक बनो।।
देव गुरु शास्त्र, तीनों की भक्ती करो।। अर्घ्य का थाल ले…।।५।।
दिल्ली के मंदिरों की महाअर्चना।
बड़ी जयमाला में प्रभु को कर वन्दना।।
भक्ति से प्रभु को मस्तक नमाया करो। अर्घ्य का थाल ले…।।६।।